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गरीबी पर निबंध (Poverty Essay in Hindi)

गरीबी

गरीबी किसी भी व्यक्ति या इंसान के लिये अत्यधिक निर्धन होने की स्थिति है। ये एक ऐसी स्थिति है जब एक व्यक्ति को अपने जीवन में छत, जरुरी भोजन, कपड़े, दवाईयाँ आदि जैसी जीवन को जारी रखने के लिये महत्वपूर्ण चीजों की भी कमी लगने लगती है। निर्धनता के कारण हैं अत्यधिक जनसंख्या, जानलेवा और संक्रामक बीमारियाँ, प्राकृतिक आपदा, कम कृषि पैदावर, बेरोज़गारी, जातिवाद, अशिक्षा, लैंगिक असमानता, पर्यावरणीय समस्याएँ, देश में अर्थव्यवस्था की बदलती प्रवृति, अस्पृश्यता, लोगों का अपने अधिकारों तक कम या सीमित पहुँच, राजनीतिक हिंसा, प्रायोजित अपराध, भ्रष्टाचार, प्रोत्साहन की कमी, अकर्मण्यता, प्राचीन सामाजिक मान्यताएँ आदि जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

गरीबी पर बड़े तथा छोटे निबंध (Long and Short Essay on Poverty in Hindi, Garibi par Nibandh Hindi mein)

गरीबी पर निबंध – 1 (350 शब्द).

गरीबी संसार के सबसे विकट समस्याओं में से एक है। गरीबी की यह समस्या हमारे जीवन को आर्थिक तथा सामाजिक दोनो ही रुप से प्रभावित करती है। गरीबी एक ऐसी समस्या है, जो हमारे पूरे जीवन को प्रभावित करने का कार्य करती है।

गरीबी के कारण

गरीबी का सबसे बड़ा कारण परिस्थिति नहीं बल्कि लोगों की गरीब सोच है। शिक्षा का अभाव, रोजगार का अभाव, अपंगता आदि गरीबी के अन्य कारण है।गरीबी एक ऐसी बीमारी है जो इंसान को हर तरीके से परेशान करती है। इसके कारण एक व्यक्ति का अच्छा जीवन, शारीरिक स्वास्थ्य, शिक्षा स्तर आदि जैसी सारी चीजें खराब हो जाती है। यही कारण है कि आज के समय में गरीबी को एक भयावह समस्या माना जाता है।

गरीबी से मुक्ति के उपाय

ये बहुत जरुरी है कि एक सामान्य जीवन जीने के लिये, उचित शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, पूर्ण शिक्षा, हरेक के लिये घर, और दूसरी जरुरी चीजों को लाने के लिये देश और पूरे विश्व को साथ मिलकर कार्य करना होगा। गरीबी के अंत के लिए हम सभी को मिलकर प्रयास करना होगा।  सरकार को अवसर उपलब्ध कराना चाहिए और जनता को उस अवसर का लाभ उठाना चाहिए।

निष्कर्ष गरीबी से मुक्ति के लिए हमें शिक्षा और कौशल युक्त होना होगा। सरकार का यह दायित्व है की वह जनता को अवसर और योजनाए प्रदान करे , जिससे एक आम आदमी भी रोजगार प्राप्त कर सके।

निबंध 2 (400 शब्द)

आज के समय में गरीबी को दुनियां के सबसे बडी समस्याओं में से एक माना जाता है। गरीबी एक ऐसी मानवीय स्थिति है, जो हमारे जीवन में दुख-दर्द तथा निराशा जैसी विभिन्न समस्याओँ को जन्म देती है। गरीबी में जीवन जीने वाले व्यक्तियों को ना तो अच्छी शिक्षा की प्राप्ति होती है ना ही उन्हें अच्छी सेहत मिलती है।

गरीबी एक त्रासदी

गरीबी एक ऐसी मानवीय परिस्थिति है जो हमारे जीवन में निराशा, दुख और दर्द लाती है। गरीबी पैसे की कमी है और जीवन को उचित तरीके से जीने के लिये सभी चीजों के कमी को प्रदर्शित करता है। गरीबी एक बच्चे को बचपन में स्कूल में दाखिला लेने में अक्षम बनाती है और वो एक दुखी परिवार में अपना बचपन बिताने या जीने को मजबूर होते हैं। निर्धनता और पैसों की कमी की वजह से लोग दो वक्त की रोटी, बच्चों के लिये किताबें नहीं जुटा पाने और बच्चों का सही तरीके से पालन-पोषण नहीं कर पाने के जैसी समस्याओं से ग्रस्त हो जाते है।

हमलोग गरीबी को बहुत तरीके से परिभाषित कर सकते हैं। भारत में गरीबी देखना बहुत आम-सा हो गया है क्योंकि ज्यादातर लोग अपने जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को भी नहीं पूरा कर सकते हैं। यहाँ पर जनसंख्या का एक विशाल भाग निरक्षर, भूखे और बिना कपड़ों और घर के जीने को मजबूर हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था के कमजोर होने का यही मुख्य कारण है। निर्धनता के कारण लगभग भारत में आधी आबादी दर्द भरा जीवन जी रही है।

गरीबी एक स्थिति उत्पन्न करती है जिसमें लोग पर्याप्त आय प्राप्त करने में असफल हो जाते हैं इसलिये वो जरुरी चीजों को नहीं खरीद पाते हैं। एक निर्धन व्यक्ति अपने जीवन में मूल वस्तुओं के अधिकार के बिना जीता है जैसे दो वक्त का भोजन, स्व्च्छ जल, घर, कपड़े, उचित शिक्षा आदि। ये लोग जीने के न्यूनतम स्तर को भी बनाए रखने में विफल हो जाते हैं जैसे अस्तित्व के लिये जरुरी उपभोग और पोषण आदि।

भारत में निर्धनता के कई कारण हैं हालांकि राष्ट्रीय आय का गलत वितरण भी एक कारण है। कम आय वर्ग समूह के लोग उच्च आय वर्ग समूह के लोगों से बहुत ज्यादा गरीब होते हैं। गरीब परिवार के बच्चों को उचित शिक्षा, पोषण और खुशनुमा बचपन का माहौल कभी नसीब नहीं हो पाता है। निर्धनता का मुख्य कारण, अशिक्षा, भ्रष्टाचार, बढ़ती जनसंख्या, कमजोर कृषि, अमीरी और गरीबी के बीच बढ़ती खाई आदि है।

गरीबी मानव जीवन की वह समस्या है, जिसके कारण इससे ग्रसित व्यक्ति को अपने जीवन में मूलभूत सुविधाएं भी नही मिल पाती है। यही कारण है कि वर्तमान समय में गरीबी से निवारण के कई उपाय ढ़ूढे जा रहे है, ताकि विश्व भर के लोगों के जीवन स्तर को सुधारा जा सके।

निबंध 3 (500 शब्द)

गरीबी हमारे जीवन में एक चुनौती बन गया है, आज के समय में विश्वभर के कई देश इसके चपेट में आ गये है। इस विषय में जारी आकड़ो को देखने से पता चलता है कि वैश्विक स्तर पर गरीबी उन्मूलन के लिये हो रहे इतने सारे उपायों के बावजूद भी यह समस्या ज्यो की त्यो बनी हुई है।

गरीबी को नियंत्रित करने के उपाय

निर्धनता जीवन की खराब गुणवत्ता, अशिक्षा, कुपोषण, मूलभूत आवयश्यकताओं की कमी, निम्न मानव संसाधन विकास आदि को प्रदर्शित करता है। भारत में जैसे विकासशील देशों में निर्धनता एक प्रमुख समस्या है। ये एक ऐसा तथ्य है जिसमें समाज में एक वर्ग के लोग अपने जीवन की मूलभूत जरुरतों को भी पूरा नहीं कर सकते हैं।

पिछले पाँच वर्षों में गरीबी के स्तर में कुछ कमी दिखाई दी है (1993-94 में 35.97% से 1999-2000 में 26.1%)। ये राज्य स्तर पर भी घटा है जैसे उड़ीसा में 47.15% से 48.56%, मध्य प्रदेश में 37.43% से 43.52%, उत्तर प्रदेश में 31.15% से 40.85% और पश्चिम बंगाल में 27.02% से 35.66% तक। हालांकि इसके बावजूद इस बात पर कोई विशेष खुशी या गर्व नही महसूस किया जा सकता है क्योंकि अभी भी भारत में लगभग 26 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन व्यतीत करने को मजबूर है।

भारत में गरीबी कुछ प्रभावकारी कार्यक्रमों के प्रयोगों के द्वारा मिटायी जा सकती है, हालांकि इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये केवल सरकार के द्वारा ही नहीं बल्कि सभी के समन्वित प्रयास की जरुरत है। खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक शिक्षा, जनसंख्या नियंत्रण, परिवार कल्याण, रोज़गार सृजन आदि जैसे मुख्य संघटकों के द्वारा गरीब सामाजिक क्षेत्रों को विकसित करने के लिये भारत सरकार को कुछ असरकारी रणनीतियों को बनाना होगा।

गरीबी का क्या प्रभाव है?

गरीबी के ये कुछ निम्न प्रभाव हैं जैसे:

  • निरक्षरता: पैसों की कमी के चलते उचित शिक्षा प्राप्त करने के लिये गरीबी लोगों को अक्षम बना देती है।
  • पोषण और संतुलित आहार: गरीबी के कारण संतुलित आहार और पर्याप्त पोषण की अपर्याप्त उपलब्धता ढ़ेर सारी खततरनाक और संक्रामक बीमारियाँ लेकर आती है।
  • बाल श्रम: ये बड़े स्तर पर अशिक्षा को जन्म देता है क्योंकि देश का भविष्य बहुत कम उम्र में ही बहुत ही कम कीमत पर बाल श्रम में शामिल हो जाता है।
  • बेरोज़गारी: गरीबी के वजह से बेरोजगारी भी उत्पन्न होती है, जोकि लोगो के सामान्य जीवन को प्रभावित करने का कार्य करता है। ये लोगों को अपनी इच्छा के विपरीत जीवन जीने को मजबूर करता है।
  • सामाजिक चिंता: अमीर और गरीब के बीच आय के भयंकर अंतर के कारण ये सामाजिक चिंता उत्पन्न करता है।
  • आवास की समस्या: फुटपाथ, सड़क के किनारे, दूसरी खुली जगहें, एक कमरे में एक-साथ कई लोगों का रहना आदि जीने के लिये ये बुरी परिस्थिति उत्पन्न करता है।
  • बीमारियां: विभिन्न संक्रामक बीमारियों को ये बढ़ाता है क्योंकि बिना पैसे के लोग उचित स्वच्छता और सफाई को बनाए नहीं रख सकते हैं। किसी भी बीमारी के उचित इलाज के लिये डॉक्टर के खर्च को भी वहन नहीं कर सकते हैं।
  • स्त्री संपन्नता में निर्धनता: लौंगिक असमानता के कारण महिलाओं के जीवन को बड़े स्तर पर प्रभावित करती है और वो उचित आहार, पोषण और दवा तथा उपचार सुविधा से वंचित रहती है।

समाज में भ्रष्टाचार, अशिक्षा तथा भेदभाव जैसी ऐसी समस्याएं है, जो आज के समय में विश्व भर को प्रभावित कर रही है। इस देखते हुए हमें इन कारणों की पहचान करनी होगी और इनसे निपटने की रणनीती बनाते हुए समाज के विकास को सुनिश्चित करना होगा क्योंकि गरीबी का उन्मूलन मात्र समग्र विकास के द्वारा ही संभव है।

निबंध 4 (600 शब्द)

निर्धनता एक परिस्थिति है जिसमें लोग जीवन के आधारभूत जरुरतों जैसे कि अपर्याप्त भोजन, कपड़े और छत आदि को भी नही प्राप्त कर पाते है। भारत में ज्यादातर लोग ठीक ढंग से दो वक्त की रोटी नही हासिल कर सकते, वो सड़क किनारे सोते हैं और गंदे कपड़े पहनते हैं। वो उचित स्वस्थ पोषण, दवा और दूसरी जरुरी चीजें नहीं पाते हैं। शहरी जनसंख्या में बढ़ोत्तरी के कारण शहरी भारत में गरीबी बढ़ी है क्योंकि नौकरी और धन संबंधी क्रियाओं के लिये ग्रामीण क्षेत्रों से लोग शहरों और नगरों की ओर पलायन कर रहें है। लगभग 8 करोड़ लोगों की आय गरीबी रेखा से नीचे है और 4.5 करोड़ शहरी लोग सीमारेखा पर हैं। झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले अधिकतर लोग अशिक्षित होते हैं। कुछ कदमों के उठाये जाने के बावजूद गरीबी को घटाने के संदर्भ में कोई भी संतोषजनक परिणाम नहीं दिखाई देता है।

गरीबी के कारण एवं निवारण

भारत में गरीबी का मुख्य कारण बढ़ती जनसंख्या, कमजोर कृषि, भ्रष्टाचार, पुरानी प्रथाएं, अमीर और गरीब के बीच में बड़ी खाई, बेरोज़गारी, अशिक्षा, संक्रामक रोग आदि है। भारत में जनसंख्या का एक बड़ा भाग कृषि पर निर्भर करता है जो कि गरीब है और गरीबी का कारण है। आमतौर पर खराब कृषि और बेरोज़गारी की वजह से लोगों को भोजन की कमी से जूझना पड़ता है। भारत में बढ़ती जनसंख्या भी गरीबी का कारण है। अधिक जनसंख्या मतलब अधिक भोजन, पैसा और घर की जरुरत। मूल सुविधाओं की कमी में, गरीबी ने तेजी से अपने पाँव पसारे हैं। अत्यधिक अमीर और भयंकर गरीब ने अमीर और गरीब के बीच की खाई को बहुत चौड़ा कर दिया है।

गरीबी का प्रभाव

गरीबी लोगों को कई तरह से प्रभावित करती है। गरीबी के कई प्रभाव हैं जैसे अशिक्षा, असुरक्षित आहार और पोषण, बाल श्रम, खराब घर, गुणवत्ताहीन जीवनशैली, बेरोजगारी, खराब साफ-सफाई, पुरुषों की तुलना में महिलाओं में गरीबी की अधिकता, आदि। पैसों की कमी की वजह से अमीर और गरीब के बीच खाई बढ़ती ही जा रही है। ये अंतर ही किसी देश को अविकसित की श्रेणी की ओर ले जाता है। गरीबी की वजह से ही कोई छोटा बच्चा अपने परिवार की आर्थिक मदद के लिये स्कूल जाने के बजाय कम मजदूरी पर काम करने को मजबूर हो जाता है।

गरीबी को जड़ से हटाने का समाधान

इस ग्रह पर मानवता की अच्छाई के लिये त्वरित आधार पर गरीबी की समस्या को सुलझाने के लिये ये बहुत जरुरी है। कुछ समाधान जो गरीबी की समस्या को सुलझाने में बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं वो इस प्रकार है:

  • फायदेमंद बनाने के साथ ही अच्छी खेती के लिये किसानों को उचित और जरुरी सुविधा मिलनी चाहिये।
  • बालिग लोग जो अशिक्षित हैं को जीवन की बेहतरी के लिये जरुरी प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये।
  • हमेशा बढ़ रही जनसंख्या और इसी तरह से गरीबी को जाँचने के लिये लोगों के द्वारा परिवार नियोजन का अनुसरण करना चाहिये।
  • गरीबी को मिटाने के लिये पूरी दुनिया से भ्रष्टाचार का खात्मा करना चाहिये।
  • हरेक बच्चों को स्कूल जाना चाहिये और पूरी शिक्षा प्राप्त करनी चाहिये।
  • रोजगार के रास्ते होने चाहिये जहाँ सभी वर्गों के लोग एक साथ कार्य कर सकें।

गरीबी केवल एक इंसान की समस्या नहीं है बल्कि ये राष्ट्रीय समस्या है। इसे त्वरित आधार पर कुछ प्रभावी तरीकों को लागू करके सुलझाना चाहिये। सरकार द्वारा निर्धनता को हटाने के लिये विभिन्न प्रकार के कदम उठाये गये हालांकि कोई भी स्पष्ट परिणाम दिखाई नहीं देता। लोग, अर्थव्यवस्था, समाज और देश के चिरस्थायी और समावेशी वृद्धि के लिये गरीबी का उन्मूलन बहुत जरुरी है। गरीबी को जड़ से उखाड़ने के लिये हरेक व्यक्ति का एक-जुट होना बहुत आवश्यक है।

Essay on Poverty in Hindi

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poverty essay in hindi

विषय-सूचि

गरीबी पर निबंध, essay on poverty in hindi (100 शब्द)

गरीबी किसी भी व्यक्ति के अत्यंत गरीब होने की अवस्था है। यह चरम स्थिति है जब किसी व्यक्ति को जीवन को जारी रखने के लिए आवश्यक आवश्यक वस्तुओं की कमी महसूस होती है जैसे कि आश्रय, पर्याप्त भोजन, कपड़े, दवाइयां, आदि।

गरीबी के कुछ सामान्य कारण हैं, अतिवृद्धि, घातक और महामारी रोग, प्राकृतिक आपदाएं। निम्न कृषि उत्पादन, रोजगार की कमी, देश में जातिवाद, अशिक्षा, लैंगिक असमानता, पर्यावरणीय समस्याएं, देश में अर्थव्यवस्था के बदलते रुझान, उचित शिक्षा की कमी, अस्पृश्यता, लोगों के अपने अधिकारों तक सीमित या अपर्याप्त पहुंच, राजनीतिक हिंसा, संगठित अपराध , भ्रष्टाचार, प्रेरणा की कमी, आलस्य, पुरानी सामाजिक मान्यताएं, आदि। भारत में गरीबी को प्रभावी समाधानों के बाद कम किया जा सकता है, लेकिन सभी नागरिकों के व्यक्तिगत प्रयासों की आवश्यकता है।

poverty essay in hindi

गरीबी पर निबंध, poverty essay in hindi (150 शब्द)

हम गरीबी को भोजन, उचित आश्रय, कपड़ों, दवाओं, शिक्षा और समान मानवाधिकारों की कमी के रूप में परिभाषित कर सकते हैं। गरीबी किसी व्यक्ति को भूखे रहने के लिए, बिना आश्रय के, बिना कपड़ों, शिक्षा और उचित अधिकारों के लिए मजबूर करती है।

देश में गरीबी के विभिन्न कारण हैं, हालांकि समाधान भी हैं, लेकिन समाधानों का पालन करने के लिए भारतीय नागरिकों में उचित एकता की कमी के कारण, गरीबी दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। किसी भी देश में महामारी रोगों का प्रसार गरीबी का कारण है क्योंकि गरीब लोग अपने स्वास्थ्य और स्वास्थ्य की स्थिति का ध्यान नहीं रख सकते हैं।

गरीबी लोगों को डॉक्टर के पास जाने, स्कूल जाने, पढ़ने, ठीक से बोलने, तीन वक्त का खाना खाने, जरूरत के कपड़े पहनने, खुद का घर खरीदने, नौकरी के लिए सही तरीके से वेतन पाने आदि में असमर्थ बनाती है। व्यक्ति अशुद्ध पानी पीने, गंदे स्थानों पर रहने और अनुचित भोजन खाने के कारण बीमारी की ओर जा सकता है। गरीबी शक्तिहीनता और स्वतंत्रता की कमी का कारण बनती है।

गरीबी पर निबंध, poverty essay in hindi (200 शब्द)

गरीबी एक गुलाम जैसी स्थिति की तरह है जब कोई व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार कुछ भी करने में असमर्थ हो जाता है। इसके कई चेहरे हैं जो व्यक्ति, स्थान और समय के अनुसार बदलते हैं। यह कई मायनों में वर्णित किया जा सकता है कि कोई व्यक्ति इसे महसूस करता है या इसे जी रहा है।

गरीबी एक ऐसी स्थिति है जिसे कोई भी नहीं जीना चाहता है, लेकिन इसे कस्टम, प्रकृति, प्राकृतिक आपदा, या उचित शिक्षा की कमी के कारण ले जाना पड़ता है। व्यक्ति इसे जीता है, आम तौर पर बच निकलना चाहता है। गरीबी गरीब लोगों को खाने के लिए पर्याप्त पैसा कमाने, शिक्षा तक पहुंच, पर्याप्त आश्रय पाने, आवश्यक कपड़े पहनने और सामाजिक और राजनीतिक हिंसा से सुरक्षा के लिए कार्रवाई करने का आह्वान है।

यह एक अदृश्य समस्या है जो किसी व्यक्ति और उसके सामाजिक जीवन को कई तरह से बुरी तरह प्रभावित करती है। गरीबी पूरी तरह से रोकी जा सकने वाली समस्या है लेकिन कई कारण हैं जो इसे पिछले समय से जारी रखते हैं और जारी रखते हैं।

गरीबी व्यक्ति को स्वतंत्रता, मानसिक कल्याण, शारीरिक कल्याण और सुरक्षा की कमी रखती है। उचित शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य, पूर्ण साक्षरता, सभी के लिए घर, और सरल जीवन जीने के लिए अन्य आवश्यक चीजों को लाने के लिए देश और दुनिया से गरीबी को हटाने के लिए सभी को संयुक्त रूप से काम करना बहुत आवश्यक है।

गरीब पर निबंध, essay on indian poverty in hindi (250 शब्द)

गरीबी एक मानवीय स्थिति है जो मानव जीवन में निराशा, दु:ख और दर्द लाती है। गरीबी पैसे की कमी है और जीवन को उचित तरीके से जीने के लिए आवश्यक सभी चीजें हैं। गरीबी एक बच्चे को बचपन में स्कूल में प्रवेश करने में असमर्थ बना देती है और एक दुखी परिवार में अपना बचपन जीती है।

रोजाना दो वक्त की रोटी और मक्खन की व्यवस्था करने, बच्चों के लिए पाठ्य पुस्तकें खरीदने, बच्चों की देखभाल के लिए जिम्मेदार माता-पिता का दुःख आदि के लिए गरीबी कुछ रुपयों की कमी है। हम गरीबी को कई तरीकों से परिभाषित कर सकते हैं।

भारत में गरीबी को देखना बहुत आम बात है क्योंकि यहां ज्यादातर लोग जीवन की बुनियादी जरूरतों को पूरा नहीं कर सकते हैं। यहां की आबादी का एक बड़ा प्रतिशत अशिक्षित, भूखा और बिना घर और कपड़े के है। यह खराब भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य कारण है। गरीबी के कारण भारत में लगभग आधी आबादी दयनीय जीवन जी रही है।

गरीबी एक ऐसी स्थिति बनाती है जिसमें लोग पर्याप्त आय प्राप्त करने में विफल होते हैं इसलिए वे आवश्यक चीजें नहीं खरीद सकते हैं। एक गरीब आदमी बिना किसी सुविधा के अपना जीवन यापन करता है, जैसे कि दो वक्त का खाना, पीने का साफ पानी, कपड़े, घर, उचित शिक्षा इत्यादि। अस्तित्व।

भारत में गरीबी के विभिन्न कारण हैं, लेकिन राष्ट्रीय आय का वितरण भी एक कारण है। निम्न आय वर्ग के लोग उच्च आय वर्ग की तुलना में अपेक्षाकृत गरीब होते हैं। गरीब परिवार के बच्चों को उचित स्कूली शिक्षा, उचित पोषण और खुशहाल बचपन का कभी मौका नहीं मिलता है। गरीबी के सबसे महत्वपूर्ण कारण अशिक्षा, भ्रष्टाचार, बढ़ती जनसंख्या, खराब कृषि, गरीबों और अमीरों के बीच अंतर आदि हैं।

गरीब पर निबंध, poverty a curse essay in hindi (300 शब्द)

गरीबी जीवन की खराब गुणवत्ता, अशिक्षा, कुपोषण, बुनियादी जरूरतों की कमी, कम मानव संसाधन विकास आदि का प्रतिनिधित्व करती है। यह विशेष रूप से भारत में विकासशील देश के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। यह एक ऐसी घटना है जिसमें समाज का एक वर्ग अपने जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकता है।

इसने पिछले पांच वर्षों में गरीबी स्तर में कुछ गिरावट देखी है (1999-2000 में 26.1%, 1993-94 में 35.97% से)। राज्य स्तर पर भी इसमें गिरावट आई है जैसे कि उड़ीसा में यह 47.15% घटकर 48.56%, मध्य प्रदेश में 43.42% से 37.43%, यूपी में 31.15% 40.85% और पश्चिम बंगाल में 27.6% 35.66% हो गया। भारत में गरीबी में कुछ गिरावट के बजाय यह खुशी की बात नहीं है क्योंकि भारतीय बीपीएल अभी भी बहुत बड़ी संख्या (26 करोड़) है।

भारत में गरीबी को कुछ प्रभावी कार्यक्रमों के उपयोग से मिटाया जा सकता है, हालांकि सरकार द्वारा सभी के लिए एक संयुक्त प्रयास की जरूरत है। भारत सरकार को विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक शिक्षा, जनसंख्या नियंत्रण, परिवार कल्याण, रोजगार सृजन आदि जैसे प्रमुख घटकों के माध्यम से गरीब सामाजिक क्षेत्र को विकसित करने के लिए कुछ प्रभावी रणनीति बनानी चाहिए।

गरीबी के प्रभाव क्या हैं:

गरीबी के कुछ प्रभाव इस प्रकार हैं:

  • निरक्षरता: गरीबी पैसे की कमी के कारण लोगों को उचित शिक्षा प्राप्त करने में असमर्थ बनाती है।
  • पोषण और आहार: गरीबी के कारण आहार की अपर्याप्त उपलब्धता और अपर्याप्त पोषण होता है जो बहुत सारी घातक बीमारियों और कमी वाली बीमारियों को लाता है।
  • बाल श्रम: यह विशाल स्तर की निरक्षरता को जन्म देता है क्योंकि देश का भविष्य कम उम्र में ही बाल श्रम में शामिल हो जाता है।
  • बेरोजगारी: बेरोजगारी गरीबी का कारण बनती है क्योंकि यह पैसे की कमी पैदा करती है जो लोगों के दैनिक जीवन को प्रभावित करती है। यह लोगों को उनकी इच्छा के खिलाफ अधूरा जीवन जीने के लिए मजबूर करता है।
  • सामाजिक तनाव: यह अमीर और गरीब के बीच आय असमानता के कारण सामाजिक तनाव पैदा करता है।
  • आवास की समस्याएं: यह लोगों को घर के बाहर रहने के लिए फुटपाथ, सड़क के किनारे, अन्य खुले स्थानों, एक कमरे में कई सदस्यों, आदि के लिए बुरी स्थिति बनाता है।
  • रोग: यह विभिन्न महामारी रोगों को जन्म देता है क्योंकि पैसे की कमी वाले लोग उचित स्वच्छता और स्वच्छता नहीं रख सकते हैं। इसके अलावा वे किसी भी बीमारी के समुचित इलाज के लिए डॉक्टर का खर्च नहीं उठा सकते हैं।
  • गरीबी का उन्मूलन: गरीबी लैंगिक असमानता के कारण महिलाओं के जीवन को काफी हद तक प्रभावित करती है और उन्हें उचित आहार, पोषण, दवाओं और उपचार की सुविधा से वंचित रखती है।

गरीबी पर निबंध, essay on poverty in hindi (400 शब्द)

प्रस्तावना:.

गरीबी एक ऐसी स्थिति है जिसमें लोग जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं जैसे कि भोजन, कपड़े और आश्रय की अपर्याप्तता से वंचित रह जाते हैं। भारत में अधिकांश लोग अपने दो समय के भोजन को ठीक से नहीं पा सकते हैं, सड़क के किनारे सोते हैं और गंदे और पुराने कपड़े पहनते हैं।

उन्हें उचित और स्वस्थ पोषण, दवाएं, और अन्य आवश्यक चीजें नहीं मिलती हैं। शहरी आबादी में वृद्धि के कारण शहरी भारत में गरीबी बढ़ रही है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों के लोग रोजगार पाने या कुछ वित्तीय गतिविधि करने के लिए शहरों और कस्बों में पलायन करना पसंद करते हैं।

लगभग 8 करोड़ शहरी लोगों की आय गरीबी रेखा से नीचे है और 4.5 करोड़ शहरी लोग गरीबी के स्तर की सीमा रेखा पर हैं। बड़ी संख्या में लोग झुग्गी में रहते हैं जो निरक्षर हैं। कुछ पहल के बावजूद गरीबी में कमी के संबंध में कोई संतोषजनक परिणाम नहीं दिखा है।

गरीबी के कारण:

भारत में गरीबी के मुख्य कारण बढ़ती जनसंख्या, गरीब कृषि, भ्रष्टाचार, पुराने रीति-रिवाज, गरीब और अमीर लोगों के बीच बहुत बड़ी खाई, बेरोजगारी, अशिक्षा, महामारी रोग आदि हैं। भारत में लोगों का एक बड़ा प्रतिशत कृषि पर निर्भर है जो गरीब है। गरीबी का कारण। आमतौर पर लोग खराब कृषि और बेरोजगारी के कारण भोजन की कमी का सामना करते हैं।

कभी बढ़ती जनसंख्या भी भारत में गरीबी का कारण है। अधिक जनसंख्या का अर्थ है अधिक भोजन, धन और मकान। बुनियादी सुविधाओं की कमी में, गरीबी तेजी से बढ़ती है। अतिरिक्त अमीर और अतिरिक्त गरीब बनना अमीर और गरीब लोगों के बीच एक विशाल चौड़ी खाई बनाता है। अमीर लोग अमीर हो रहे हैं और गरीब लोग गरीब बढ़ रहे हैं जो दोनों के बीच आर्थिक अंतर पैदा करता है।

गरीबी का प्रभाव:

गरीबी कई मायनों में लोगों के जीवन को प्रभावित करती है। गरीबी के विभिन्न प्रभाव हैं जैसे अशिक्षा, खराब आहार और पोषण, बाल श्रम, गरीब आवास, गरीब जीवन शैली, बेरोजगारी, गरीब स्वच्छता, गरीबी का स्त्रीकरण, आदि। गरीब लोग स्वस्थ आहार की व्यवस्था नहीं कर सकते हैं, ना ही अच्छी जीवन शैली बनाए रख सकते हैं, घर, अच्छे कपड़े, उचित शिक्षा आदि, पैसे की कमी के कारण जो अमीर और गरीब के बीच बहुत बड़ा अंतर पैदा करता है।

यह अंतर अविकसित देश की ओर जाता है। गरीबी छोटे बच्चों को कम खर्च पर काम करने के लिए मजबूर करती है और स्कूल जाने के बजाय उनके परिवार की आर्थिक मदद करती है।

गरीबी उन्मूलन के उपाय:

इस ग्रह पर मानवता की भलाई के लिए गरीबी की समस्या को तत्काल आधार पर हल करना बहुत आवश्यक है। गरीबी की समस्या को हल करने में कुछ उपाय जो बड़ी भूमिका निभा सकते हैं वे हैं:

  • किसानों को अच्छी कृषि के साथ-साथ उसे लाभकारी बनाने के लिए उचित और आवश्यक सुविधाएं मिलनी चाहिए।
  • जो लोग अनपढ़ हैं, उन्हें जीवन की बेहतरी के लिए आवश्यक प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
  • बढ़ती जनसंख्या और इस प्रकार गरीबी की जांच के लिए लोगों द्वारा परिवार नियोजन का पालन किया जाना चाहिए।
  • गरीबी को कम करने के लिए दुनिया भर में भ्रष्टाचार को समाप्त किया जाना चाहिए।
  • प्रत्येक बच्चे को स्कूल जाना चाहिए और उचित शिक्षा लेनी चाहिए।
  • रोजगार के ऐसे रास्ते होने चाहिए जहां सभी श्रेणियों के लोग एक साथ काम कर सकें।

निष्कर्ष:

गरीबी केवल एक व्यक्ति की समस्या नहीं है, बल्कि यह एक राष्ट्रीय समस्या है। इसे कुछ प्रभावी समाधानों को लागू करके तत्काल आधार पर हल किया जाना चाहिए। सरकार द्वारा गरीबी को कम करने के लिए कई तरह के कदम उठाए गए हैं लेकिन कोई स्पष्ट परिणाम नहीं दिख रहे हैं।

लोगों, अर्थव्यवस्था, समाज और देश के सतत और समावेशी विकास के लिए गरीबी का उन्मूलन आवश्यक है। गरीबी का उन्मूलन प्रत्येक और हर व्यक्ति के एकजुट प्रयास से प्रभावी ढंग से किया जा सकता है।

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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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इस लेख में आप भारत में गरीबी पर निबंध Essay on Poverty in India Hindi पढ़ेंगे। इसमें हमने गरीबी का अर्थ, भारत में गरीबी के कारण, इसका प्रभाव, गरीबी उन्मूलन, तथ्य जैसी कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी गई है।

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भारत में गरीबी एक व्यापक स्थिति है आजादी के बाद से गरीबी एक बड़ी चिंता हमेशा बनी हुई है। इस आधुनिक युग में गरीबी देश में एक लगातार बढ़ता हुआ खतरा है। 1.26 अरब जनसंख्या की  25% से ज्यादा अभी भी गरीबी रेखा से नीचे रहते है।

एक देश का स्वास्थ्य भी उन लोगों के मानकों पर निर्धारित होता है जो राष्ट्रीय आय और घरेलू उत्पाद के अलावा उस देश के लोगों के स्तिथि पर आधारित होता हैं। इस प्रकार गरीबी किसी भी देश के विकास पर एक बड़ा धब्बा बना रहता है।

गरीबी की समस्या क्या है? What is Poverty in Hindi?

गरीबी को एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें एक व्यक्ति जीवन यापन के लिए बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ होता है। इन बुनियादी जरूरतों में शामिल हैं – भोजन, कपड़े और मकान।

भारत में गरीबी अर्थव्यवस्था, अर्द्ध-अर्थव्यवस्था और परिभाषाओं के सभी आयामों को ध्यान में रखते हुए परिभाषित की गई है जो अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के अनुसार तैयार की जाती हैं। भारत खपत और आय दोनों के आधार पर गरीबी के स्तर को मापता है।

यह गरीबी रेखा भारत में गरीबी को मापने का काम करती है। एक गरीबी रेखा को अनुमानित न्यूनतम स्तर की आय के रूप में परिभाषित किया जा सकता है क्योंकि एक परिवार को जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम होना चाहिए।

भारत में गरीबी के कारण Causes of Poverty in India

जनसंख्या वृद्धि प्रति व्यक्ति आय को कम करती है। इसके अलावा, एक परिवार का आकार बड़ा, कम प्रति व्यक्ति आय है। भूमि और संपत्ति का असमान वितरण एक और समस्या है जो किसानों के हाथों में ज़मीन की एकाग्रता को समान रूप से रोकता है।

गरीबी का प्रभाव Effect of Poverty in India

आबादी के लगभग आधे लोगों में उचित आश्रय नहीं है, सभ्य स्वच्छता प्रणाली के पानी स्रोत गांव में मौजूद नहीं है, और हर गांवों में एक माध्यमिक विद्यालय और उचित सड़कों की कमी आज भी भरी मात्र में है।

गरीबी उन्मूलन की सरकारी योजनाएं Government Schemes for Poverty Eradication in India

इसे सबसे आगे लाने की जरूरत है कि गरीबी के अनुपात में जो भी मामूली गिरावट देखी गई है, वह सरकार की पहल की वजह से हुई है, जिसका उद्देश्य लोगों को गरीबी से उत्थान करना है। हालांकि, ​​ भ्रष्टाचार के कारण कुछ भी सही प्रकार से नहीं हो पा रहा है और योजनायें विफल हो रही हैं।

पीडीएस – पीडीएस गरीबों को रियायती भोजन और गैर-खाद्य वस्तुओं का वितरण करती है। देश भर में कई राज्यों में स्थापित सार्वजनिक वितरण विभागों के एक नेटवर्क के माध्यम से प्रमुख वस्तुएं वितरित की जाती है जिनमें गेहूं, चावल, चीनी और केरोसिन जैसे मुख्य अनाज शामिल हैं।

लेकिन, पीडीएस द्वारा प्रदान किए गए अनाज परिवार के उपभोग की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

पीडीएस योजना के अंतर्गत, गरीबी रेखा से नीचे प्रत्येक परिवार को हर महीने 35 किलो चावल या गेहूं के लिए योग्य होता है, जबकि गरीबी रेखा से ऊपर एक घर मासिक आधार पर 15 किलोग्राम अनाज का हकदार होता है।

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम ( मनरेगा ) – यह लक्ष्य ग्रामीण इलाकों में कम से कम 100 दिनों की गारंटीकृत मजदूरी रोजगार प्रदान करके हर घर के लिए ग्रामीण परिवारों में आजीविका की सुरक्षा सुनिश्चित करने की गारंटी देता है।

आरएसबीवाई (राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना) – यह गरीबों के लिए स्वास्थ्य बीमा है । यह जनता के साथ-साथ निजी अस्पताल में भर्ती के लिए नकद रहित बीमा प्रदान करता है।

भारत में गरीबी के बारे में तथ्य Facts About Poverty in India

भारत में गरीबी के विषय में कुछ मुख्य तथ्य –

निष्कर्ष Conclusion

भारत में गरीबी धीरे-धीरे है लेकिन निश्चित रूप से कम हो रही है। सरकार द्वारा सावधानीपूर्वक योजना गरीबी से पीड़ित लोगों को लाभकारी रहेगी।

आशा करते हैं आपको भारत में गरीबी पर यह निबंध पसंद आया होगा और इसके कारण, प्रभाव, गरीबी उन्मूलन, तथा तथ्य के विषय में पुरी जानकारी मिल पाई होगी।

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गरीबी पर निबंध (Poverty Essay in Hindi and English)

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गरीबी पर बड़े तथा छोटे निबंध (Long and Short Essay on Poverty in Hindi, Garibi par Nibandh Hindi mein)

गरीबी बहुत गरीब होने की स्थिति है, और यह किसी को भी हो सकती है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें एक व्यक्ति के पास रहने के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण चीजें जैसे छत, भोजन, कपड़े, दवा आदि पर्याप्त नहीं होती है। अधिक जनसंख्या, घातक और संक्रामक बीमारियां, प्राकृतिक आपदाएं, कम कृषि उत्पादन, बेरोजगारी, जातिवाद , निरक्षरता, लैंगिक असमानता, पर्यावरणीय समस्याएं, देश में बदलते आर्थिक रुझान, अस्पृश्यता, और लोगों के अधिकारों तक कम या सीमित पहुंच कुछ ऐसी चीजें हैं जो गरीबी का कारण बनती हैं। राजनीतिक हिंसा, अपराध जो सरकार द्वारा भुगतान किया जाता है, भ्रष्टाचार, प्रोत्साहन की कमी, आलस्य, पुराने जमाने की सामाजिक मान्यताओं आदि जैसी समस्याओं से निपटा जाना चाहिए।

निबंध 1 (350 शब्द)

प्रस्तावना.

गरीबी दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण समस्याओं में से एक है। पूरी दुनिया में इस समय बहुत से लोग गरीबी को खत्म करने के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन यह भयानक समस्या दूर नहीं हो रही है। गरीबी हमारे जीवन को आर्थिक और सामाजिक दोनों तरह से प्रभावित करती है।

गरीबी जीवन की सबसे बुरी समस्याओं में से एक है।

एक गरीब व्यक्ति एक गुलाम की तरह है जो कुछ भी नहीं कर सकता जो वह चाहता है। इसके कई पक्ष हैं जो व्यक्ति, स्थान और समय के अनुसार बदलते रहते हैं। एक व्यक्ति कैसे रहता है और वह कैसा महसूस करता है, इस पर निर्भर करते हुए इसे कई तरह से वर्णित किया जा सकता है। कोई भी गरीब नहीं होना चाहता, लेकिन कुछ लोगों को परंपरा, प्रकृति, प्राकृतिक आपदा या शिक्षा की कमी के कारण इसका सामना करना पड़ता है। भले ही एक व्यक्ति को इसे जीना पड़ता है, वे आमतौर पर इससे दूर होना चाहते हैं। गरीबी एक अभिशाप की तरह है क्योंकि यह गरीब लोगों के लिए भोजन के लिए पर्याप्त पैसा कमाना, स्कूल जाना, रहने के लिए एक अच्छी जगह प्राप्त करना, उनकी ज़रूरत के कपड़े प्राप्त करना और सामाजिक और राजनीतिक हिंसा से सुरक्षित रहना कठिन बना देती है।

यह एक ऐसी समस्या है जिसे कोई देख नहीं सकता, लेकिन इसका व्यक्ति और उसके सामाजिक जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। गरीबी एक भयानक समस्या है, लेकिन इसके लंबे समय तक रहने के कई कारण हैं। इसके कारण व्यक्ति में सुरक्षा, स्वतंत्रता और मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य की कमी बनी रहती है। सभी को सामान्य जीवन, अच्छा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, पूर्ण शिक्षा, रहने के लिए जगह और अन्य महत्वपूर्ण चीजें देने के लिए देश और बाकी दुनिया के लिए मिलकर काम करना बहुत महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष

गरीबी एक बड़ी समस्या है जो हमारे जीवन के सभी हिस्सों को प्रभावित करती है। गरीबी एक बीमारी की तरह है जो व्यक्ति के जीवन के हर हिस्से को प्रभावित करती है। इससे व्यक्ति का अच्छा जीवन, शारीरिक स्वास्थ्य, शिक्षा का स्तर आदि सब बर्बाद हो जाता है। यही कारण है कि आधुनिक विश्व में गरीबी को एक भयानक समस्या के रूप में देखा जाता है।

निबंध 2 (400 शब्द)

गरीबी को इस समय दुनिया की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक के रूप में देखा जाता है। गरीबी एक ऐसी मानवीय स्थिति है जो दुख, दर्द और निराशा जैसी समस्याओं का कारण बनती है। जो लोग गरीब होते हैं उन्हें अच्छी शिक्षा नहीं मिलती है और उनका स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं होता है।

गरीब एक त्रासदी

गरीबी मानव होने का एक हिस्सा है, और यह हमें क्रोधित, दुखी और आहत करती है। गरीबी का मतलब है कि एक अच्छा जीवन जीने के लिए जरूरी चीजों को खरीदने के लिए पर्याप्त पैसा न होना। जब कोई बच्चा गरीब परिवार से आता है, तो वह स्कूल नहीं जा पाता है और उसे अपना बचपन घर पर या ऐसे परिवार के साथ बिताना पड़ता है जो अच्छी तरह से काम नहीं करता है। जो लोग गरीब हैं और जिनके पास पर्याप्त पैसा नहीं है, उन्हें दुगनी रोटी खानी पड़ती है, अपने बच्चों के लिए किताबें नहीं खरीद पाते हैं, और अपने बच्चों की ठीक से देखभाल नहीं कर पाते हैं।

गरीबी क्या है इसे समझाने के कई तरीके हैं। भारत में गरीबी बहुत आम है, जहां ज्यादातर लोग अपनी सबसे बुनियादी जरूरतों को भी पूरा नहीं कर पाते हैं। यहां बहुत सारे लोग पढ़-लिख नहीं सकते, भूखे हैं, और बिना कपड़ों या रहने की जगह के रहना पड़ता है। यही भारतीय अर्थव्यवस्था के कमजोर होने का मुख्य कारण है। भारत में लगभग आधे लोग कठिन जीवन जीते हैं क्योंकि वे गरीब हैं।

जब लोग गरीब होते हैं, तो उनके पास अपनी जरूरत की चीजें खरीदने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं होता है। गरीब लोगों को दिन में दो बार भोजन, साफ पानी, घर, कपड़े, अच्छी शिक्षा जैसी बुनियादी चीजों का अधिकार नहीं है। यहां तक कि सबसे बुनियादी चीजें, जैसे खाना-पीना, जो जिंदा रहने के लिए जरूरी हैं, भी इन लोगों को नहीं मिलती हैं।

भारत में लोग गरीब क्यों हैं, इसके कई कारण हैं, लेकिन उनमें से एक यह है कि देश की आय का उचित वितरण नहीं किया जा रहा है। कम आय वाले लोग उच्च आय वाले लोगों की तुलना में बहुत अधिक गरीब होते हैं। गरीब परिवारों के बच्चों को कभी भी सही तरह की शिक्षा, भोजन या बड़े होने के लिए एक खुशहाल जगह नहीं मिलती है। गरीबी का मुख्य कारण पढ़-लिख न पाना, बेईमानी, बढ़ती जनसंख्या, खराब खेती, अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई आदि हैं।

गरीबी मानव जीवन में एक ऐसी समस्या है जो लोगों को जीने के लिए आवश्यक सबसे बुनियादी चीजें भी प्राप्त करने से रोकती है। इस वजह से पूरी दुनिया में गरीबी से छुटकारा पाने और लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए अभी कई कदम उठाए जा रहे हैं।

निबंध 3 (500 शब्द)

गरीबी हमारे जीवन में एक समस्या बन गई है और दुनिया भर के कई देश अब इससे जूझ रहे हैं। इस विषय पर आँकड़ों को देखने से यह स्पष्ट होता है कि भले ही दुनिया भर में गरीबी से छुटकारा पाने के लिए कई कदम उठाए जा चुके हैं, लेकिन समस्या अभी भी मौजूद है।

लोगों को गरीब होने से रोकने के तरीके

गरीबी जीवन की निम्न गुणवत्ता का संकेत है, जैसे कि निरक्षरता, कुपोषण, बुनियादी जरूरतों की कमी, कम मानव संसाधन विकास, आदि। भारत जैसे स्थानों में गरीबी एक बड़ी समस्या है जो अभी भी विकसित हो रही है। यह एक ऐसा तथ्य है जो दर्शाता है कि समाज में कुछ लोग अपनी सबसे बुनियादी जरूरतों को भी पूरा नहीं कर पाते हैं।

पिछले पांच वर्षों में, गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या 1993-1994 में 35.97% से घटकर 1999-2000 में 26.1% हो गई है। यह राज्य स्तर पर भी नीचे चला गया है, उड़ीसा में 47.15% से 48.56%, मध्य प्रदेश में 37.43% से 43.52%, उत्तर प्रदेश में 31.15% से 40.85% और पश्चिम बंगाल में 27.02% से 35.66% तक गिर गया है। फिर भी, खुश होने या गर्व करने का कोई कारण नहीं है क्योंकि भारत में लगभग 26 करोड़ लोग अभी भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं।

भारत कुछ प्रभावी कार्यक्रमों का उपयोग करके गरीबी से छुटकारा पा सकता है, लेकिन ऐसा करने के लिए केवल सरकार ही नहीं, सभी को मिलकर काम करने की जरूरत है। भारत की सरकार को गरीब सामाजिक क्षेत्रों, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में सुधार के लिए कुछ अच्छी योजनाओं के साथ आने की जरूरत है। इन योजनाओं को प्राथमिक शिक्षा, जनसंख्या नियंत्रण, परिवार कल्याण, रोजगार सृजन आदि जैसी चीजों पर ध्यान देना चाहिए।

गरीब होने का क्या परिणाम होता है?

गरीबी के कारण होने वाली कुछ चीजें हैं:.

  • जो लोग गरीब हैं वे अच्छी शिक्षा नहीं प्राप्त कर सकते क्योंकि उनके पास पर्याप्त पैसा नहीं है।
  • पोषण और स्वस्थ आहार: गरीबी के कारण स्वस्थ आहार और पर्याप्त पोषण प्राप्त करना कठिन हो जाता है, जिससे कई खतरनाक और संक्रामक रोग हो सकते हैं।
  • बाल श्रम: यह बहुत से लोगों को पढ़ने या लिखने में सक्षम नहीं होने का कारण बनता है क्योंकि देश का भविष्य बहुत कम उम्र में बहुत कम पैसे में काम कर रहा है।
  • बेरोज़गारी: ग़रीबी भी बेरोज़गारी का एक कारण है, जिससे लोगों के लिए अपना सामान्य जीवन जीना मुश्किल हो जाता है। यह लोगों को न चाहते हुए भी अपना जीवन जीने देता है।
  • सामाजिक चिंता अमीर और गरीब के बीच आय में भारी अंतर के कारण होती है।
  • आवास एक समस्या है क्योंकि लोग बुरी जगहों जैसे फुटपाथ, सड़क के किनारे की खाई, अन्य खुली जगहों, भीड़भाड़ वाले कमरों आदि में रहते हैं।
  • रोग: संक्रामक रोग इसलिए अधिक फैलते हैं क्योंकि धन के बिना लोग अपने आप को स्वच्छ और स्वस्थ नहीं रख सकते हैं। किसी बीमारी का ठीक से इलाज करने के लिए डॉक्टर के बिल भी नहीं भर सकते।
  • गरीबी और महिलाओं की भलाई: लैंगिक असमानता का महिलाओं के जीवन पर बड़ा प्रभाव पड़ता है और उन्हें सही भोजन, पोषण, दवा और स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करने से रोकता है।

आज के समाज में भ्रष्टाचार, अशिक्षा और भेदभाव जैसी समस्याएं हैं जो पूरी दुनिया को प्रभावित करती हैं। इस वजह से, हमें यह पता लगाने की जरूरत है कि लोग गरीब क्यों हैं और उनसे निपटने और समाज को बढ़ने में मदद करने की योजना के साथ आते हैं, क्योंकि गरीबी को समग्र विकास के माध्यम से ही समाप्त किया जा सकता है।

निबंध 4 (600 शब्द)

लोग तब गरीब होते हैं जब उन्हें जीने के लिए सबसे बुनियादी चीजें जैसे पर्याप्त भोजन, कपड़े और रहने के लिए जगह भी नहीं मिल पाती है। भारत में अधिकांश लोगों के पास दिन में दो बार खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं है। वे सड़क के किनारे सोते हैं और गंदे कपड़े पहनते हैं। उन्हें स्वस्थ रहने के लिए भोजन, दवा और अन्य चीजें नहीं मिलती हैं। भारत के शहरों में गरीबी बदतर होती जा रही है क्योंकि अधिक से अधिक लोग ग्रामीण इलाकों से शहरों और कस्बों में काम खोजने और पैसा कमाने के लिए जा रहे हैं। लगभग 8 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं, और शहरों में 4.5 करोड़ लोग सीधे रेखा पर रहते हैं। झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले ज्यादातर लोग पढ़-लिख नहीं सकते। हालांकि कुछ कदम उठाए गए हैं, लेकिन ऐसा नहीं लगता कि गरीबी बेहतर हो रही है।

लोग गरीब क्यों और कैसे हैं

भारत में गरीबी का मुख्य कारण बढ़ती जनसंख्या, कमजोर कृषि, भ्रष्टाचार, काम करने के पुराने तरीके, अमीर और गरीब के बीच एक बड़ी खाई, बेरोजगारी, अशिक्षा, संक्रामक रोग आदि हैं। भारत में बहुत से लोग कृषि पर निर्भर हैं। , जो बहुत अच्छा नहीं है और लोगों के गरीब होने का एक बड़ा कारण है। आम तौर पर लोगों के पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं होता है क्योंकि कृषि खराब है और पर्याप्त नौकरियां नहीं हैं। भारत में गरीबी वहाँ रहने वाले लोगों की बढ़ती संख्या के कारण भी है। अधिक लोगों को भोजन, पैसा और रहने के लिए जगह की जरूरत है। सबसे बुनियादी चीजों के बिना भी गरीबी तेजी से फैली है। बहुत अमीर और बहुत गरीब होने के कारण अमीर और गरीब के बीच की खाई बढ़ी है।

गरीबी के कारण

गरीब होने से लोग कई तरह से प्रभावित होते हैं। गरीबी के कई प्रभाव हैं, जैसे अशिक्षा, अस्वास्थ्यकर आहार, बाल श्रम, खराब आवास, जीवन का खराब तरीका, बेरोजगारी, खराब स्वच्छता, और पुरुषों की तुलना में महिलाओं में गरीबी की उच्च दर, अन्य बातों के अलावा। क्योंकि लोगों के पास पर्याप्त पैसा नहीं है, अमीर और गरीब के बीच की खाई बड़ी होती जा रही है।

इस भिन्नता के कारण ही किसी देश को “अविकसित” कहा जा सकता है। क्योंकि उसका परिवार गरीब है, एक छोटे बच्चे को घर चलाने के लिए स्कूल जाने के बजाय कम वेतन पर काम करना पड़ता है।

दरिद्रता दूर करने का उपाय

गरीबी एक बड़ी समस्या है जिसे इस ग्रह पर सभी लोगों की भलाई के लिए जल्द से जल्द ठीक करने की जरूरत है। गरीबी की समस्या को हल करने में मदद के लिए किए जा सकने वाले कुछ कार्यों में शामिल हैं:

  • खेती को लाभदायक बनाने के साथ-साथ किसानों के पास अच्छे काम करने के लिए आवश्यक उपकरण और सुविधाएं होनी चाहिए।
  • वयस्क जो पढ़ या लिख नहीं सकते उन्हें अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहिए।
  • लोगों की संख्या बढ़ने पर गरीबी को बदतर होने से रोकने के लिए लोगों को परिवार नियोजन का उपयोग करना चाहिए।
  • गरीबी खत्म करने के लिए दुनिया में हर जगह भ्रष्टाचार को रोकने की जरूरत है।
  • हर बच्चे को स्कूल जाना चाहिए और वह सब कुछ सीखना चाहिए जो वह सीख सकता है।
  • विभिन्न वर्गों के लोगों के लिए एक साथ काम करने के तरीके होने चाहिए।

गरीबी किसी एक व्यक्ति की नहीं बल्कि पूरे देश की समस्या है। कुछ प्रभावी तरीकों का उपयोग करके इसे जल्द से जल्द ठीक किया जाना चाहिए। सरकार ने गरीबी से निजात पाने के लिए कई कदम उठाए हैं, लेकिन कोई स्पष्ट परिणाम नजर नहीं आ रहा है। गरीबी से छुटकारा पाना लोगों, अर्थव्यवस्था, समाज और पूरे देश के लिए इस तरह से विकास करना बहुत महत्वपूर्ण है जिससे सभी को लाभ हो। गरीबी से छुटकारा पाने के लिए सभी को मिलकर काम करना बहुत जरूरी है।

गरीबी पर बड़े तथा छोटे निबंध (Long and Short Essay on Poverty in English, Garibi par Nibandh English mein)

Poverty is the state of being very poor, and it can happen to anyone. It’s a situation in which a person doesn’t have enough of the important things he needs to live, like a roof, food, clothes, medicine, etc. Overpopulation, deadly and contagious diseases, natural disasters, low agricultural production, unemployment, casteism, illiteracy, gender inequality, environmental problems, changing economic trends in the country, untouchability, and less or limited access to people’s rights are some of the things that cause poverty. Problems like political violence, crime that is paid for by the government, corruption, a lack of incentives, laziness, old-fashioned social beliefs, etc., must be dealt with.

Essay 1 (350 words)

Poverty is one of the most important problems in the world. Many people are working to end poverty all over the world right now, but this terrible problem isn’t going away. Poverty affects our lives in both a financial and a social way.

Poverty is one of life’s worst problems.

A person who is poor is like a slave who can’t do anything he wants. It has many sides that change based on the person, the place, and the time. It can be described in many ways, depending on how a person lives and how he or she feels. No one wants to be poor, but some people have to deal with it because of tradition, nature, a natural disaster, or a lack of education. Even though a person has to live it, they usually want to get away from it. Poverty is like a curse because it makes it hard for poor people to make enough money for food, to go to school, to get a good place to live, to get the clothes they need, and to stay safe from social and political violence.

It is a problem that no one can see, but it has bad effects on a person and his social life. Poverty is a terrible problem, but there are a lot of reasons why it has been around for a long time. Because of this, a person continues to lack security, independence, and mental and physical health. It is very important for the country and the rest of the world to work together to give everyone a normal life, good physical and mental health, a full education, a place to live, and other important things.

Poverty is a big problem that affects all parts of our lives. Poverty is like a disease that affects every part of a person’s life. Because of this, a person’s good life, physical health, level of education, etc. are all ruined. This is why poverty is seen as a terrible problem in the modern world.

Essay 2 (400 words)

Poverty is seen as one of the biggest problems in the world right now. Poverty is such a human condition that it causes problems like sadness, pain, and hopelessness. People who are poor don’t get a good education, and they also don’t have good health.

tragedy of being poor

Poverty is a part of being human, and it makes us angry, sad, and hurt. Poverty means not having enough money to buy the things you need to live a good life. When a child comes from a poor family, they can’t go to school and have to spend their childhood at home or with a family that doesn’t work well. People who are poor and don’t have enough money have to deal with things like having to eat twice as much bread, not being able to buy books for their kids, and not being able to care for their kids properly.

There are many ways to explain what poverty is. Poverty is very common in India, where most people can’t even meet their most basic needs. Here, a lot of people can’t read or write, are hungry, and have to live without clothes or a place to live. This is the main reason why the Indian economy is so weak. Almost half of the people in India live hard lives because they are poor.

When people are poor, they don’t make enough money to buy the things they need. Poor people don’t have the right to basic things like two meals a day, clean water, a home, clothes, a good education, and so on. Even the most basic things, like eating and drinking, that are needed to stay alive are not met by these people.

There are a lot of reasons why people in India are poor, but one of them is that the country’s income is not being shared fairly. People with low incomes are a lot poorer than those with high incomes. Children from poor families never get the right kind of education, food, or a happy place to grow up. The main causes of poverty are not being able to read or write, being dishonest, a growing population, bad farming, a growing gap between the rich and the poor, etc.

Poverty is a problem in human life that keeps people from getting even the most basic things they need to live. Because of this, many steps are being taken right now to get rid of poverty and raise the standard of living for people all over the world.

Essay 3 (500 words)

Poverty has become a problem in our lives, and many countries all over the world are now struggling with it. By looking at the statistics on this topic, it is clear that even though many steps have been taken to get rid of poverty around the world, the problem still exists.

ways to stop people from being poor

Poverty is a sign of a low quality of life, such as illiteracy, malnutrition, lack of basic needs, low human resource development, etc. Poverty is a big problem in places like India that are still developing. This is a fact that shows that some people in society can’t even meet their most basic needs.

In the last five years, the number of people living in poverty has gone down from 35.97% in 1993–1994 to 26.1% in 1999–2000. It has also gone down at the state level, dropping from 47.15% to 48.56% in Orissa, 37.43% to 43.52% in Madhya Pradesh, 31.15% to 40.85% in Uttar Pradesh, and 27.02% to 35.66% in West Bengal. Even so, there is no reason to be happy or proud because about 26 crore people in India still have to live below the poverty line.

India can get rid of poverty by using some effective programmes, but everyone, not just the government, needs to work together to make this happen. India’s government needs to come up with some good plans to improve the poor social sectors, especially in rural areas. These plans should focus on things like primary education, population control, family welfare, job creation, and so on.

What is the result of being poor?

Some of the things that happen because of poverty are:

  • People who are poor can’t get a good education because they don’t have enough money.
  • Nutrition and a healthy diet: Poverty makes it hard to get a healthy diet and enough nutrition, which can lead to many dangerous and contagious diseases.
  • Child Labor: It leads to a lot of people not being able to read or write because the future of the country is working at a very young age for very little money.
  • Unemployment: Poverty is also a cause of unemployment, which makes it hard for people to live their normal lives. It makes people live their lives even though they don’t want to.
  • Social anxiety is caused by the huge difference in income between the rich and the poor.
  • Housing is a problem because people live in bad places like sidewalks, roadside ditches, other open spaces, overcrowded rooms, etc.
  • Diseases: More infectious diseases spread because people without money can’t keep themselves clean and healthy. Can’t even pay the doctor’s bills to treat any illness properly.
  • Poverty and women’s well-being: Gender inequality has a big impact on women’s lives and keeps them from getting the right food, nutrition, medicine, and health care.

In today’s society, there are problems like corruption, illiteracy, and discrimination that affect the whole world. Because of this, we need to figure out why people are poor and come up with a plan to deal with them and help the society grow, since poverty can only be eliminated through overall growth.

Essay 4 (600 words)

People are poor when they can’t even get the most basic things they need to live, like enough food, clothes, and a place to live. Most people in India don’t have enough food to eat twice a day. They sleep on the side of the road and wear dirty clothes. They don’t get the food, medicine, and other things they need to stay healthy. Poverty in India’s cities is getting worse because more people are moving from the countryside to cities and towns to find work and make money. About 8 crore people live below the poverty line, and 4.5 crore people in cities live right on the line. Most people who live in slums can’t read or write. Even though some steps have been taken, it doesn’t look like poverty is getting better.

Why and how people are poor

The main causes of poverty in India are a growing population, weak agriculture, corruption, old ways of doing things, a huge gap between rich and poor, unemployment, illiteracy, infectious diseases, etc. In India, a lot of people depend on agriculture, which is not very good and is a big reason why people are poor. People usually don’t have enough food to eat because agriculture is bad and there aren’t enough jobs. Poverty in India is also caused by the growing number of people living there. More people need food, money, and a place to live. Without even the most basic things, poverty has spread quickly. The gap between the rich and the poor has grown because of the very rich and the very poor.

caused by poverty

People are affected in many ways by being poor. Poverty has many effects, such as illiteracy, an unhealthy diet, child labour, bad housing, a bad way of life, unemployment, bad sanitation, and a higher rate of poverty among women than men, among other things. Because people don’t have enough money, the gap between rich and poor is getting bigger.

Because of this difference, a country can only be called “underdeveloped.” Because his family is poor, a small child has to work for low pay instead of going to school to help make ends meet.

way to get rid of poverty

Poverty is a big problem that needs to be fixed as soon as possible for the good of all people on this planet. Some of the things that can be done to help solve the problem of poverty include:

  • Along with making farming profitable, farmers should have the tools and facilities they need to do a good job.
  • Adults who can’t read or write should get the training they need to improve their lives.
  • People should use family planning to stop poverty from getting worse as the number of people grows.
  • Corruption needs to stop everywhere in the world for poverty to end.
  • Every kid should go to school and learn everything they can.
  • There should be ways for people from different classes to work together.

Poverty is a problem for the whole country, not just for one person. This should be fixed as soon as possible by using some effective methods. The government has taken many steps to get rid of poverty, but no clear results can be seen. Getting rid of poverty is very important for people, the economy, society, and the country as a whole to grow in a way that benefits everyone. To get rid of poverty, it is very important for everyone to work together.

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Essay on Poverty : छात्र गरीबी पर ऐसे लिख सकते हैं निबंध

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  • Updated on  
  • जून 24, 2024

Essay on Poverty in Hindi

Essay on Poverty in Hindi : गरीबी आज दुनिया की आबादी के लिए एक मुसीबत बन गई है। यह मानव जीवन के कई पहलुओं को छूती है, जिसमें पॉलिटिकल, इकोनॉमिक और सोशल एलिमेंट्स शामिल हैं। हालाँकि गरीबी से बचने के कई तरीके हैं परंतु यह एक लंबी लड़ाई है जिससे सरकारों और नागरिकों को मिलकर लड़ना होगा। आज हम इस ब्लॉग के जरिये आपको Essay on Poverty in Hindi के बारे में जानकारी देंगे।

This Blog Includes:

गरीबी पर 100 शब्दों में निबंध, गरीबी पर 200 शब्दों में निबंध, गरीब के कारण, विश्व गरीबी की स्थिति, गरीबी उन्मूलन में एनजीओ की भूमिका , हम क्या कर सकते हैं, गरीबी समाप्त करने के समाधान.

Essay on Poverty in Hindi 100 शब्दों में नीचे दिया गया है –

दुनिया में गरीबी को अभाव की स्थिति के रूप में परिभाषित किया जाता है और भौतिक संपत्ति, चीजों की बहुत ज्यादा कमी होती है कि लोगों को अपनी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने में भी कठिनाई होती है। लोग जो सोचते हैं उसको पूरा तक नहीं कर पाते हैं। विश्व बैंक के पूर्व अध्यक्ष रॉबर्ट मैकनामारा कहते हैं कि अत्यधिक गरीबी निरक्षरता, कुपोषण, बीमारी, उच्च शिशु मृत्यु दर और कम जीवन प्रत्याशा द्वारा सीमित है। अगर हम किसी देश में गरीबी को मिटाने चाहते हैं, तो उसके लिए सभी स्तरों पर सख्त कदम उठाने की ज़रूरत है। 

जब देश में कोई महामारी का प्रचंड रूप देखने को मिलता है, तो सबसे पहले प्रभावित गरीब व्यक्ति ही होता है। हर देश जो महामारी की बीमारियों से प्रभावित होता है, गरीबी दर में वृद्धि का अनुभव करता है। कभी लोग पर्याप्त चिकित्सा प्राप्त नहीं कर पाते हैं, तो कहीं वे अपना स्वास्थ्य बनाए रखने में असमर्थ होते हैं। गरीबी की स्थिति एक दुखद स्थिति है जो इससे प्रभावित लोगों के जीवन में दर्द, निराशा और दुःख का कारण बनती है।

कई ऐसी जगह है जहां पर लोगों को पर्याप्त मात्रा में भोजन तक नहीं मिलता है, तो कहीं गरीबी एक अधिक गंभीर परिस्थिति है जहाँ लोगों को भूखा रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है। गरीबी में मूल रूप से बुनियादी जरूरतों की कमी है जो एक बेहद खराब जीवन और यहाँ तक कि कम जीवन प्रत्याशा की ओर ले जाती है। इसमें भोजन, आश्रय, दवा, शिक्षा और अन्य बुनियादी आवश्यकताओं की कमी शामिल है। गरीबी का कारण सिर्फ खाना, कपड़े से नहीं है, इसका एक मुख्य कारण है बेरोजगारी। लोगो को अपने घर चलने के लिए पर्याप्त मात्रा में जिन चीजों की जरूरत होती है, उसके लिए रोजगार एक बहुत जरूरी चीज है। 

गरीबी पर 500 शब्दों में निबंध

भारत सहित कई देश में गरीबी कई एक गंभीर समस्या है। गरीबी के कारण मृत्यु दर से लेकर बेरोजगारी में भी बढ़ावा होता है। गरीबी के कारण बहुत से लोग अच्छी शिक्षा और शुद्ध भोजन जैसे मूल सुविधाओं से भी वंचित रह जाते हैं। गरीबी को कम करने के लिए सरकार द्वारा बहुत सी योजनाओं को चलाया जाता है। 

देशों में गरीबी के पीछे कई कारण होते हैं, उनमें से कुछ का नीचे दिए गए है:-

  • देश में पूंजी की कमी
  • रोज़गार के सीमित अवसर
  • नागरिकों में साक्षरता की कमी
  • बड़े परिवार और तेज़ी से बढ़ती आबादी

आपको बता दें की यूनिसेफ के अनुसार, गरीबी के कारण हर दिन करीब 22000 बच्चे अपनी जान गंवाते हैं। दुनिया भर के विकासशील देशों में करीब 1.9 बिलियन बच्चे हैं। इनमें से लगभग 640 मिलियन के पास उचित आश्रय नहीं है, 270 मिलियन चिकित्सा सुविधाओं के बिना रह रहे हैं और लगभग 400 मिलियन के पास सुरक्षित पानी तक पहुँच नहीं है। वहीं गरीबी दुनिया भर में यह स्थिति तेज़ी से बढ़ रही है।

देश में अब कई NGO खुल गए हैं जिनकी मदद से गरीब लोगों को चिकित्सा सेवाओं आदि जैसी विभिन्न सार्वजनिक सेवाएँ प्रदान करती हैं। एनजीओ सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं के लिए गरीबों तक पहुंचाने में भी मदद करती है। इसके साथ ही वो कई बड़े संस्थानों के साथ मिलकर भी गरीबों को मदद करती हैं।

  • हम रोज़गार के अवसर बढ़ाकर गरीबी को कम कर सकते हैं।
  • फाइनेंसियल सर्विसेस सुनिश्चित करना और उन्हें उपलब्ध कराना।
  • सरकार द्वारा गरीबी को कम करने वाली योजनाओं को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना

अगर हम सभी देश और समाज में वास्तविक परिवर्तन लाना चाहते हैं, तो हमको गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली आबादी की सहायता करनी चाहिए। यदि बात करें भारत की तो, भारत में गरीबी के मुख्य दो कारण है। अशिक्षा और बेरोजगारी हैं। अशिक्षा : आजकल बड़े-बड़े स्कूल खुल गए हैं, जिनकी फीस दे पाना किसी मीडिल क्लास या गरीब परिवार को संभव नहीं है। और सरकारी स्कूलों में शिक्षा की सही व्यवस्था न होने की वजह से आज हर कोई अपने बचे को निजी स्कूल में पढ़ने की सोचता है।  इस लिए आज के समय में उचित शिक्षा और आर्थिक सहायता से ही इस समस्या का समाधान हो सकता है। इसके लिए अच्छे स्कूलों और शिक्षकों की पहुंच गांव से लेकर दूर दराज के इलाकों तक होनी चाहिए।

यदि हर बचे को शिक्षा मिलेगी तो वो कहीं न कहीं गरीबी कम हो सकती हैं। भारत में शिक्षा और जनसंख्या नियंत्रण गरीबी के खिलाफ सबसे मजबूत हथियार है। इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा की गई कार्रवाई भारत में गरीबी की स्थिति को काफी हद तक खत्म करने में मदद कर सकती है। 

  • उपलब्ध नौकरियों की विविधता बढ़ानी चाहिए।
  • जिन लोगों में साक्षरता की कमी है, उन्हें उन्नत शिक्षा मिलनी चाहिए।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अपनी जिम्मेदारियों को पर्याप्त रूप से पूरा करने की आवश्यकता है।
  • वंचितों को मुफ्त भोजन और पानी मिलना चाहिए।
  • जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करना आवश्यक है और जन्म नियंत्रण प्रोत्साहन योजनाएँ शुरू करना भी महत्वपूर्ण है।
  • किसानों को उचित कृषि संसाधनों तक पहुँच होनी चाहिए। वे इस तकनीक से अपने लाभ में भी सुधार कर सकते हैं। परिणामस्वरूप वे भोजन की तलाश में महानगरों की ओर पलायन नहीं करेंगे।

अत्यधिक गरीब, बहुत गरीब और गरीब। गरीबी के क्या कारण हैं? रोज़गार के अवसरों की कमी कम मज़दूरी असमानता शिक्षा की कमी स्वास्थ्य समस्याएं प्राकृतिक आपदाएं संघर्ष और युद्ध

औद्योगीकरण की दृष्टि से भारत एक पिछड़ा राज्य है। 

देश में 269.8 मिलियन या कुल जनसंख्या का 21.9% लोग गरीब थे ।

आशा है कि इस ब्लाॅग में आपको Essay on Poverty in Hindi के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी। इसी तरह के अन्य निबंध से संबंधित ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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भारत में गरीबी पर निबंध 10 lines (Poverty In India Essay in Hindi) 100, 200, 300, 500, शब्दों मे

poverty par essay in hindi

Poverty In India Essay in Hindi – गरीबी एक ऐसी स्थिति है जिसमें लोगों के पास भोजन और आश्रय जैसी बुनियादी आवश्यकताओं या जीवित रहने के लिए पर्याप्त धन नहीं होता है। Poverty In India Essay लोगों की आय कम होने के कारण वे अपनी बुनियादी ज़रूरतें भी पूरी नहीं कर पाते हैं। यहां ‘गरीबी’ विषय पर कुछ नमूना निबंध दिए गए हैं।

गरीबी पर 10 पंक्तियाँ (10 Lines on Poverty in Hindi)

  • 1) दुनिया में गरीबी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।
  • 2) यह बहुत कम आय होने की स्थिति है।
  • 3) गरीबी भोजन और आश्रय की कमी है।
  • 4) यह लोगों के जीवन को दुख और दर्द से भर देता है।
  • 5) गरीब लोग अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज सकते।
  • 6) बीमार पड़ने पर वे दवा और अस्पताल का खर्च नहीं उठा सकते।
  • 7) अपर्याप्त पोषण और उपचार के कारण उनकी मृत्यु हो जाती है।
  • 8) समाज के धनी लोगों द्वारा उनका शोषण किया जाता है।
  • 9) बढ़ती अपराध दर गरीबी का परिणाम है।
  • 10) गरीबी बढ़ने का मुख्य कारण जनसंख्या वृद्धि है।

भारत में गरीबी पर 100 शब्द का निबंध (100 Word Essay On Poverty In India in Hindi)

गरीबी व्यक्ति या परिवार की वह वित्तीय स्थिति है जिसमें वे जीवन में अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ होते हैं। एक गरीब व्यक्ति इतना नहीं कमा पाता कि दो वक्त का भोजन, पानी, आश्रय, कपड़ा, सही शिक्षा और बहुत कुछ जैसी बुनियादी ज़रूरतें खरीद सके। भारत में, अधिक जनसंख्या और अविकसितता गरीबी का मुख्य कारण है। भारत की गरीबी को कुछ प्रभावी कार्यक्रमों से कम किया जा सकता है, जिसमें सरकार को प्राथमिक शिक्षा प्रदान करके, जनसंख्या नियंत्रण नीतियों को लागू करने, नौकरियां पैदा करने और रियायती दरों पर बुनियादी आवश्यकताएं प्रदान करके ग्रामीण क्षेत्रों को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। पूरी दुनिया में गरीबी एक बहुत ही गंभीर समस्या है और गरीबी को दूर करने के लिए कई प्रयास किये जा रहे हैं।

भारत में गरीबी पर 200 शब्द का निबंध (200 Word Essay On Poverty In India in Hindi)

गरीबी को उस स्थिति के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसमें किसी व्यक्ति या परिवार के पास बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए धन की कमी होती है। गरीब लोगों के पास अच्छा जीवन यापन करने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है; उनके पास आवास, पोषण और स्कूली शिक्षा के लिए धन नहीं है जो जीवित रहने के लिए महत्वपूर्ण हैं। तो, गरीबी को पूरी तरह से पैसे की कमी, या रोजमर्रा के मानव जीवन में अतिरिक्त व्यापक बाधाओं के रूप में समझा जा सकता है।

महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि गरीबी हिंसा का सबसे खराब रूप है। भारत के विकास में गरीबी सबसे बड़ी बाधा साबित हुई है। 1970 के बाद से, भारत सरकार ने अपनी 5-वर्षीय योजनाओं में गरीबी उन्मूलन को प्राथमिकता दी है। वेतन रोजगार बढ़ाने और सरल सामाजिक सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने के माध्यम से खाद्य सुरक्षा, आवास और रोजगार सुनिश्चित करने के लिए नीतियां बनाई जाती हैं। भारतीय अधिकारियों और गैर-सरकारी निगमों ने गरीबी दूर करने के लिए कई नए कार्यक्रम शुरू किए हैं, जैसे ऋण तक आसान पहुंच, कृषि तकनीकों और मूल्य समर्थन में वृद्धि, और लोगों को व्यावसायिक कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना ताकि वे नौकरियां प्राप्त कर सकें। इन उपायों से अकाल को खत्म करने, पूर्ण गरीबी सीमा को कम करने और निरक्षरता और कुपोषण को कम करने में मदद मिली है।

ग्रामीण-से-शहर प्रवास के कारण पिछले वर्षों में ग्रामीण गरीबी की घटना में गिरावट आई है। गरीबी की समस्या के समाधान के लिए जनसंख्या वृद्धि पर गंभीर अंकुश लगाना आवश्यक है।

भारत में गरीबी पर 300 शब्द का निबंध (300 Word Essay On Poverty In India in Hindi)

गरीबी प्राचीन काल से ही एक सामाजिक समस्या रही है। यह एक ऐसी स्थिति है जहां कोई व्यक्ति भोजन, कपड़े और आश्रय जैसी बुनियादी ज़रूरतें खरीदने में असमर्थ होता है। इसके अलावा, ये व्यक्ति दिन में केवल एक बार भोजन करके ही अपना गुजारा करते हैं क्योंकि वे इससे अधिक वहन नहीं कर सकते। वे भीख मांगने में संलग्न हो सकते हैं क्योंकि वे किसी अन्य तरीके से पैसा नहीं कमा सकते हैं। कभी-कभी, ये व्यक्ति अपनी भूख को संतुष्ट करने के लिए किसी होटल या रेस्तरां के पास कूड़ेदान से सड़ा हुआ भोजन निकाल सकते हैं। वे साफ़ रातों में फुटपाथ या पार्क की बेंचों पर सो सकते हैं। बरसात के दिनों में, वे पुलों या किसी अन्य इनडोर आश्रयों के नीचे सो सकते हैं।

गरीबी कैसे उत्पन्न होती है?

बहुत सारे सामाजिक-आर्थिक चर हैं जो गरीबी को प्रभावित करते हैं। सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण है धन का असमान वितरण। यह भ्रष्टाचार और देश की लगातार बढ़ती आबादी के कारण बढ़ा है। गरीबी का कारण बनने वाला अगला प्रभावशाली कारक अशिक्षा और बेरोजगारी है। ये दोनों कारक साथ-साथ चलते हैं, क्योंकि उचित शिक्षा के बिना बेरोजगारी का आना निश्चित है। गरीबी रेखा के नीचे के अधिकांश लोगों के पास उद्योगों के लिए आवश्यक कोई विपणन योग्य या रोजगार योग्य कौशल नहीं है। यदि इन व्यक्तियों को नौकरी मिल भी जाती है, तो इनमें से अधिकांश को बेहद कम वेतन मिलता है, जो स्वयं का समर्थन करने या परिवार का नेतृत्व करने के लिए अपर्याप्त है।

गरीबी के प्रभाव

जब व्यक्ति जीवन के लिए बुनियादी ज़रूरतें वहन करने में असमर्थ होते हैं, तो अन्य अवांछित परिणाम सामने आते हैं। उदाहरण के लिए, स्वास्थ्य देखभाल का खर्च वहन करना असंभव हो जाता है। इसका मतलब है कि व्यक्ति को बीमारियों और संक्रमण का खतरा बढ़ गया है। कभी-कभी, ये व्यक्ति धन प्राप्त करने के लिए अनुचित तरीकों का भी सहारा लेते हैं – जैसे डकैती, हत्या, हमला और बलात्कार।

गरीबी ख़त्म करने के उपाय

गरीबी कोई ऐसी समस्या नहीं है जिसे एक हफ्ते या एक साल में हल किया जा सके। गरीबी रेखा से नीचे आने वाली आबादी की जरूरतों को पूरा करने वाली प्रासंगिक नीतियों को लागू करने के लिए सरकार को सावधानीपूर्वक योजना बनाने की आवश्यकता है। गरीबी को प्रभावित करने वाला एक अन्य महत्वपूर्ण कारक अशिक्षा और बेरोजगारी है।

इस मुद्दे को एक ही तीर से निपटाया जा सकता है – यानी, शिक्षा और वित्तीय सहायता प्रदान करना। शिक्षा तक पहुंच, विशेष रूप से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के साधन उपलब्ध कराने से व्यक्तियों की रोजगार क्षमता बढ़ती है। इससे सीधे तौर पर गरीबी कम करने में मदद मिलती है क्योंकि व्यक्ति कमाई शुरू कर सकता है। इसलिए, गरीबी से निपटने के लिए सबसे प्रभावी उपकरणों में से एक शिक्षा है।

निष्कर्षतः , भारत में गरीबी अगले एक दशक तक बनी रह सकती है। हालाँकि, ऐसी रणनीतियाँ हैं जो समस्या को धीरे-धीरे कम करने में मदद करती हैं।

भारत में गरीबी पर 500 शब्द का निबंध (500 Word Essay On Poverty In India in Hindi)

गरीबी उस स्थिति को संदर्भित करती है जिसमें व्यक्ति जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित रह जाता है। इसके अलावा, व्यक्ति के पास भोजन, आश्रय और कपड़ों की अपर्याप्त आपूर्ति नहीं होती है। भारत में, गरीबी से पीड़ित अधिकांश लोग एक दिन के भोजन के लिए भुगतान नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा, वे सड़क के किनारे सोते हैं; गंदे पुराने कपड़े पहनें. इसके अलावा, उन्हें न तो उचित स्वास्थ्यवर्धक और पौष्टिक भोजन मिलता है, न दवा और न ही कोई अन्य आवश्यक वस्तु।

गरीबी के कारण

शहरी जनसंख्या में वृद्धि के कारण भारत में गरीबी की दर बढ़ रही है। ग्रामीण लोग बेहतर रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। इनमें से अधिकांश लोग कम वेतन वाली नौकरी या ऐसी गतिविधि ढूंढते हैं जो केवल उनके भोजन के लिए भुगतान करती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लगभग करोड़ों शहरी लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं और बहुत से लोग गरीबी की सीमा रेखा पर हैं।

इसके अलावा, बड़ी संख्या में लोग निचले इलाकों या झुग्गियों में रहते हैं। ये लोग अधिकतर अशिक्षित होते हैं और प्रयासों के बावजूद भी इनकी स्थिति वैसी ही रहती है और कोई संतोषजनक परिणाम नहीं मिलता।

इसके अलावा, ऐसे कई कारण हैं जिनके बारे में हम कह सकते हैं कि ये भारत में गरीबी का प्रमुख कारण हैं। इन कारणों में भ्रष्टाचार, बढ़ती जनसंख्या, खराब कृषि, अमीर और गरीब का बड़ा अंतर, पुराने रीति-रिवाज, अशिक्षा, बेरोजगारी और कुछ अन्य शामिल हैं। लोगों का एक बड़ा वर्ग कृषि गतिविधि में लगा हुआ है लेकिन इस गतिविधि में कर्मचारियों द्वारा किए गए काम की तुलना में बहुत कम भुगतान मिलता है।

साथ ही, अधिक जनसंख्या को अधिक भोजन, मकान और धन की आवश्यकता होती है और इन सुविधाओं के अभाव में गरीबी बहुत तेजी से बढ़ती है। इसके अलावा, अतिरिक्त गरीब और अतिरिक्त अमीर होने से अमीर और गरीब के बीच की खाई भी बढ़ती है।

इसके अलावा, अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और गरीब और गरीब होते जा रहे हैं जिससे एक आर्थिक अंतर पैदा हो गया है जिसे भरना मुश्किल है।

यह रहने वाले लोगों को कई तरह से प्रभावित करता है। इसके अलावा, इसके विभिन्न प्रभाव हैं जिनमें अशिक्षा, कम पोषण और आहार, खराब आवास, बाल श्रम, बेरोजगारी, खराब स्वच्छता और जीवन शैली, और गरीबी का नारीकरण आदि शामिल हैं। इसके अलावा, ये गरीब लोग स्वस्थ और संतुलित आहार, अच्छे कपड़े, उचित शिक्षा, एक स्थिर और स्वच्छ घर आदि का खर्च वहन नहीं कर सकते हैं, क्योंकि इन सभी सुविधाओं के लिए पैसे की आवश्यकता होती है और उनके पास दिन में दो बार भोजन करने के लिए भी पैसे नहीं होते हैं, फिर वे इन सुविधाओं के लिए भुगतान कैसे कर सकते हैं।

गरीबी की समस्या के समाधान के लिए हमें शीघ्र एवं सही ढंग से कार्य करना आवश्यक है। इन समस्याओं के समाधान के कुछ उपाय किसानों को उचित सुविधाएँ प्रदान करना है। ताकि, वे खेती को लाभकारी बना सकें और रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन न करें।

साथ ही अशिक्षित लोगों को आवश्यक प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वे बेहतर जीवन जी सकें। बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिए परिवार नियोजन अपनाना चाहिए। साथ ही भ्रष्टाचार को खत्म करने के उपाय भी करने चाहिए, ताकि हम अमीरी-गरीबी की खाई से निपट सकें।

निष्कर्षतः गरीबी किसी एक व्यक्ति की नहीं बल्कि पूरे देश की समस्या है। साथ ही प्रभावी उपाय लागू कर तत्काल आधार पर इससे निपटा जाना चाहिए। इसके अलावा, लोगों, समाज, देश और अर्थव्यवस्था के सतत और समावेशी विकास के लिए गरीबी उन्मूलन आवश्यक हो गया है।

भारत में गरीबी पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

प्रश्न 1. गरीबी क्या है.

उत्तर: गरीबी एक ऐसी स्थिति है जहां किसी व्यक्ति के पास भोजन, पानी, कपड़े और आश्रय जैसी जीवन की बुनियादी ज़रूरतें खरीदने के साधनों का अभाव होता है।

प्रश्न 2. गरीबी के कुछ प्रतिकूल प्रभाव क्या हैं?

उत्तर: गरीबी जीवन की दयनीय गुणवत्ता की ओर ले जाती है। यह डकैती, हत्या, हमला और बलात्कार जैसी असामाजिक गतिविधियों को भी बढ़ावा दे सकता है।

प्रश्न 3. गरीबी से कैसे मुकाबला करें?

उत्तर: यदि हम मुफ्त शिक्षा तक पहुंच प्रदान करने और बेरोजगारी को कम करने में सक्षम हैं, तो गरीबी की दर कम हो जाएगी। इसके अलावा, स्वास्थ्य देखभाल और आश्रय जैसी बुनियादी आवश्यकताओं तक मुफ्त पहुंच प्रदान करने से भी गरीबी कम करने में मदद मिलेगी।

प्रश्न 4. गरीबी रेखा क्या है?

उत्तर: गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) एक बेंचमार्क है जो आर्थिक नुकसान का संकेत देता है। इसके अलावा, इसका उपयोग उन व्यक्तियों के लिए किया जाता है जिन्हें सरकार से सहायता और सहायता की आवश्यकता होती है।

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Essay on poverty in hindi गरीबी पर निबंध.

Poverty essay in Hindi language. Now you can learn more about essay on Poverty In Hindi and take examples to write an essay on Poverty In Hindi. Essay on Poverty In Hindi was asked in many exams. This Hindi essay is for 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12 classes. गरीबी पर निबंध।

hindiinhindi Essay on Poverty In Hindi

Essay on Poverty In Hindi in 300 Words

गरीबी पर निबंध

गरीब वह लोग होते है जो जीवन के आधारभूत जरुरतों से महरुम रहते हैं जैसे अपर्याप्त भोजन, कपड़े और छत। आज भारत एक विश्व शक्ति के रूप में उभर के आगे आ रहा है पर हमारे देश में अभी भी बहुत सरे लोग ऐसे है जिनको दो वक़्त की रोटी नही हासिल होती। यह लोग गंदे कपड़े पहनते हैं और रात को सड़क किनारे सोते हैं। यह स्वस्थ पोषण, दवा और दूसरी जरुरी चीजें से कोसो दूर है। ग्रामीण क्षेत्रों से लोग शहरों की ओर नौकरी और धन संबंधी क्रियाओं के लिये रुख कर रहे है। शहरी जनसंख्या में बढ़ौतरी के कारण और ग्रामीण लोगो की बढ़ती संख्या के कारण शहरों में गरीबी और बढ़ती ही जा रही है। आंकड़ों की बात करे तो लगभग 8 करोड़ लोगों की आय गरीबी रेखा से नीचे है और लगभग 4.5 करोड़ शहरी लोग सीमारेखा पर हैं। सरकार द्वारा उठाये गए कदमों के बावजूद गरीबी दर में कोई भी संतोषजनक परिणाम नहीं दिखाई देता है।

भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, अशिक्षा, पुरानी प्रथाएं, बढ़ती जनसंख्या, कमजोर कृषि, अमीर और गरीब के बीच में बड़ी खाई आदि ऐसे बहुत सारे भारत में गरीबी का मुख्य कारण है। भारत में जनसंख्या का एक बड़ा भाग कृषि पर निर्भर करता है जो कि गरीब है और गरीबी का कारण है। बढ़ती जनसंख्या बढ़ती गरीबी का प्रमुख कारण है क्योकि अधिक जनसंख्या मतलब अधिक भोजन, पैसा और घर की जरुरत। गरीब और ज्यादा गरीब होता जा रहा है और अमीर पहले से ज्यादा अमीर होता जा रहा है जिसने दोनों के बीच की खाई को बहुत चौड़ा कर दिया है। ये अंतर ही किसी देश को अविकसित की श्रेणी की ओर ले जाता है।

गरीबी गरीब लोगो पर बहुत हावी होती जा रही है जैसे अशिक्षा, बाल श्रम, खराब घर, बेरोजगारी अदि क्योकि गरीबी इन समस्याओ को भी जन्म देती है। इन्ही कारणों से गरीब परिवार का गरीब बच्चा अपनी छोटी सी आयु से ही कम मजदूरी पर काम करने को मजबूर है। यह उम्र उनके स्कूल जाने की खेलने कूदने की है किन्तु गरीबी ने इन बच्चो का बचपन उनसे छीन लिया है।

गरीबी पूरे देश की एक बहुत बड़ी समस्या है जिसे प्रभावी तरीकों को लागू करके जल्दी से जल्दी सुलझाना चाहिये। भारत सरकार द्वारा भी कई प्रकार के कदम उठाये गये, जिनका कोई स्पष्ट परिणाम नहीं दिखा। गरीबी हो हराने के लिए सरकार के साथ साथ भारत के नागरिको को भी एक-जुट हो कर ही इस समस्या का समाधान निकलना होगा। तो चलो आईये, हम सब मिलकर एक साथ इस समस्या को जड़ से उखाड़ दे जिससे हम और हमारा देश आगे बढ़ सके।

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Essay on Poverty in Hindi – गरीबी पर निबंध

Poverty essay in Hindi

गरीबी से आशय ऐसी स्थिति से है जिसमें व्यक्ति जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित रह जाता है। इसके अलावा, व्यक्ति के पास भोजन, आश्रय और कपड़े की अपर्याप्त आपूर्ति नहीं होती है। भारत में, अधिकांश लोग जो गरीबी से पीड़ित हैं, वे एक दिन में एक भोजन का भुगतान नहीं कर सकते हैं। इसके अलावा, वे सड़क के किनारे सोते हैं; गंदे पुराने कपड़े पहनना। इसके अलावा, उन्हें उचित स्वस्थ और पौष्टिक भोजन नहीं मिलता है, न तो दवा और न ही कोई अन्य आवश्यक चीज।

Poverty essay in India – Poverty essay in Hindi

गरीबी एक अजीबोगरीब समस्या है जिससे दुनिया के विभिन्न देश, विशेषकर तीसरी दुनिया पीड़ित हैं। गरीबी की एक आम परिभाषा नहीं हो सकती है जिसे मोटे तौर पर हर जगह स्वीकार किया जा सकता है। इस प्रकार दुनिया के विभिन्न देशों में स्वीकृत गरीबी की परिभाषाओं के बीच बड़े अंतर हैं।

इन सभी मतभेदों को छोड़ते हुए, मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि गरीबी एक ऐसी स्थिति है, जिसमें समाज का कोई तबका, जिसकी खुद की कोई गलती नहीं है, जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं से भी वंचित है। एक देश में, जहां आबादी का एक हिस्सा लंबे समय से जीवन की न्यूनतम सुविधाओं से भी वंचित है, देश गरीबी के एक दुष्चक्र से पीड़ित है।

गरीबी को तीसरी दुनिया के देशों में सबसे बड़ी चुनौती माना जाता है। गरीबी का संबंध एक निश्चित रेखा के संबंध में तुलना से भी है – जिसे गरीबी रेखा के रूप में जाना जाता है। हालाँकि, गरीबी रेखा को स्थिर रूप से तय किया जाता है और इसलिए, एक निश्चित अवधि के लिए निश्चित रहती है।

गरीबी रेखा:

आमतौर पर गरीबी को गरीबी रेखा से परिभाषित किया जाता है। अब जो सवाल इस बिंदु पर प्रासंगिक है वह है गरीबी रेखा क्या है और इसे कैसे तय किया जाता है? प्रश्न का उत्तर यह है कि गरीबी रेखा वितरण की रेखा पर एक कट-ऑफ बिंदु है, जो आमतौर पर देश की जनसंख्या को गरीब और गैर-गरीब के रूप में विभाजित करती है।

तदनुसार, गरीबी रेखा से नीचे की आय वाले लोगों को गरीब कहा जाता है और गरीबी रेखा से ऊपर की आय वाले लोगों को गैर-गरीब कहा जाता है। तदनुसार, यह उपाय, अर्थात्, गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के प्रतिशत को हेड काउंट अनुपात के रूप में जाना जाता है।

इसके अलावा, गरीबी रेखा तय करते समय हमें पर्याप्त ध्यान रखना चाहिए ताकि गरीबी रेखा न तो बहुत अधिक हो और न ही कम हो, बल्कि यह उचित होनी चाहिए। गरीबी रेखा तय करते समय, भोजन की खपत को सबसे महत्वपूर्ण मानदंड माना जाता है लेकिन इसके साथ कुछ गैर-खाद्य पदार्थ जैसे कपड़े, और आश्रय भी शामिल होते हैं।

हालाँकि, भारत में हम अपनी गरीबी रेखा का निर्धारण भोजन और गैर-खाद्य पदार्थों दोनों को खरीदने के लिए निजी उपभोग व्यय के आधार पर करते हैं। इस प्रकार यह देखा गया है कि भारत में, गरीबी रेखा निजी उपभोग व्यय का स्तर है जो आम तौर पर एक खाद्य टोकरी सुनिश्चित करता है जो कैलोरी की आवश्यक मात्रा सुनिश्चित करेगा।

तदनुसार, ग्रामीण और शहरी व्यक्ति के लिए औसत कैलोरी आवश्यकताएं क्रमशः 2,400 और 2,100 कैलोरी निर्धारित की जाती हैं। इस प्रकार, कैलोरी की आवश्यक मात्रा सामान्य रूप से एक वर्ग-अंतराल के साथ मेल खाती है या दो अंतरालों के बीच गिर जाएगी।

प्रतिलोम विवेचन विधि का उपयोग करते हुए, व्यक्ति उपभोग व्यय की मात्रा पा सकता है, जिस पर न्यूनतम कैलोरी की आवश्यकता पूरी होती है। व्यक्ति के लिए न्यूनतम कैलोरी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए उपभोग व्यय की इस राशि को गरीबी रेखा कहा जाता है।

भारत में, गरीबी की व्यापक रूप से स्वीकृत परिभाषा जीवन स्तर के बजाय न्यूनतम जीवन स्तर पर अधिक जोर देती है। तदनुसार, यह व्यापक रूप से सहमत है कि गरीबी को एक ऐसी स्थिति के रूप में कहा जा सकता है जहां जनसंख्या का एक वर्ग एक न्यूनतम न्यूनतम खपत मानक तक पहुंचने में विफल रहता है। इस न्यूनतम खपत मानक के निर्धारण के साथ मतभेद उत्पन्न होते हैं।

गहन परीक्षा के बाद, योजना आयोग द्वारा जुलाई 1962 में स्थापित किए गए अध्ययन समूह ने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में नंगे न्यूनतम राशि के रूप में प्रति व्यक्ति प्रति माह 20 रुपये (1960-61 की कीमतों) के निजी उपभोग व्यय के मानक की सिफारिश की। ।

प्रारंभिक चरण में, योजना आयोग ने अध्ययन समूह की गरीबी मानदंड को स्वीकार कर लिया। विभिन्न शोधकर्ताओं जैसे बी.एस. मिन्हास और ए। वैद्यनाथन ने भी इसी परिभाषा के आधार पर अपना अध्ययन किया। लेकिन अन्य शोधकर्ता जैसे दांडेकर और रथ, पीके। बर्धन और अहलूवालिया ने अपनी गरीबी की अपनी परिभाषा के आधार पर अपना अध्ययन किया।

बाद में, “न्यूनतम जरूरतों और प्रभावी उपभोग की माँगों के अनुमानों पर कार्य बल” ने गरीबी की एक वैकल्पिक परिभाषा प्रस्तुत की जिसे हाल के वर्षों में योजना आयोग द्वारा अपनाया गया है।

टास्क फोर्स ने गरीबी रेखा को मासिक प्रति व्यक्ति व्यय वर्ग के मध्य-बिंदु के रूप में परिभाषित किया है, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति 2,400 और देश के शहरी क्षेत्रों में 2,100 लोगों की दैनिक कैलोरी है। तदनुसार, न्यूनतम वांछनीय मानक ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 76 रुपये और शहरी क्षेत्रों के लिए 88-80 रुपये की कीमत पर 1979-80 मूल्य पर काम किया गया था।

प्रो गालब्रेथ ने एक बार तर्क दिया था कि “गरीबी सबसे बड़ा प्रदूषक है”। इस तर्क में कुछ तर्क जरूर है। पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था अब गरीबी को अपना महान दुश्मन मानती है। भारत में, गरीबी की समस्या अभी भी काफी तीव्र है। पिछले पैंतालीस वर्षों से, भारतीय राजनेता “ट्रिकल डाउन” के सिद्धांत में विश्वास करते हुए गरीबी हटाने की उम्मीद और वादा निभा रहे हैं।

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poverty par essay in hindi

गरीबी पर निबंध- Poverty Essay in Hindi

In this article, we are providing information about Poverty in Hindi- Poverty Essay in Hindi Language. गरीबी पर निबंध- Essay on Garibi in Hindi.

गरीबी पर निबंध- Poverty Essay in Hindi

गरीबी आज के समय की सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है। बहुत से लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं। उन लोगों को गरीबी में कहा जा सकता है जो अपने और अपने परिवार के लिए मुलभूत चीजे जैसे कि रोटी कपड़ा और मकान भी नहीं उपलब्ध करवा पाते हैं। जब तक देश गरीब रहेगा वह प्रगति नहीं कर सकता है। गरीब आज के समय में और भी ज्यादा गरीब होते जा रहे है क्योंकि अमीर उन तक पैसा नहीं पहुँचने देते हैं।

गरीबी के कारण- देश में गरीबी बढने का सबसे बड़ा कारण जनसंख्या में वृद्धि है। बढ़ती हुई जनसंख्या की वजह से रोजगार में कमी आई है और लोगों को रोजगार के साधन कम मिल रहे हैं जिसकी वजह से वह अपने लिए दो वक्त सी रोटी कमाने में भी असमर्थ है। असाक्षरता के कारण भी गरीबी बढ़ती है क्योंकि लोग सरकार द्वारा मिलने वाली सुविधाओं से अंजान रह जाते हैं। भ्रष्ट नेताओं के कारण भी गरीब और भी ज्यादा गरीब होते जा रहे है क्योंकि वो उनको मिलने वाली सुविधाओं को खुद प्रयोग कर लेते हैं और उन तक पहुँचने नहीं देते हैं।

गरीबी से उत्पन्न होने वाली समस्याएँ – गरीबी अपराधों को जन्म देती है क्योंकि भूखा इंसान भूख मिटाने के लिए गलत राह भी चुन सकता है। गरीबी के कारण बहुत से लोग चोरी और डकैती की राह पर चल पड़ते है। कुछ लोग पेट भरने के लिए आंतकवादी तक बन जाते हैं। गरीबी देशद्रोहियों को बढ़ावा देती है। गरीबी की वजह से उत्पन्न होने वाली सबसे गंभीर समस्या बाल मजदुरी की है क्योंकि घर चलाने के लिए घर के हर सदस्य को कार्य करना पड़ता है तभी जाकर उन्हें दो वक्त की रोटी मिल पाती है।

सरकार ने गरीबों को सस्ते दरों पर खाने पीने की चीजें उपलब्ध कराई है। उन्हें डीपू से तेल चावल गेहुँ दाल आदि सस्ते दाम में मिलते है जिससे कि वो अपना और अपने परिवार का गुजारा चला सकें।

गरीबी विकास में सबसे बड़ी रूकावट है और आज के समय में सोचने का सबसे बड़ा मुद्दा भी है। मृत्यु दर में वृद्धि भी गरीबी के कारण ही होती है क्योंकि बहुत से लोगों को भोजन नहीं मिल पाता और वह कुपोषण का शिकार हो जाते हैं और उनकी मृत्यु हो जाती है। गरीबी भरा जीवन यापन करना बहुत ही मुश्किल है। हमें और सरकार को चाहिए कि देश की गरीबी दुर करने के लिए कुछ कदम उठाऐं। हमें चाहिए कि हम अपने आसपास के गरीब बच्चों को पुस्तकें और खाने का सामान दें। सरकार को भी उन बच्चों के विकास के लिए स्कूल आदि खोलने चाहिए। हमारा एक ही मकसद होना चाहिए कि गरीबी को दुर भगाना है।

#Essay on Poverty in Hindi

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Home » Essay Hindi » Essay On Poverty In Hindi गरीबी पर निबंध

Essay On Poverty In Hindi गरीबी पर निबंध

गरीबी पर निबंध essay on poverty in hindi.

यह निबंध Essay On Poverty In Hindi आर्टिकल गरीबी पर निबंध (Garibi Par Nibandh) और गरीबी क्या है (What Is Poverty In Hindi) पर आधारित है। गरीबी को निर्धनता कहते है क्योंकि गरीबी में जीवनयापन करने वालों के पास पर्याप्त धन नही होता है। कुछ सामान्य जरूरत के लिए भी उन्हें मोहताज होना पड़ता है। रोटी, कपड़ा और  मकान की बुनियादी सुविधा के लिए भी गरीब लोग तरस जाते है। गरीबी भारत जैसे विकासशील देश की कड़वी सच्चाई है। इस सच्चाई को नकारा नही जा सकता है। तो आइए दोस्तों, गरीबी पर निबंध के जरिये इस गंभीर समस्या पर प्रकाश डालते है।

गरीबी क्या है पर निबंध What Is Poverty In Hindi Essay –

Essay On Poverty In Hindi – सामान्य जरूरत के लिए धन की कमी होना गरीबी है या बुनियादी चीजों को प्राप्त करने में असमर्थ होना भी गरीबी है। खाने के लिए दो वक्त का भोजन नही मिलता, बारिश और सर्द रातों में सोने के लिए छत नही होती, तन को ढकने के लिए कपड़े नही होते और बीमारी में इलाज कराने के लिए पैंसे नही होते है। यह गरीब लोगों की दशा और दिशा है। पूंजीवादी व्यवस्था में अमीर और अमीर होता है और गरीब और गरीब। पूरे विश्व मे ज्यादातर देशों में यही व्यवस्था है।

गरीबी समय और स्थान के साथ बदलती है। आज जो गरीब है, हो सकता है कि आने वाले समय में अमीर हो। इसी तरह आज जो अमीर है, हो सकता है कि कल गरीब हो जाये। देश के प्रत्येक स्थान पर गरीबी नही है। भारत देश में केरल राज्य अमीर और सम्पन्न है लेकिन इसी देश का बिहार राज्य गरीब है। भारत देश में गरीबी का स्तर मापने के लिए कुछ मापदंड है। एक निश्चित आय सीमा से नीचे के परिवार गरीब कहलाते है। यह आय सीमा वर्तमान महंगाई पर आधारित होती है।

भारत में करीब 37 फीसदी लोग गरीब है। भारत के गरीब राज्यों में बिहार, उड़ीसा उत्तरप्रदेश इत्यादि आते है। भारत के शहरी इलाकों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रो में गरीबी ज्यादा है। इसका कारण यह भी है की गांवों में मूल सुविधाओं का अभाव है। गरीबी केवल भारत देश की समस्या नही है, यह विश्वव्यापी है जिसका निदान जरूरी है। विश्व में खासकर अफ्रीका के देशों में गरीबी ज्यादा है। एशिया महाद्वीप में भी कई देश गरीबी की श्रेणी में आते है।

भारत में गरीबी का कारण Causes Of Poverty –

निर्धनता ( Poverty ) का मुख्य कारण अशिक्षा है और अशिक्षा से अज्ञानता पनपती है। इसी कारण भारत में अत्यधिक जनसंख्या वृद्धि हुई है। एक तो गरीबी का दंश और दूसरी तरफ परिवार में सदस्य ज्यादा, तो एक मजदूरी करने वाला अपने परिवार का पोषण कैसे कर पायेगा। भारत में गरीबी दलित और पिछड़े लोगो मे अत्यधिक है। भारत सरकार की आरक्षण व्यवस्था के कारण सरकारी नौकरियों में इनका प्रतिनिधित्व बड़ा है। इन जातियों में शिक्षा का प्रसार भी हुआ है जिससे कई परिवार गरीबी के दंश से मुक्त हुए है।

गरीबी का एक कारण भ्रष्टाचार भी है। सरकार गरीबों के लिए शिक्षा, मकान, भोजन इत्यादि कई योजनाएं बनाती है। गरीबी उन्मूलन के प्रयास सरकार की और से हमेशा रहते है। लेकिन अफसरशाही और नेताओं के भ्रष्टाचार के कारण योजनाओं का 100 फीसदी लाभ गरीबों तक नही पहुंच पाता है।

गरीबी की समस्या पर निबंध Garibi Par Nibandh –

Essay On Poverty In Hindi गरीबी पर निबंध – निर्धनता को अपराध का जनक भी कहे तो अतिश्योक्ति नही होनी चाहिये। अगर परिवार की आर्थिक हालत खराब होती है तो उस परिवार के लोग जीवन यापन करने के लिए गलत रास्तों का चुनाव भी कर सकते है। इसलिये लोगो के पास रोजगार होना जरूरी है। छोटी छोटी खुशियां पाने में गरीबी एक बाधक की तरह है। गरीब लोगों को उनके अधिकार नही मिल पाते है। हमें गरीबी मुक्त समाज चाहिए जहां जरूरत के लिए किसी को भी गलत चुनाव ना करना पड़े।

गरीबी बीमारियां फैलाती है क्योंकि गरीब लोगों के पास रहने के लिए स्वच्छ वातावरण नही होता है। वो लोग गंदगी में जीवन जीते है जिससे बीमारियां उन्हें घेर लेती है। बच्चों में टीकाकरण का अभाव रह जाता है। बच्चों को उचित भोजन नही मिल पाता है जिससे वो कुपोषण का शिकार हो जाते है। साफ पानी की भी व्यवस्था गरीब बस्तियों में नही होती है। गरीबी के कारण विश्व में हर वर्ष लाखों लोग भूख और आत्महत्या की वजह से मर जाते है। गरीब किसान कृषि के लिए बैंकों और साहूकारों से ऋण लेते है। फसल ना होने के कारण वो अपना ऋण नही चुका पाते। अवसाद में घिरकर किसान आत्महत्या कर लेते है।

गरीबी (Poverty) किसी भी व्यक्ति विशेष के सामाजिक और आर्थिक जीवन को प्रभावित करती है। गरीब परिवार के बच्चे उच्च शिक्षा तो छोड़िए सामान्य शिक्षा भी ग्रहण नही कर पाते है। शिक्षा का अधिकार सभी लोगो को है लेकिन गरीबी के कारण ऐसा नही हो पाता है। वैसे सरकार ने शिक्षा का अधिकार कानून के तहत गरीब बच्चों को भी बेहतर शिक्षा मुहैया करवाई है।

निर्धनता पर निबंध Essay On Garibi In Hindi –

आजादी से पहले भारत देश में भयंकर गरीबी थी। इसका मुख्य कारण शिक्षा और जागरूकता का अभाव था। आजादी के बाद से सभी सरकारों ने गरीबी मुक्त भारत का प्रयास किया है। नेहरू जी से लेकर नरेंद्र मोदी जी तक सभी सरकारों ने गरीब लोगों के लिए कई योजनाएं लागू की है। इनके कारण कई गरीब लोगों के पास मुक्त अनाज, मुक्त चिकित्सा जैसी सुविधा पहुंची है। प्रधानमंत्री आवास के जरिये बीपीएल लोगो को मकान दिए जा रहे है। महानरेगा स्कीम से गरीब लोगों को 100 दिन का रोजगार मिलता है।

गरीबी को जड़ सहित खत्म करने का सबसे अच्छा उपाय रोजगार है। रोजगार होने पर गरीबी दूर भागती है। गरीब जब चार पैंसे कमाएगा तो खर्च भी करेगा। भारत ही नही पूरी दुनिया में बेरोजगारी वृद्धि चिंता का विषय है। एक तो रोजगार के साधन पहले ही कम है और दूसरा यह है कि जो रोजगार है वो भी घट रहा है। आर्थिक मंदी के चलते कर्मचारी कम्पनियों से बाहर निकाल दिए जाते है। मंदी के कारण ही कई उधोग धंधे बंद पड़े है।

गरीबी ( Poverty ) को मिटाना है तो हमे रोजगार पैदा करने होंगे, नही तो आने वाला समय बेहद चिंताजनक होने वाला है। गरीबी भारत के विकास में अवरोध की तरह है जिसे मिटाना होगा। इसके लिए हम सभी भारतीयों को प्रयास करना जरूरी है।

यह भी पढ़े – 

  • भ्रष्टाचार की समस्या पर निबंध
  • भारतीय गाँवों पर निबंध
  • पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध

Note – इस पोस्ट Essay On Poverty In Hindi में गरीबी पर निबंध (Garibi Par Nibandh) और गरीबी क्या है (What Is Poverty In Hindi) पर जानकारी कैसी लगी। यह पोस्ट “Garibi Essay In Hindi” अच्छी लगी हो तो इसे शेयर भी करे।

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गरीबी पर निबंध इन हिंदी | Essay on Poverty in Hindi

नमस्कार आज का निबंध, गरीबी पर निबंध इन हिंदी Essay on Poverty in Hindi पर दिया गया हैं. सरल भाषा में पोवर्टी पर निबंध दिया गया हैं.

निर्धनता क्या है इसके कारण प्रभाव अभिशाप समस्या समाधान पर स्टूडेंट्स के लिए आसान भाषा में गरीबी का निबंध यहाँ दिया गया हैं.

गरीबी पर निबंध Essay on Poverty in Hindi

गरीबी पर निबंध Essay on Poverty in Hindi

गरीबी अर्थात निर्धनता वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति को अपने जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहता है. गरीबी किसी भी देश के लिए अभिशाप से कम नहीं है.

वैसे तो विश्व के अधिकतर देशों में कुल जनसंख्या का कम या अधिक भाग निर्धनता की स्थिति में जीने को विवध है. किन्तु एशिया एवं अफ्रीका के देशों में निर्धनता बहुत पाई जाती है.

निर्धनता गरीबी की परिभाषा सभी देशों के लिए एक सी नहीं हो सकती, क्योंकि निर्धनता का आधार जीवन स्तर को माना जाता है और विकसित देशों में सधार्ट व्यक्ति कही ऊँचे जीवन स्तर पर जी रहा है.

विकसित देशों में जिसके पास अपनी गाड़ी न हो, उसे निर्धन माना जाता है, जबकि विकासशील देशों में निर्धनता की माप का यह पैमाना उपयुक्त नहीं कहा जा सकता.

वैसे तो भारत में अनेक अर्थशास्त्रियों एवं संस्थाओं ने निर्धनता के निर्धारण हेतु अपने अपने प्रमाप बनाए है, किन्तु इस समय देश में निर्धनता रेखा का निर्धारण भोजन में कैलोरी के आधार पर किया गया हैं.

भारत में गरीबी पर निबंध, कारण, प्रभाव, तथ्य Essay on Poverty in India Hindi with Causes, Effects and Facts

भोजन में कैलोरी की मात्रा को आधार बनाकर निर्धनता रेखा का निर्धारण करने के इस तरीके को दांडेकर रथ फार्मूला कहा जाता हैं. भारत में इसका प्रयोग 1971 से हो रहा है.

इसके अनुसार शहरी क्षेत्रों में भोजन प्रतिदिन 2100 कैलोरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी न पाने वालों को निर्धनता रेखा से नीचे माना जाता है.

योजना आयोग राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन सर्वेक्षणों के आधार पर ही निर्धारित रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे लोगों की संख्या का आंकलन करता है.

पिछले कुछ वर्षों से निर्धनता रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे लोगों की पहचान का यह तरीका विवादापस्द बना हुआ हैं, इसलिए नए फ़ॉर्मूले से इसके निर्धारण हेतु अपने फोर्मूलें में प्रति व्यक्ति उपयोग व्यय के आधार बनाते हुए इसे अधिक व्यवहारिक बताया.

इसके अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में 356 प्रतिमाह से कम एवं शहरी क्षेत्रों में 538 प्रतिमाह से कम उपयोग व्यय करने वाले व्यक्ति को निर्धनता रेखा से नीचे माना जाता है.

इस फ़ॉर्मूले का प्रयोग कर दिसम्बर 2009 में इस समिति ने योजना आयोग को अपनी रिपोर्ट सौपी, जिसमें 2004-05 के दौरान 37 प्रतिशत जनसंख्या को निर्धनता रेखा से नीचे बताया गया.

जबकि पहले वाले फोर्मूलें की सहायता से किये गये आंकलन में 27 प्रतिशत जनसंख्या को ही निर्धनता रेखा से नीचे बताया गया था.

तेंदुलकर समिति ने ग्रामीण क्षेत्रों में 2004-05 में 41.8 प्रतिशत लोगों को निर्धनता रेखा से नीचे बताया, जबकि पहले वाले फोर्मुले से यह 28.3 प्रतिशत आकलित था.

भारत में गरीबी की स्थिति

भारत में सर्वाधिक निर्धनता उड़ीसा में है, जहाँ 46.4 प्रतिशत लोग निर्धनता रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे है. इसके अलावा बिहार, उत्तर प्रदेश, छतीसगढ़, झारखंड देश के ऐसे राज्य है जहाँ पर अत्यधिक गरीबी है. दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, केरल आदि प्रान्तों में निर्धनता की स्थिति अपेक्षाकृत कम है.

हमारे देश में निर्धनता के कई कारण है, जनसंख्या में तेजी से हो रही वृद्धि इसका एक सबसे बड़ा कारण है. बढ़ती जनसंख्या के जीवन निर्वहन हेतु अधिक रोजगार स्रजन की आवश्यकता होती है.

ऐसा न होने पर बेरोजगारी में वृद्धि के फलस्वरूप निर्धनता की स्थिति में भी वृद्धि होती हैं. भारत में व्यवहारिक के बजाय सैद्धांतिक शिक्षा पर जोर दिया जाता है. फलस्वरूप व्यक्ति के पास उच्च शिक्षा की उपाधि तो होती हैं.

लेकिन न तो वह किसी भी काम में कुशल है और न ही वह व्यक्तिगत व्यवसाय शुरू करने में रूचि रखता है। इस तरह, दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली के कारण, लोग अपनी आजीविका कमाने और गरीबी में रहने में असमर्थ हैं। इससे पहले, अधिकांश ग्रामीण कॉटेज अपनी आजीविका चलाने के लिए इस्तेमाल करते थे।

ब्रिटिश सरकार की घरेलू-घरेलू नीतियों के कारण, वे देश में गिर गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण बेरोजगारी में वृद्धि के कारण गांवों की अर्थव्यवस्था का क्षरण हुआ और देश में गरीबी में वृद्धि हुई।

हमारा देश प्राकृतिक संसाधनों के साथ संपन्न है, लेकिन कृषि की पिछड़ेपन के कारण, औद्योगीकरण की धीमी प्रक्रिया के कारण लोग वर्षों से रोजगार नहीं पा रहे हैं, तेजी से बढ़ती आबादी के लिए रोजगार प्रदान करना संभव नहीं है, और अधिकांश लोग गरीबी की स्थिति में रहने के लिए लगातार।

गरीबी के कई प्रतिकूल प्रभाव हैं। गरीबी के कारण, भुखमरी की समस्या उत्पन्न होती है। गरीबी के कारण, मानसिक अशांति के लोग चोरी, चोरी, हिंसा और अपराध के प्रति अपराध के लिए पूरी तरह जिम्मेदार रहते हैं।

अपराध और हिंसा में वृद्धि का सबसे बड़ा कारण गरीबी और बेरोजगारी है। कई बार, गरीबी की भयानक स्थिति में परेशान होने के बावजूद, लोग आत्महत्या करते हैं।

गाँवों के निर्धन लोगों का लाभ उठाकर एक ओर जहाँ स्वार्थी राजनेता इनका दुरूपयोग करते हैं वही दूसरी ओर धनिक वर्ग इनका शोषण करने से भी नही चूकते. ऐसी स्थिति में देश का राजनीतिक एवं सामाजिक वातावरण अत्यंत दूषित हो जाता हैं.

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भारत में गरीबी की स्थिति पर शोध पत्र: विश्व बैंक

  • 20 Apr 2022
  • सामान्य अध्ययन-II
  • सामान्य अध्ययन-III
  • महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान
  • समावेशी विकास

विश्व बैंक, आईएमएफ, निर्धनता, एनएसएसओ, निर्धनता से संबंधी पहलें।

महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, भारत में गरीबी और संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में विश्व बैंक द्वारा 'पावर्टी हैज़ डिक्लाइन ओवर द लास्ट डिकेड बट नॉट अस मच अस यूथ थॉट' (Poverty has Declined over the Last Decade But Not As Much As Previously Thought) शीर्षक से शोध पत्र प्रकाशित किया गया है। 

  • यह पत्र अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा प्रकाशित एक वर्किंग पेपर से समानता रखता है जिसमे  जिसमें कहा गया था कि भारत ने राज्य द्वारा वित्त पोषित खाद्य हैंड आउट्स (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) के माध्यम से अत्यधिक गरीबी को लगभग समाप्त कर दिया गया है और जिससे 40 वर्षों में उपभोग असमानता अपने निम्नतम स्तर पर पहुँच चुकी है। 

Poverty-in-india

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएंँ:

  • वर्ष 2011 के बाद से खपत असमानता में मामूली कमी हुई है लेकिन अप्रकाशित राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण-2017 की तुलना में यह अंतर बहुत कम है। 
  • वर्ष 2015-2019 के दौरान गरीबी में कमी की सीमा राष्ट्रीय लेखा आंँकड़ों में रिपोर्ट किये गए निजी अंतिम उपभोग व्यय में वृद्धि के आधार पर पहले के अनुमानों की तुलना में काफी कम होने का अनुमान है। 
  • विश्व बैंक ने द्वारा "अत्यधिक गरीबी" (Extreme Poverty) को प्रति व्यक्ति प्रति दिन 1.90 अमेरिकी डाॅलर से कम पर रहने के रूप में परिभाषित किया है।
  • वर्ष 2011-2019 के दौरान ग्रामीण और शहरी गरीबी में क्रमशः 14.7 और 7.9% की गिरावट आई है।
  •  वर्ष 2016 में भारत में विमुद्रीकरण के साथ शहरी गरीबी में 2% की बढ़ोत्तरी हुई तथा वर्ष 2019 में ग्रामीण गरीबी में 10% की वृद्धि दर्ज की गई।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे भूमिधारकों की आय में वृद्धि ग्रामीण क्षेत्रों में आय असमानता में कमी को दर्शाती है। 
  • सबसे छोटे भूमि धारकों में गरीब आबादी का एक बड़ा हिस्सा होता है। इस आय में मज़दूरी, फसल उत्पादन से शुद्ध प्राप्ति, पशु खेती से शुद्ध प्राप्ति तथा गैर-कृषि व्यवसाय से शुद्ध प्राप्ति शामिल है। भूमि को पट्टे पर देने से होने वाली आय पर छूट दी गई है।

रिपोर्ट का महत्त्व:

  • विश्व बैंक का यह शोधपत्र महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत के पास हाल की अवधि का कोई आधिकारिक अनुमान नहीं है। अंतिम व्यय सर्वेक्षण वर्ष 2011 में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) द्वारा जारी किया गया था, जब देश ने गरीबी और असमानता के आधिकारिक अनुमान भी जारी किये थे।
  • सेंटर फॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकोनॉमी (CMIE) द्वारा स्थापित एक नए घरेलू पैनल सर्वेक्षण में उपभोक्ता पिरामिड घरेलू सर्वेक्षण का उपयोग करके वर्ष 2011 के बाद से गरीबी और असमानता कैसे विकसित होने पर प्रकाश डाला गया है।
  • भारत के प्रमुख गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम:
  • एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम (IRDP)
  • प्रधानमंत्री आवास योजना
  • राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना
  • अन्नपूर्णा योजना
  • ' महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), 2005
  • दीनदयाल अंत्योदय योजना - राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM)
  • राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन
  • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना
  • प्रधानमंत्री जन-धन योजना ;

विश्व बैंक:

  • इसे वर्ष 1944 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ पुनर्निर्माण और विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय बैंक (IBRD) के रूप में स्थापित किया गया था। बाद में  IBRD को ही विश्व बैंक के रूप में जाना गया।
  • विश्व बैंक समूह विकासशील देशों में गरीबी को कम करने और साझा समृद्धि का निर्माण करने वाले स्थायी समाधानों के लिये काम कर रहे पाँच संस्थानों की एक अनूठी वैश्विक साझेदारी है।
  • इसके 189 सदस्य देश हैं। 
  • भारत भी एक सदस्य देश है।. 
  • ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस । (हाल ही में प्रकाशित करना बंद कर दिया)।
  • ह्यूमन कैपिटल इंडेक्स ।
  • वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट ।
  • अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (IBRD)
  • अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ (IDA)
  • अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC)
  • बहुपक्षीय निवेश गारंटी एजेंसी (MIGA)
  • भारत इसका सदस्य नहीं है।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम

poverty par essay in hindi

गरीबी पर निबंध

गरीबी (Poverty)  पर छोटे व बड़े निबंध [Long & Short essay Writing on Poverty in Hindi]

# 1. गरीबी पर निबंध-Essay on Poverty in Hindi

प्रस्तावना : गरीबी एक ऐसी दर्दनाक स्थिति है जहाँ मनुष्य हर चीज़ के लिए बेबस और लाचार होता है।  वह संसार की तीन ज़रूरी चीज़ो को पाने में असमर्थ है।  वह है खाना , वस्त्र और मकान। पूरा दिन मज़दूरी करने के बाद भी भरपेट  खाना उन्हें नहीं मिलता है। तेज़ धूप और तेज़ बारिश से बचने के लिए उनके पास एक छत नहीं होती है। सर्दी के दिनों में उन्हें तन ढकने   के लिए कपड़े तक नसीब नहीं होते है। गरीबो का परिवार  अपने बच्चो को शिक्षा नहीं दिलवा पाता है।  शिक्षा  की कमी  के कारण उनका  मानसिक  विकास नहीं होता है। उनके सोचने समझने की कोई शक्ति नहीं होती है।  पर्याप्त भोजन ना मिलने के कारण उनका शारीरिक विकास नहीं हो पाता है।

हर रोज बढ़ती हुयी देश की जनसंख्या “गरीबी” बढ़ाने का प्रमुख कारण है।  सरकार के पास इतनी योजनाएं नहीं है कि वह देश के सभी लोगो को मकान , खाना और शिक्षा जैसी चीज़ें प्रदान कर सके ।  जितनी जनसंख्या अधिक होगी , सभी प्रकार की सुविधाओं  और संसाधनों में कमी आएगी। जनसंख्या वृद्धि की वजह से  जो लोग  गरीब या उससे भी निचले स्तर पर जी रहे है , उनके लिए   ज़िन्दगी नरक से कम नहीं होती है ।

देश में बेरोजगारी इतनी बढ़ गयी है कि बहुत लोगो के पास करने के लिए एक नौकरी तक नहीं है।  अगर देश में लोग इतने अधिक होंगे तो जाहिर तौर पर सभी  को नौकरी मिलना मुश्किल है। छोटी  नौकरी भी आजकल विलुप्त हो रहे है। बेरोजगारी गरीबी को अधिक बढ़ा रही है। जब प्राकृतिक आपदाएं आती है तो सबसे अधिक गरीब लोग प्रभावित होते है। गरीबो को बचाने वाला  कोई नहीं होता है।  कुछ लोग है जो गरीबो की  स्थिति में सुधार लाने के लिए उन्हें NGO के माध्यम से मदद करते है।  कुछ जगहों पर गरीब बच्चो के लिए निशुल्क शिक्षा दी जा रही है।  यह सभी गरीबो को प्राप्त नहीं हो पा  रहा है।  गरीबी की रेखा से नीचे जीने वाले लोगो की हालत और अधिक दयनीय है।

सरकार गरीबी को मिटाने की पूरी कोशिश कर रही है , मगर अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है।  गरीबी देश की उन्नति में बहुत बड़ी बाधा है। गरीबी को मिटाने में कोई भी लोकप्रिय सरकार सफल नहीं हो पायी है। सरकार ने बच्चो को मुफ्त शिक्षा , गैस की सुविधा इत्यादि कार्य करने का प्रयास किया है।  लेकिन अभी भी हज़ारो चीज़ें करनी बाकी है।

गरीब  बच्चे अक्सर संपन्न घरो के बच्चो को विद्यालय जाते हुए देखते है। उन्हें खेल कूद  करते हुए देखते है।  मगर दुर्भाग्यवश उनकी जिन्दगी ऐसी नहीं होती है। गरीबी और पैसे की कमी गरीब परिवार को हर बुनियादी आवश्यकताओं से उन्हें दूर रखती है। अच्छे स्कूल में पढ़ना गरीब बच्चो के लिए एक सपना बनकर रह जाता है। गरीब लोग को दो वक़्त की रोटी मिलना भी टेढ़ खीर बन जाती है। गरीब परिवार अपने बच्चो को पुस्तकें और खिलोने खरीद कर देने में असमर्थ  है। अच्छा संतुलित और पौष्टिक भोजन परिवार और बच्चो को नहीं मिल पाता है।  ऐसे में उनका मानसिक और शारीरिक विकास नहीं हो पाता है। गरीब परिवार बिना सोचे समझे कई बच्चो को जन्म देते है और अपनी कठिनाईयां भी खुद बढ़ा लेते है। ऐसे में घर पर थोड़ी बहुत कमाई के लिए अपने बच्चो को बचपन से काम पर लगा देते है।  अक्सर चाय की दुकानों और उद्योगों में छोटे बच्चो से काम करवाया जाता है।  इससे बाल मज़दूरी जैसी समस्याएं उतपन्न होती है , जो कानूनन जुर्म है।

देश में गरीबी बड़ी आम सी हो गयी है।  सड़को के आस पास छोटे छोटे झोपड़ियों में जैसे तैसे गुजारा करने को विवश है। देश की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा बिना कपडे , रोटी और मकान के गुजारा करने को बेबस है। उनकी दयनीय हालत उनके आँखों से झलकती है।  कोई भी उन्हें इज़्ज़त नहीं देता है और हर जगह उन्हें तिरस्कृत किया जाता है। यह देश की विडंबना है एक और इतने अमीर लोग है और एक तरफ गरीब लोग जिसके पास खाने के लिए सिर्फ सूखी रोटी है।

गरीबी के दिन कोई भी मनुष्य झेलना नहीं चाहता है।  गरीब व्यक्ति  पैसे के अभाव में जीवन के मूल्य साधन जैसे भोजन और मकान जैसी आवश्यक सुविधाएं कभी भी प्राप्त नहीं कर पाता है। दिन रात मेहनत करने पर कुछ पैसे मिलते है , मगर वह भी पर्याप्त नहीं होता है। गरीब परिवार के बच्चे बाकी बच्चो की तरह एक  अच्छा   जीवन जीने में असमर्थ है।

गरीबी का प्रमुख कारण है देश में व्याप्त भ्रष्टाचार और अशिक्षा है।  भ्रष्टाचारी  नेताएं वोट पाने के लिए कई झूठे वादे करते है और गरीबो को उनका हक़ कभी नहीं दिलाते है।  उनके उत्थान के लिए कई योजनाएं बनाई जाती है।  मगर उनमे से कई योजनाएं सिर्फ कहने के लिए  रह जाती है। गरीब लोग पशुओं की भाँती सड़क किनारे पाए जाते है। सही पोषण और भोजन ना मिलने के लिए के कारण उनकी मानसिक हालत भी स्वस्थ नहीं रहती है। अमीर लोगो के पास इतना पैसा होता है और गरीबो के पास खाने के लिए एक रोटी तक नहीं।  ऐसी असमानता के कारण देश उन्नति कभी नहीं कर पायेगा।

गरीबी को मिटाने  के लिए किसानो को अच्छी सुविधाएं दी जानी चाहिए ताकि वे कृषि क्षेत्र में उन्नति कर सके । भारत एक कृषि प्रधान देश है , फिर भी किसान कृषि छोड़कर शहरों में तरफ पलायन करते है।  शहरों में आकर उनकी हालत और अधिक खराब हो जाती है। वह जैसे तैसे अपना गुजारा करते है। शहरों में भी गरीबी बढ़ रही है। गरीबो को निशुल्क शिक्षा और प्रशिक्षण दी जानी चाहिए ताकि उन्हें रोजगार के अवसर मिले। गरीबी को कम करने के लिए परिवार को परिवार नियोजन के बारें जागरूक करना अनिवार्य है।  जितने परिवारों  में सदस्य कम होंगे , गरीब लोगो को दिक्कतें कम होगी। इससे देश की बढ़ती हुयी आबादी को रोका जा सकता है।

देश में एक नियम का लागू होना ज़रूरी है। वह है सभी बच्चो को शिक्षा का अधिकार मिलना। गरीबो के बच्चो को भी पढ़ने का उतना ही अधिकार मिलना चाहिए जितना सभी को मिलता है । जनसंख्या  कम होगी तो रोजगार के मौके भी लोगो को अधिक मिलेंगे और देश में सदियों से चल रही गरीबी का उन्मूलन हम कर सकेंगे।

गरीबी एक  राष्ट्रिय समस्या है। गरीबी के निवारण के लिए सरकार को और अधिक प्रभावी तरीका अपनाना होगा। सरकार ने गरीबी मिटाने के लिए बहुत सारे प्रयत्न किये मगर कोई ख़ास नतीजा नहीं निकला है। देश में व्याप्त ख़राब अर्थव्यवस्था , भ्रष्टाचार  और शिक्षा की कमी जैसे मुद्दों को समय रहते मिटाना ज़रूरी है , तभी गरीब लोगो के आंसू हम  पोंछ पाएंगे और उनकी लाचारी मिटा पाएंगे। ऐसे सकारात्मक कोशिशें करनी होगी कि गरीबो को  भी आम आदमी जितने अवसर , मूल वस्तुएं और समाज में इज़्ज़त प्राप्त हो।

#2. [Short Essay] गरीब इंसान पर निबंध

writer: Anshika Johari

ग़रीबी एक ऐसी दयनीय स्थिति है, जिसमे व्यक्ति निर्धनता के बेहद सकरे रास्ते पर अपनी जीवन की गाड़ी को चलाता है। एक गरीब इंसान को अपनी अनेक इच्छाओं व सपनों का निर्धनता के कारण त्याग करना पड़ता है। समाज में, गरीब वर्ग के व्यक्तियों को प्रत्येक क्षेत्र में कड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। चूंकि आज हर क्षेत्र में धन को महत्व दिया जाता है इसीलिए एक गरीब व्यक्ति प्रतिभाशाली होते हुए भी पीछे रह जाता है।

गरीब इंसान की जीवन शैली –

एक गरीब व्यक्ति व अमीर व्यक्ति की जीवनशैली में आकाश पाताल का फर्क होता है। एक ओर जहां अमीर व्यक्ति विलासिता पूर्ण जीवन जीता है वहीं दूसरी ओर एक गरीब व्यक्ति अपनी जरूरतों को भी पूर्ण नहीं कर पाता। अपर्याप्त भोजन, कपड़ा, छत से मजबूर एक गरीब व्यक्ति दिनभर इन्हीं की पूर्ति में प्रयासरत रहता है। धन की आपूर्ति के कारण गरीब बच्चों को शिक्षा का अवसर मिलना भी अत्यंत कठिन हो जाता है। इसी कारण गांव में रहने वाले हजारों गरीब परिवार अशिक्षित ही रह जाते है।

गरीबी क्यों है?

आज के दौर में हर व्यक्ति गरीबी रेखा को पार करके अमीर बनना चाहता है। क्योंकि आज की धन प्रधान इस दुनिया में गरीबी इंसान का जीवन दुखमय बना देती है। भारत में बढ़ती जनसंख्या को गरीबी का विशेष कारण बताया है। जनसंख्या वृद्धि के कारण नौकरियां मिल पाना मुश्किल हो गया है। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के चलते देश के गरीबी रेखा के लोगों को गरीबी से उभरने का अवसर ही नही मिल पाता है। गरीब मजदूर, नौकर, रिक्शा चालक आदि अशिक्षा होने के कारण ना तो अपनी कोई प्रगति कर पाते है, ना ही अपने बच्चों को शिक्षा के प्रति अग्रसर कर पाते। क्योंकि गरीबी की एक अत्यंत गरीबी स्थिति में घर का छोटा बालक आर्थिक सहायता देने हेतु मजदूरी या अन्य कामों में लग जाता है। इसके साथ ही प्राकृतिक आपदाएं व महामारी भी व्यक्ति के आर्थिक जीवन स्तर को बर्बाद कर देती है। गरीब बस्ती के निवासी, जो दिन भर जो कमाते उसी से रात में दो वक्त की रोटी खा पाते है। ऐसे में आपदाएं व महामारी उनके जीवन में अभिशाप बनकर दस्तक देती है।

गरीब इंसान की स्थिति –

गरीबी जीवन की एक ऐसी स्थिति है जिससे कोई भी गुजरना नहीं चाहता। गरीबी उसे कहते है जिसमें व्यक्ति अपनी मूलभूत आवश्यकताओं – रोटी, कपड़ा, मकान को पूरा करने में असमर्थ होता है। इन मूलभूत आवश्यकताओं की आपूर्ति व्यक्ति के जीवन को गरीबी के बेहद भयावह मंजर पर ले आती हैं। जहां वह मानसिक रूप से तथ शारीरिक रूप से कमजोर हो जाता है। परंतु वह हर संभव प्रयास करता है, जिससे कि वह अपने जीवन को सुचारू रूप से व्यतीत कर सके। गरीबी इंसान में ईर्ष्या, चोरी- डकैती, आत्मविश्वास में कमी इत्यादि कुछ अवगुणों को भी जन्म दे देती हैं। जिससे गरीबी केवल एक वर्ग के लिए ही नहीं अपितु राष्ट्रीय चिंता का कारण बन जाती है।

वर्तमान में सरकार द्वारा गरीबी रेखा से नीचे आने वाले व्यक्तियों के लिए कई योजनाओं को शुरू किया है, जो काफी हद तक सफल हुआ। परंतु फिर भी देश में बहुत से ऐसे गांव अभी मौजूद है जहां इन सेवाओं के विषय में गरीब व्यक्तियों को कोई ज्ञान नहीं है। इसी कारण देश में गरीबी को समाप्त करने के लिए और अधिक प्रयासरत होने की जरूरत है।

#सम्बंधित:- Hindi Essay, Hindi Paragraph, हिंदी निबंध।

  • गरीबी एक अभिशाप पर निबंध
  • जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम
  • दहेज प्रथा: अभिशाप पर निबंध
  • जीवन में शिक्षक का महत्व निबंध
  • दहेज प्रथा एक गंभीर समस्या पर निबंध
  • भारतीय किसान की आत्मकथा पर निबंध
  • मानव और समाज पर निबंध
  • जीना मुश्किल करती महँगाई
  • मानव अधिकार पर निबंध
  • भ्रष्टाचार पर निबंध
  • जीवन में शिक्षा का महत्व पर निबंध
  • शिक्षित बेरोजगारी पर निबंध
  • बेरोजगारी की समस्या और समाधान पर निबंध
  • महान व्यक्तियों पर निबंध
  • पर्यावरण पर निबंध
  • प्राकृतिक आपदाओं पर निबंध
  • सामाजिक मुद्दे पर निबंध
  • स्वास्थ्य पर निबंध
  • महिलाओं पर निबंध

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Poverty in India in Hindi Language

poverty par essay in hindi

Read this comprehensive essay on Poverty in India in Hindi language!

गरीबी एक ऐसी ज्वलंत समस्या है जिससे भारत ही नहीं बल्कि अधिकांश विकासशील देश ग्रसित हैं । इसके विषय में विभिन्न विचारक गम्भीरतापूर्वक मनन करते रहे हैं ।

जोन एल गिलिन ने कहा है कि- गरीबी एक ऐसी अवस्था है जिसमें व्यक्ति या तो अपर्याप्त आमदनी अथवा अविवेकपूर्ण खर्चों के कारण जीवन का ऐसा स्तर प्राप्त करने में असमर्थ रहता है जो उसे अपनी शारीरिक तथा बौद्धिक दक्षता बनाये रखने तथा अपने आश्रितों को समाज के मानकों के अनुरूप सामान्य तौर पर कार्य करने योग्य रखने के लिए पर्याप्त हों ।

जब मनुष्य पर्याप्त भोजन तथा जीवन की अन्य आवश्यकताओं को हासिल नहीं कर पाता है गरीबी विद्यमान रहती है । जे. जी. गोडार्ड के अनुसार गरीबी उन वस्तुओं की अपर्याप्त आपूर्ति है जो एक व्यक्ति के लिए अपने और अपने आश्रितों के स्वास्थ्य एवं ऊर्जा कायम रखने के लिए आवश्यक होती है ।

यदि ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में देखा जाये तो गरीबी की समस्या का आरम्भ वस्तुविनिमय (बार्टर सिस्टम) तथा मानीटरी सिस्टम के उद्भव के साथ हुआ । जैसे-जैसे व्यापार का विस्तार होने लगा कुछ लोगों ने परिसम्पति संचित करना प्रारम्भ कर दिया जिसके कारण इसके वितरण में असमानताएं आने लगी ।

ऐसे लोग अन्य लोगों की अपेक्षा विलासितापूर्ण जीवन यापन करने लगे और बाकी लोग इन सुख सुविधाओं से वंचित हो गए । समाज के सदस्यों द्वारा आर्थिक स्थिति के आधार पर आपस में तुलना की जाने लगी और कुछ लोग अपने को अमीर समझने लगे जबकि शेष लोग गरीबी की श्रेणी में आते गए ।

इस प्रकार गरीबी को ऐसी स्थिति के रूप में समझा जा सकता है जिसमें समाज के सदस्यों की आर्थिक दशा में स्पष्ट अन्तर विद्यमान होता है और ऐसे अन्तरों की तुलनात्मक विवेचना तथा मूल्यांकन किया जाता है ।

यदि जीवन यापन में असमानताएं न हों तो कैसी भी शोचनीय स्थिति में समाज के सभी सदस्य रह रहे हों तब इस प्रकार की समस्या उजागर नहीं होती । गरीबी अमीरी तुलनात्मक शब्द हो जाते हैं और निर्धन लोग अमीर लोगों से तुलना करके कुढ़न महसूस करते हैं ।

ऐसी स्थिति में जब उन्हें अत्यधिक अभाव का सामना करना पड़ता है तो वे गरीबी को अभिशाप के रूप में मानने लगते हैं ओर ये परिसम्पत्ति विहीन लोगों में रोष की भावना तथा भेदभाव का कारण बनती है । इस सन्दर्भ में इस समस्या के समाधान को टाला नहीं जा सकता ।

ADVERTISEMENTS:

गरीबी और अमीरी सापेक्ष इस कारण भी हैं कि इस तुलना के लिए एक जैसे मानक निर्धारित नहीं किये जा सकते । आदम स्मिथ ने कहा था कि व्यक्ति अमीर अथवा गरीब इस सीमा तक है कि वह जीवन की आवश्यकताओं/सुविधाओं तथा मनोविनोद के साधनों का कितना आनन्द ले सकता है ।

विकसित देशों में गरीबी का मापदण्ड भिन्न है वहाँ लोग इसलिए गरीब नहीं है कि उनकी जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं जैसे भोजन, कपड़ा और मकान आदि की पूर्ति नहीं हो पा रही है । वस्तुतः वे इसलिए गरीब हैं कि इनका जीवन स्तर समाज में प्रचलित सामान्य मानकों के बराबर नहीं है या उनसे कहीं नीचे है ।

इसी कारण गरीबी को एक सामाजिक अवधारणा माना जाता है जिसमें समाज का एक वर्ग अपनी रोजमर्रा की आधारभूत आवश्यकताओं को भी पूरा करने में सक्षम नहीं होता और दूसरा वर्ग आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का स्वामी होता है ।

यह स्थिति समाज में चरम गरीबी दर्शाती है । प्रारम्भ से ही गरीबी को न्यूनतम जीवन स्तर के दृष्टिकोण से परिभाषित किए जाने का प्रयास किया गया है एवं समाज में रहन-सहन के स्तर के आधार पर भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ दी गई है । जहाँ विकसित देशों में समाज के औसत रहन-सहन के स्तर को आधार मानकर गरीबी को देखा जाता रहा है वहीं विकासशील देशों में न्यूनतम जीवन स्तर गरीबी के आधार के रूप में अपनाया गया है ।

न्यूनतम जीवन स्तर के लिए आवश्यक संसाधनों की उपलब्धि के आधार पर विपन्न लोगों को गरीबी के अन्तर्गत शामिल किया जाता है । गरीबी के सम्बन्ध में यह भी विचारणीय है कि इसे आय एवं संसाधनों तक पहुँच के आधार पर मापा जाता है एवं जिन लोगों को एक निश्चित आय एवं संसाधन प्राप्त नहीं होते, उन्हें गरीबी की श्रेणी में रखा जाता है ।

एक प्रकार से यह गरीबी का आर्थिक दृष्टिकोण है जबकि गरीबी केवल आर्थिक विपन्नता के कारण ही नहीं होती बल्कि इसके अनेक कारण है और यह एक जटिल समस्या है । गरीबी का प्रमुख कारण परिसम्पत्तियों एवं संसाधनों तक लोगों की पहुँच न होना अर्थात सम्पत्तियों पर स्वामित्व न होना ।

इसके लिए भी अल्प आय ही जिम्मेदार है जो आवश्यक खर्चों को भी पूरा करने हेतु पर्याप्त नहीं होती । ऐसी दशा में लोग आवश्यक सम्पत्ति निर्माण करने में सक्षम नहीं हो पाते और विपन्नतापूर्वक जीवन जीने को बाध्य हो जाते हैं ।

परिणामस्वरूप उन्हें मजदूरी अर्थात समाज के दूसरे वर्ग के लिए सम्पत्ति निर्माण कर जीवन यापन करना पड़ता है सामान्यतः गरीब वर्ग घरेलू सम्पत्ति के नाम पर कुछ नाम मात्र को कपड़े, बर्तन व मजदूरी में काम आने वाले उपकरणों के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं जुटा पाते ।

न्यूनतम जीवन स्तर के लिए भी अपूर्ण आय होने के कारण यह वर्ग कर्ज के बोझ तले दबा पाया जाता है तथा इस वर्ग की उत्पादकता अत्यन्त कम होती है । स्वामित्व के अभाव में इन्हें प्रतिकूल शर्तों व वातावरण में काम करना पड़ता है जिसके फलस्वरूप उनकी उत्पादन क्षमता शनै: शनै: क्षीण होती जाती है ।

यदि इस वर्ग में कोई कौशल होता भी है तो आवश्यक संसाधनों तक कोई पहुँच न होने के कारण यह उनका समुचित लाभ नहीं ले पाते एवं सम्पन्न वर्ग के लिए लाभ अर्जित करने के लिए मजदूर की हैसियत से कार्य करने को बाध्य हो जाते हैं ।

लगातार प्रतिकूल परिस्थितियों में काम करने तथा अल्प आय प्राप्त होने के कारण इस वर्ग में अशिक्षा, खराब स्वास्थ्य, उच्च मृत्यु दर, कम जीवन सम्भाव्यता, प्रतिकूल स्त्री-पुरुष अनुपात, दूसरों पर निर्भरता, उद्यमिता की कमी, बाल मजदूरी आदि व्याप्त होती जाती है ।

यह वर्ग लगातार गरीबी के बोझ तले दब कर अपनी उत्पादक क्षमता को खोता जाता है और प्रतिकूल परिस्थिति में बहुत कम मजदूरी कर काम करने के लिए बाध्य होता है । लगातार गरीबी के कारण यह वर्ग अपने कौशल को बनाए रखने में भी सक्षम नहीं हो पाता और बेहतर रोजगार की तलाश में शहरों की तरफ पलायन किया करता है ।

यह वर्ग अत्यन्त असंगठित होता है । कुछ लोगों का मत है कि गरीबी समाज द्वारा लोगों पर आरोपित होती है । आरोपित गरीबी का तात्पर्य उस गरीबी से है जो समाज द्वारा किसी विशेष जाति अथवा वर्ग विशेष में जन्म लेने के कारण उस पर थोपी गई है ।

वर्ग अथवा जातिगत बटवारे के फलस्वरूप एक वर्ग विशेष के पास सम्पत्तियों का स्वामित्व संचित होता जाता है जबकि दूसरा वर्ग उनका सेवक बनकर कार्य करने को बाध्य रहता है । सदियों से चली आ रही जातिगत प्रथाओं ने एक वर्ग को आर्थिक विपन्नता और सामाजिक पिछड़ापन वंशगत रूप से दिया है जहाँ जातिगत आधार पर संसाधनों पर नियन्त्रण तो दूसरी के पास चला गया लेकिन मजदूरी व सेवा पिछड़े वर्ग के पास आ गयी ।

पीढ़ियों से चली आ रही परम्पराओं ने उन्हें लगातार गरीब बना दिया और साथ ही उनकी पहुंच संसाधनों तक नहीं हो सकी । इस प्रकार विभिन्न वर्ग/जाति के लोग संसाधन युक्त तथा संसाधन विहीन श्रेणियों में बँट गए ।

उपरोक्त पृष्ठभूमि में ही गरीबी को दुष्चक्र के रूप में परिभाषित किया गया है, चूँकि गरीबी के कारण शारीरिक आवश्यकता के अनुसार भोजन (कैलोरी) न मिलना, कुपोषण, स्वास्थ्य का नीचा स्तर, व्यक्तिगत उत्पादकता में कमी, कम आमदनी, बेरोजगारी, निरक्षरता अथवा अल्प शिक्षा, समुचित आवास न होना, संसाधन/सम्पत्ति का उर्पाजन न होना, कौशल का विकास न होना, महिलाओं की खराब स्थिति, बीमारी, ऋण ग्रस्तता, सामाजिक भेदभाव एवं पुन: गरीबी में धसना होता है ।

बल्कि इसे दूषित चक्र न कह कर कुछ विद्वान इसे गरीबी का चक्रव्यूह कहते हैं । गरीब होने का अर्थ है वंचना, समाज की सामान्य सुख सुविधाओं से वंचित रहना । नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भारतीय अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने गरीबी की व्याख्या क्षमता की वंचना के रूप में की है । उनके अनुसार सामाजिक न्याय के विश्लेषण के सन्दर्भ में व्यक्तियों के हित लाभों को उनकी क्षमता योग्यताओं के रूप में जाँचने की आवश्यकता है ।

इस परिप्रेक्ष्य के अनुसार तो आधारिक क्षमताओं के अभाव (डैप्रिविएशन ऑफ बेसिक केपिबिलिटीज) को ही गरीबी मानना अधिक उपयुक्त होगा, केवल आमदनी का कम होना ही गरीबी का पर्याप्त प्रमाण नहीं रहेगा (जैसा कि अक्सर मान लिया जाता है) यह क्षमता गरीबी किसी भी रूप में आपके अभाव को गरीबी का एक प्रमुख कारण मानने से इनकार नहीं करती, क्योंकि यह अभाव मानव को अनेक प्रकार की योग्यताओं से वंचित कर देने का एक प्रमुख कारण होता है ।

दारिद्रयपूर्ण जीवन की परिस्थितियों के निर्माण का एक बहुत सशक्त आधार आय का अपर्याप्त होना ही है । यदि यह बात सत्य है तो फिर गरीबी को योग्यता-वंचना के रूप में अभिव्यक्त करने की बात को लेकर यह सब हंगामा क्यों हो रहा है, जबकि आमतौर पर न्यून आय के आधार पर गरीबी की परिभाषा हो ही जाती है ।

अमर्त्यसेन के अनुसार क्षमता-वंचना के रूप में गरीबी के निरूपण के पक्ष में निम्न दावे किए जा सकते हैं:

१. गरीबी की, बहुत सूझबूझ के साथ, पहचान तो क्षमता-वंचना के माध्यम से ही हो सकती है । इस विधि में उन अभावों पर ही संकेन्द्रण रहता है जो अन्तर्निहित रूप से महत्वपूर्ण हैं, जबकि न्यून आय केवल साधन-स्वरूप में ही महत्वशील होती है ।

२. निम्न आय के अतिरिक्त भी अन्य प्रकार के अनेक प्रभाव क्षमता-वंचनाओं पर अपनी छाप छोड़ते हैं अर्थात् केवल आय ही एकमात्र क्षमता-सृजनकारी कारक नहीं है ।

३. न्यून आय तथा न्यून क्षमताओं का सम्बन्ध अस्थिर है, यह विभिन्न समुदायों यही तक की विभिन्न परिवारों और व्यक्तियों के बीच भी परिवर्तित होता रहता है । आय का योग्यता-क्षमता आदि पर प्रभाव किन्हीं अन्य प्रकार के कारकों के माध्यम से ही प्रभावोत्पादक हो पाता है, प्रत्यक्षतः ओर स्वयमेव नहीं ।

विषमता और गरीबी निवारण के लिए बनाई जा रही नीतियों के प्राक्कलन-मूल्यांकन में यह तीसरी बात बहुत ही निश्चित महत्वशाली हो जाती है । जिन दशाओं के कारण आय का क्षमताओं पर प्रभाव निश्चित नहीं रह पाता, उनके विषय में अनेक रचनाओं में व्यापक विचार मंथन हो चुका है ।

व्यावहारिक नीतियों के निर्धारण के संदर्भ में उनमें से कुछ पर विशेष बल देना आवश्यक हो जाता है । सर्वप्रथम तो व्यक्ति की आयु का आय तथा क्षमता के बीच सम्बन्ध पर गहरा प्रभाव होगा ।

इस संदर्भ में बहुत ही कम आयु के बच्चों और वृद्धों की विशेष आवश्यकताओं पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है । इसी प्रकार व्यक्ति के स्त्री या पुरुष होने, तथा उसकी विशिष्ट सामाजिक भूमिका का भी प्रभाव रहता है । नन्हें शिशु का पालन कर रही माँ की आवश्यकताएँ-क्षमताएँ परिवार के अन्य सदस्यों से बहुत अलग हो सकती हैं । व्यक्ति के निवास का स्थान भी इस संदर्भ में कई प्रकार के प्रभावों का आधार बन जाता है ।

कहीं बाढ़ या अनावृष्टि तो कई सामान्यतः हिंसात्मक वातावरण भी इस बात को प्रभावित कर सकता है कि आय क्षमतावर्धन में कहाँ तक सहायक हो पायेगी इनके साथ-साथ क्षेत्र विशेष में महामारियों के प्रसार की आशंका आदि अनेक ऐसे कारक होते हैं जिन पर किसी व्यक्ति का कोई नियंत्रण नहीं रह पाता किन्तु वे आय और क्षमता के बीच सम्बन्ध को अवश्य प्रभावित करते हैं ।

विभिन्न समुदायों, क्षेत्रवासियों और स्त्री-पुरुष वर्गों के बीच तुलना करते समय तो ये अंतर प्राचलीय (पैरामैट्रिक) स्वरूप धारण कर बहुत ही महत्वशाली हो जाते हैं । दूसरे (१) आय वंचना तथा (२) आय को कृत्यकारिताओं (फंकशिनिंग) में परिवर्तित कर पाने में हीनता भी अनेक बार एक दूसरे से जुड़ जाती हैं ।

आयु, अपंगता या बीमारी आदि के कारण व्यक्ति की अधिक आय कमा पाने की क्षमता दुष्प्रभावित होती है, पर साथ ही साथ इन्हीं कारणों से उस व्यक्ति की उपलब्ध (अर्जित) आय के आधार पर विभिन्न प्रकार की कृत्यकारिताएँ पा सकने की क्षमता भी कम रह जाती है ।

सम्भव है उस व्यक्ति को अपनी न्यून आय का एक अच्छा खासा हिस्सा अपनी चिकित्सा या अन्य किसी प्रकार के चिकित्सीय सहायक उपकरण पर ही खर्चा करना पड़ जाए और वह उस आय से जितना आनन्द सम्भव हो सकता था, वह नहीं उठा पाए ।

अत: इस प्रकार की दशा में यह स्पष्ट ही है कि आय की गरीबी की अपेक्षा क्षमता-वंचना की इस गरीबी की गहनता कहीं अधिक है । यह बात ध्यान में रखना उन सार्वजनिक नीतियों की रचना को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकता है जिनका वृद्धों एवं अन्य बाधिताग्रस्त लोगों की सहायता करने से कुछ भी वास्ता हो (बाधिता से अभिप्राय आय की कृत्यकारिताओं में परिवर्तित कर पाने में कठिनाई से ही है) ।

तीसरी प्रकार की कठिनाइयाँ परिवार के भीतर ही आय (उपभोग के अवसरों) के विभाजन-आवंटन से जुड़ी हैं । कई बार परिवार में लड़कों के प्रति लगाव इतना सशक्त होता है कि आय का अपेक्षाकृत अधिक भाग उन्हीं के हितों का संवर्धन करने की भेंट चढ़ जाता है ।

ऐसी दशा में जिन सदस्यों के हितों (यानी बेटियों) का हनन हो रहा है उनकी हितलाभ वंचना की कोई झलक परिवार की आय के स्तर से नहीं मिल पाएगी । यह मुद्दा कुछ विशेष परिवेश आदि में तो बहुत ही प्रबल हो जाता है ।

एशिया और उत्तरी अफ्रीका के अनेक देशों में परिवार के संसाधनों के आवंटन में स्त्री-पुरुष के बीच की खाई बहुत ही बड़ी दिखाई देती है । लड़कियों की सापेक्ष अभावग्रस्तता की झलक (बहुत ही आसानी से) उनकी अधिक मृत्युदर, रोगग्रस्तता, कुपोषण और चिकित्सीय लापरवाही में दिखाई पड़ जाती है, पर केवल आय का विश्लेषक यह बात नहीं समझ पाता ।

यह मुद्दा भले ही उत्तरी अमेरिका और यूरोप में गरीबी तथा विषमता के विश्लेषण-अध्ययन में इतना प्रबल न हो, पर यह मान लेना कि ‘पश्चिमी देशों में नर-नारी की विषमता है ही नहीं’ उचित नहीं होगा । उदाहरणस्वरूप, इटली में महिलाओं के अनभिज्ञात (अनरिकगनाइस्ड) श्रम का सामान्य राष्ट्रीय आय आंकलन में अनभिज्ञात (रिकगनाइस्ड) श्रम के साथ अनुपात बहुत ही बड़ा है ।

इस प्रकार समाज के अर्द्धांश द्वारा किए गए श्रम और समय के प्रयोग तथा उससे जुड़ी स्वातन्त्रय-हानि की अवहेलना का यूरोप और उत्तरी अमेरिका में भी गरीबी के विश्लेषण पर बहुत प्रभाव पड़ सकता है । अन्य अनेक प्रकार से परिवार के भीतर दायित्वों-अधिकारों के विभाजन विश्व के अनेक देशों में सार्वजनिक नीतियों की रचना एवं मूल्यांकन की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण रहते हैं । चौथी महत्वपूर्ण बात यह भी है कि आय की सापेक्ष (रिलेटिव) वंचना क्षमताओं के वितान में परम (एबसलियूट) वंचना का रूप भी धारण कर सकती है ।

शेष विश्व की तुलना में उच्च आय का उपभोग करते हुए भी किसी अमीर देश के अपेक्षाकृत गरीब निवासियों को अनेक क्षमताओं की समाप्ति में बाधाएँ अनुभव हो सकती हैं । प्रायः अधिक अमीर देश में उसी स्तर की ‘सामाजिक कृत्यकारिताएँ’ प्राप्त करने के लिए पर्याप्त वस्तुएँ खरीदने के लिए अधिक आय की आवश्यकता होती है ।

एक उदाहरण- प्रायः यह मान लिया जाता है कि अमीर शहर के उपनगरों में बसे सभी व्यक्तियों के पास अपने वाहन होंगे, अत: वहाँ सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था की आवश्यकता ही नहीं होगी पर उन्हीं क्षेत्रों के अपेक्षतया गरीब निवासियों के लिए अमीरों के पड़ोस में रहना इस सार्वजनिक परिवहन सुविधा के अभाव के कारण बहुत ही कष्टप्रद हो सकता है ।

एडम स्मिथ ने 1776 में अपनी पुस्तक “वैल्थ ऑफ नेशन्स” में इस बात को उठाया था । आज भी गरीबी के समाजशास्त्र को समझ पाने में इन बातों का महत्व कम नहीं हुआ है । उदाहरण के रूप में, कुछ लोगों को सामुदायिक जीवन की गतिविधियों में भागीदारी कर पाने में आ रही कठिनाई उनके ‘समाज से बाहर रह जाने’ का कारण बन सकती है । कई बार सामाजिक जीवन में भागीदारी के लिए अनेक प्रकार के यंत्र-उपकरणों का होना आवश्यक लगने लगता है ।

जैसे टेलीविजन, विडियो कैसेट रिकॉर्डर, वाहन आदि । जिन देशों में ये चीजें आम बात बन चुकी हों वहाँ तो अमीर देश के अपेक्षाकृत गरीब व्यक्तियों पर इनके कारण बहुत भारी वित्तीय बोझ पड़ सकता है, भले ही वे व्यक्ति भी अपेक्षतया कम समृद्ध देशों की तुलना में बहुत अधिक आय का उपभोग कर रहे हों ।

वास्तव में अमीरी के बीच भुखमरी (संयुक्त राज्य अमेरिका भी इससे अछूता नहीं है) का इन स्पर्धात्मक पदार्थों की माँग से कुछ-न-कुछ सम्बन्ध अवश्य रहता है । क्षमता-योग्यता परिप्रेक्ष्य गरीबी के विश्लेषण में विपन्नता के स्वरूप एवं कारणों को और बेहतर ढंग से समझा पाने में उपयोगी होता है ।

इतनी स्पष्टता साधनों, प्रायः आय पर ही ध्यान केन्द्रित होने पर संभव नहीं हो पाती । किन्तु जब साध्यों की ओर ध्यान दिया जाता है और साध्यों की प्राप्ति के प्रयास की स्वतन्त्रता की बात उठती है तो कितनी ही बातें बहुत स्पष्ट हो जाती हैं हमारे उपर्युक्त उदाहरण उन नई अनुभूतियों की और ध्यान दिला रहे हैं जिनका इस प्रकार से विश्लेषण दृष्टि को और विस्तृत करने पर साक्षात्कार होता है ।

अभाव वंचनाएँ आदि आधारभूत स्तर के कुछ और निकटस्थ दिखाई देने लगती हैं यह सामाजिक न्याय के सूचना आधार से निकटता है । इस कारण से भी क्षमता की विपन्नता का अध्ययन अधिक उपयुक्त हो जाता है ।

आय की दरिद्रता (इनकम पोवर्टी) और क्षमता दरिद्रता (केपेबिलिटी पोवर्टी):

आय अनेक क्षमताओं को प्राप्त करने का साधन है । इसी कारण गरीबी को आय के अभाव की अपेक्षा क्षमताओं के अभाव की व्याख्या प्रदान करते समय यह बात ध्यान रखनी होगी कि ये दोनों प्रकार के दृष्टिकोण एक दूसरे परे जुड़े हुए भी हैं ।

यही नहीं, यह सम्बन्ध द्विपक्षीय भी होता है क्योंकि जीवनयापन की क्षमताओं में सुधार व्यक्ति की उत्पादन क्षमता और अर्जन क्षमता को भी संवर्धित करती है । अत: क्षमता सुधार के कारण आय में भी वृद्धि होगी । यह दूसरी प्रकार का सम्बन्ध सूत्र आय की विषमता के निवारण में बहुत उपयोगी हो सकता है ।

बुनियादी शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था के सुधार केवल प्रत्यक्षत: जीवन की गुणवत्ता में सुधार नहीं लाते, इनके कारण व्यक्ति की उर्पाजन क्षमता में भी सुधार आता है और आय-आधारित गरीबी से सक्त हो पाने का प्रयास भी कर पाता है ।

बुनियादी शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था का प्रसार जितना व्यापक होगा, जितने अधिक व्यक्तियों तक इसकी पहुंच होगी, उतनी ही अधिक सीमा तक समाज के गरीब सदस्य अपनी विपन्नताजनित दुर्दशा से उबर पाने में सफल रहेंगे । ज्यां ट्रीज के साथ मिलर हाल ही में भारत में आर्थिक सुधारों के मूल्यांकन विषयक अमर्त्यसेन के अध्ययन में इसी सम्बन्ध सूत्र को सारे विचार मंथन का केन्द्र बनाया था ।

अनेक प्रकार से आर्थिक सुधारों ने भारतीय जन सामान्य के लिए उन आर्थिक सुअवसरों के द्वार खोल दिए हैं जिन पर पहले अत्यधिक नियंत्रणवादी लाइसेन्स राज के ताले जड़े हुए थे किन्तु इन सुअवसरों का लाभ उठा पाने की सम्भावनाएं विभिन्न भारतीय जन समुदायों की सामाजिक सन्नद्धता से स्वतंत्र नहीं हो सकती ।

सुधार बहुत पहले ही हो जाने चाहिए थे, किन्तु ये और अधिक प्रभावोत्पादक हो सकते थे यदि हम ऐसी सामाजिक सुविधाओं की रचना कर चुके होते जिनसे सुधारजनित सुयोगों से समाज के सभी सदस्य लाभान्वित भी हो पाते ।

जापान से आरम्भ कर पूर्वी एवं अनेक दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों (सुधारोपरान्त चीन, हांगकांग, ताईवान, द. कोरिया, सिंगापुर, थाईलैण्ड आदि) ने साक्षरता, अंकज्ञान सहित बुनियादी शिक्षा, अच्छी जनस्वास्थ्य व्यवस्था और प्रसार कर सुधारों की प्रक्रिया से बहुत लाभ उठाया है ।

भारत ने सूर्य के उदयाचल की दिशा से प्रसारित अर्थव्यवस्था की अनावृति और व्यापार सम्बन्धी उपदेशों को तो बहुत मनोयोग से ग्रहण कर लिया है किन्तु अन्य सन्देश अभी भी प्रायः अनसुने ही रह गए हैं । भारत में मानवीय विकास की दृष्टि से बहुत विकट क्षेत्रीय विषमताएँ विद्यमान हैं ।

एक ओर केरल है जहाँ साक्षरता, स्वास्थ्य सेवा, विकास एवं दूरगामी भू-सुधारों में व्यापक सफलता मिल चुकी है तो दूसरी ओर बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे विशाल प्रान्त भी हैं जो विराट जन समुदाय से आप्लावित हैं पर जहाँ मानवीय विकास के लक्षण बहुत ही धूमिल हैं ।

इन त्रुटियों का स्वरूप भी अलग-अलग राज्यों में विलक्षणता से पूर्ण है । यह भी कहा जा सकता है कि हाल ही के समय तक केरल नियंत्रण रहित बाजार आश्रित आर्थिक समृद्धि के प्रति बहुत ही गहरे संदेहभाव से ग्रसित रहा है । इसी कारण इसके विकसित मानवीय संसाधन आर्थिक संवृद्धि के प्रसार का आधार नहीं बन पाए । जिस प्रकार से अब एक प्रतिपूरक आर्थिक रणनीति बनाने का प्रयास हो रहा है, यदि वह पहले हो गया होता तो सम्भवत: केरल भी तीव्र आर्थिक विकास से लाभान्वित हो रहा होता ।

इसके विपरीत उत्तर भारत के कई प्रदेशों में बाजार के सुयोगों तथा नियंत्रण के स्तरों में भले ही अंतर रहे हों पर उन सभी में सामाजिक विकास का स्तर प्रायः न्यून ही रहा है । समाज में व्याप्त अन्यान्य, अभावों और बाधिताओं के निवारण के लिए क्षमता-योग्यता और आय परिप्रेक्ष्यों के बीच द्विपक्षीय परिपूरकता को समझ लेने की आवश्यकता बहुत ही अधिक प्रतीत होती है ।

एक और बात भी बड़ी विलक्षण है । भले ही केरल प्रान्त की आर्थिक संवृद्धि दर बहुत सामान्य रही हो किन्तु उसकी आय विपन्नता में कमी की दर शेष प्रान्तों की तुलना में सबसे अधिक रही है । कुछ राज्यों ने तो तीव्र आर्थिक समृद्धि के आधार पर आय विपन्नता को कम किया है (पंजाब इसका सबसे उत्कृष्ट उदाहरण है) किन्तु केरल ने अपनी दुरवस्था के निवारण में मुख्यतः बुनियादी शिक्षा, स्वास्थ्य व्यवस्था और प्रभावी ढंग से भूमि के पुन: वितरण का सहारा लिया है ।

आय विपन्नता और क्षमता विपन्नताओं के बीच इन सम्बन्ध सूत्रों पर बल देना आवश्यक है पर साथ ही यह भी समझ लेना चाहिए कि केवल आय विपन्नता का निवारण ही निर्धनता नीतियों का एकमात्र और अन्तिम लक्ष्य नहीं हो सकता ।

निर्धनता को आय अभाव के दृष्टिकोण में बांधकर इस आधार पर शिक्षा, स्वास्थ्य आदि में निवेश को उचित ठहराना कि इससे आय विपन्नता कम करने में सहायता मिलेगी, भी किसी न किसी रूप में समाज के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकता है ।

इस प्रकार तो साध्यों एवं साधनों के विषय में विभ्रम छा जाएगा । पहले भी उन कारकों की चर्चा की गई है जिनके कारण अनेक मूलभूत प्रश्न हमें गरीबी और वंचनाओं को मनोवांछित जीवनयापन और वास्तविक स्वातन्त्रयों के रूप में देखने-समझने को बाध्य कर रहे हैं ।

मानवीय क्षमता-योग्यताओं का प्रसार प्रत्यक्षतः इस परिदृश्य का एक अंग बन जाता है । यही नहीं, मानवीय योग्यताओं के संवर्धन में उत्पादिता और उर्पाजन क्षमताओं का भी परिपोषण होता है । इस सम्बन्ध में हमें एक ऐसा परोक्ष माध्यम भी मिल जाता है जिसके द्वारा योग्यता-संवर्द्धन परोक्ष एवं प्रत्यक्ष दोनों तरह से मानवीय जीवन को समृद्ध करता है और मानवीय अभावों-वंचनाओं को कुंठित करता है ।

साधनस्वरूप सम्बन्ध सूत्र महत्वपूर्ण हो सकते हैं किन्तु वे गरीबी के स्वरूप एवं लक्षणों की बुनियादी समझ-बूझ का स्थान नहीं ले सकते । विकास सम्बन्धी वर्तमान चिन्तन में निर्धनता उन्मूलन का स्थान सर्वोपरि है । एक समय था जब विकास से जुड़े विद्वानों और नीति निर्धारकों का ध्यान आर्थिक वृद्धि (इकानोमिक ग्रोथ) की दर व उसके ढाँचे अथवा पैटर्न तथा आय तथा सम्पत्ति के वितरण में असमानता पर केन्द्रित रहता था ।

यद्यपि ये विषय अभी भी महत्वपूर्ण हैं किन्तु अलग-अलग देशों में इस बात पर अधिकाधिक बल दिया जा रहा है कि किसी सीमा तक उनके देशवासी एक दीर्घ स्वस्थ एवं परिपूर्ण जीवन के लिए न्यूनतम आवश्यकताओं से वंचित रहते हैं ।

पूरे विश्व के साथ भारतवर्ष में भी इस विषय पर स्वाधीनता के पूर्व ही चिन्तन प्रारम्भ हो गया था । अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय नियोजन समिति की रिपोर्ट में न्यूनतम जीवन स्तर की परिभाषा और उसके अवयवों की व्याख्या ठोस शब्दों में की गई थी ।

इसी बीच 15वें अन्तर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन में न्यायोचित मजदूरी के आधार तथा जीवन निर्वाह हेतु आवश्यक मजदूरी की विषय वस्तु की व्याख्या की कांग्रेस द्वारा जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में गठित, आर्थिक नीति, सम्बन्धी समिति ने यह सिफारिश की कि एक राष्ट्रीय मानक के अनुरूप प्रत्येक परिवार को भौतिक एवं सामाजिक कल्याण के लिए सभी आवश्यक तत्वों की एक यथोचित समय में पूर्ति सुनिश्चित किया जाना विकास की सभी योजनाओं का व्यवहारिक ध्येय होना चाहिए ।

इसी प्रकार संविधान में दिए गये राज्यनीति के निर्देशक सिद्धान्तों के अन्तर्गत सरकार को यह विशेष जिम्मेदारी दी गई कि यह देश के नागरिकों के लिए पर्याप्त आजीविका व रोजगार के अवसर, स्वास्थ्य व पोषण, शिक्षा तथा सुरक्षा सुनिश्चित करें ।

इन सारी विवेचनाओं के बावजूद/सरकारी स्तर पर विकास के ध्येय तथा उद्देश्य स्पष्ट नहीं हो सके । साठ तथा सत्तर के दशक में गरीबी की समस्या जिससे विकासशील देशों में अधिकांश लोग पीड़ित थे, के समाधान हेतु अपनायी नई नीतियों तथा कार्यक्रमों की असफलता के बीच विकास के ध्येय के रूप में आर्थिक वृद्धि के विषय में मोहभंग हो चुका था ।

इसका प्रभाव राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सभी चिन्तकों, नीति निर्णायकों पर पड़ा किन्तु उस समय भी यह सोचा जा रहा था कि आर्थिक वृद्धि तथा सामाजिक न्याय के ध्येय को कैसे प्राप्त किया जाए । तथापि गरीबी, बेरोजगारी तथा सामाजिक असमानता पर ध्यान दिया जाने लगा और सभी देशों ने इन समस्याओं को समाप्त करने हेतु अपनी-अपनी रणनीतियाँ तथा एप्रोचेज तैयार की ।

भारतवर्ष में भी इस मामले स्पष्टता नहीं थी कि आर्थिक वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना किस प्रकार सामाजिक न्याय के ध्येय को प्राप्त किया जा सकता है । यद्यपि सामाजिक न्याय को प्रारम्भ से ही प्रजातंत्र को जीवित रखने के लिए अनिवार्य शर्त के रूप में स्वीकार किया गया था । प्रथम पंचवर्षीय योजना में यह भ्रान्ति बनी रही ।

“आर्थिक समानता तथा सामाजिक न्याय प्रजातंत्र को जीवित रखने हेतु अनिवार्य शर्त है ओर आय तथा सम्पत्ति में विषमताओं को कम करने के लिए सावधानीपूर्वक तैयार की गई नीति नियोजन का मूलतंत्र है । किन्तु आर्थिक समानता लाने हेतु, जल्दबाजी में उठाए गये कदम बचत तथा उत्पादन के स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं और हम जिस प्रकार की नियोजित अर्थव्यवस्था चाहते हैं उसे प्राप्त करने में कठिनाई हो सकती है ।”

इसी प्रकार की दुविधा दूसरी पंचवर्षीय योजना में भी चलती रही और नियोजन की नीति निर्धारण करने वाले विशेषज्ञ यह महसूस करते थे कि आर्थिक वृद्धि तथा सामाजिक न्याय के ध्येयों में असामंजस्य है अथवा वे परस्पर विरोधी हैं ।

तथापि दूसरी योजना में इस सम्बन्ध में कुछ घिसे पिटे उद्देश्य दोहराए गये यथा रोजगार के अवसरों में व्यापक विस्तार किया जायेगा तथा आय एवं सम्पत्ति में असमानता को कम करके आर्थिक शक्ति का समान वितरण किया जायेगा ।

तीसरी तथा चौथी पंचवर्षीय योजनाओं में पुन: समानतावादी ध्येयों का धार्मिक अनुष्ठान के तरीके से उल्लेख किया गया । उदाहरणार्थ तीसरी योजना के उद्देश्यों में यह कहा गया कि अवसरों में उत्तरोत्तर अधिक समानता स्थापित करना तथा आय व सम्पत्ति में असमानता कम करके आर्थिक शक्ति का अधिक समान वितरण करना इस योजना का प्रमुख ध्येय होगा ।

इसी प्रकार चौथी योजना में यह कहा गया कि विकास के लाभ साधारण व्यक्ति तथा समाज के कमजोर वर्ग तक पहुँचने चाहिए ताकि उत्पादन क्षमता को निर्बाध रूप से विकसित किया जा सके । इस समय तक विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के परिणामों से निराशा बढ़ती जा रही थी और मोह दूर होता जा रहा था । यह तथ्य भी सामने आ गया था कि साठ के दशक के अन्त में हरित क्रान्ति द्वारा कृषि उत्पादन में महत्वपूर्ण वृद्धि के बावजूद इसका लाभ छोटे किसानों को नहीं पहुँच पाया ।

छोटे किसानों तथा कृषि श्रमिकों की आय तथा उत्पादकता में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई । इस सम्बन्ध में आवश्यक कदम उठाने हेतु चौथी पंचवर्षीय योजना के दौरान स्माल फारमर्स डेवलपमेन्ट एजेन्सी तथा मार्जिनल फारमर्स एण्ड लैण्डलैस लेबरर्स प्रोग्राम, ड्राउटप्रोन एरिया प्रोग्राम तथा कमाण्ड एरिया डेवलपमेन्ट प्रोग्राम आदि कार्यक्रम प्रारम्भ किए गये ।

इनका उद्देश्य यह था कि- जिला अथवा क्षेत्रीय स्तर पर कार्यक्रम तैयार करके क्रियान्वित किए जाये और उनमें राज्य सरकारों का कोई हस्तक्षेप न हो । इन संस्थाओं को कुछ स्वायतत्ता प्रदान की गई और वित्तीय वर्ष में धनराशि कालातीत (लैप्स) न होने का प्राविधान रखा गया ।

पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में काम के बदले अनाज योजना, डैजर्ट डैवलपमेन्ट प्रोग्राम भी इसी उद्देश्य से प्रारम्भ किए गये ताकि सम्पत्ति विहीन लोगों तथा समाज के कमजोर वर्गों में असंतोष की भावना को दूर किया जा सके ।

ये सभी कार्यक्रम चालू विकास योजनाओं से अलग प्रारम्भ किये गये और ये सीमित क्षेत्र में क्रियान्वित किए गये । इन कार्यक्रमों का स्वरूप छुटपुट था और इनका उद्देश्य किसी विशिष्ट समस्या का समाधान करना अथवा उसे बढ़ने न देने से रोकना था । इनकी रचना के सैद्धान्तिक पक्ष पर समुचित ध्यान नहीं दिया गया था । तथापि पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में गरीबी उन्मूलन की बात की गई थी, किन्तु यह दर्शनमात्र ही रह गया ।

गरीबी की रेखा :

इन्हीं बातों के साथ-साथ विभिन्न मंचों पर निर्धनों की समस्याओं पर विचार-विमर्श प्रारम्भ होने के पूर्व जो बड़ी कठिनाई बार-बार उभर कर आ रही थी वह निर्धनों की परिभाषा की थी । इण्डियन लेबर कान्फ्रेन्स ने 1357 में पुन: मजदूरी निश्चित करने के सिद्धान्तों के निर्धारण के विषय में ऐसे ही मामले उठाये ।

1962 में योजना आयोग के कार्यकारी दल ने न्यूनतम रहन-सहन के स्तर के विभिन्न पक्षों पर विचार करने के उपरान्त निम्नलिखित संस्कृति की थी:

“पाँच व्यक्तियों (अर्थात चार वयस्कों) के एक परिवार के लिए राष्ट्रीय न्यूनतम 1960-61के मूल्यों पर रु. 100.00 से कम मासिक नहीं होना चाहिए या रु. 20.00 प्रति व्यक्ति । शहरी क्षेत्र में वस्तुओं के अपेक्षाकृत महँगे दामों को ध्यान में रखते हुए यह राशि रु. 125.00 मासिक होनी चाहिए अर्थात रु. 25.00 प्रति व्यक्ति ।”

उपरोक्त के सन्दर्भ में यह उल्लेखनीय है कि- न्यूनतम रहन-सहन के स्तर की उक्त अवधारणा स्व. पीताम्बर पंत द्वारा तैयार किए गये एक निबन्ध में अगस्त 1962 में प्रस्तुत की गई थी । यह निबन्ध 1961-76 के विकास के परिप्रेक्ष्य पर विचारार्थ योजना आयोग द्वारा गठित कार्यकारी दल के निर्देशन में तैयार किया गया था ।

इसमें उस कार्यकारी दल की संस्तुतियों को भी सम्मिलित किया गया था जिसमें ‘गरीबी की रेखा’ को परिभाषित किया गया था । इस सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि इस दस्तावेज में पहली बार दयनीय गरीबी की समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित किया गया था और गरीबी के आकार को परिभाषित किया गया था ।

यह सिद्ध करने के साथ-साथ कि आधे लोग दयनीय निर्धनता में रहते हैं इसमें गरीबी के उन्मूलन की महती आवश्यकता पर बल दिया गया था । इसमें कहा गया था कि- इतनी व्यापक गरीबी एक ऐसी चुगती है जिसकी आधुनिक काल में कोई भी समाज, लम्बे समय तक उपेक्षा नहीं कर सकता ।

इसका उन्मूलन मानवीय आधार के साथ-साथ सुव्यवस्थित प्रगति के लिए आवश्यक शर्त के रूप में भी किया जाना आवश्यक है । किसी परिपक्व जनतंत्र में किसी भी ऐसी नीति अथवा कार्यक्रम को जन सहयोग और राजनैतिक समर्थन नहीं मिल सकता जो गरीबी उन्मूलन में असफल हैं ।

अत: हमारे नियोजन का केन्द्र बिन्दु शीघ्र अति शीघ्र गरीबी उन्मूलन होना चाहिए । अब समय आ गया है कि जब हमें देश के प्रत्येक नागरिक को एक निश्चित समय में न्यूनतम आमदनी सुनिश्चित करने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए ।

उक्त दस्तावेज में यह भी स्वीकार किया गया कि निर्धनों में निर्धनतम लोग वृद्धि अथवा विकास की प्रक्रिया से स्वतः लाभान्वित नहीं हो पायेंगे । काफी बड़ी संख्या में लोग सुदूर क्षेत्रों में रहते हैं जो हमारी अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा से अलग-अलग है ।

इसके साथ ही हमारी ग्रामीण आर्थिक गतिविधियाँ अर्थव्यवस्था के बढ़ने वाले सेक्टर्स के साथ पूर्ण रूप से सुग्रथित नहीं है । अर्धरोजगारों की बहुत बड़ी संख्या जिसमें भूमिहीन, सीमान्त कृषक शामिल है, की अपेक्षाकृत कम गतिशीलता आदि कुछ ऐसे कारक हैं जिनके कारण आर्थिक विकास द्वारा अपने आप सारी जनसंख्या की आमदनी नहीं बढ़ सकती ।

काफी बड़े अनुपात में लोग या तो इससे अछूते रहेंगे या अधिकांश बहुत कम लाभ उठा सकेंगे जब तक उनकी समस्याओं का समाधान करने हेतु विशिष्ट उपाय नहीं किये जाते । इसमें यह माना गया कि इस श्रेणी में लगभग जनसंख्या के 1/5 लोग रहेंगे ।

इस प्रकार लगभग तीन दशक पूर्व यह स्वीकार किया गया कि विकास, जिसका उद्देश्य जी. डी. पी. में वृद्धि करना है के द्वारा गरीबों के नीचे के दो दशमक (डैसाइल) को लाभ नहीं पहुँच सकेगा यदि उनके लिए कुछ विशेष कदम नहीं उठाये गये ।

विकास की परम्परागत प्रक्रिया उन्हें अछूता छोड़ते हुए निकल जायेगी, इसका एहसास उस समय हो गया था । स्व. पीताम्बर पन्त के निर्देशन में तैयार किए गये उक्त निबन्ध पर योजना आयोग द्वारा विचार तो किया गया किन्तु उसे औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया गया ।

उसी समय भारत-चीन युद्ध, नेहरू जी का देहान्त तथा भारत-पाक युद्ध और उसके बाद के सूखे ने देश के सामने गम्भीर समस्याएं पैदा कर दी और जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है चौथी पंचवर्षीय योजना में रहन-सहन का न्यूनतम स्तर प्राप्त करने के विषय में कोई उल्लेख भी नहीं आया ।

तथापि साठ के दशक के अन्त में गरीबी तथा जीवन की गुणवत्ता, स्वास्थ्य तथा पोषण आदि के विषयों पर बहुत से शोधकार्य किए गये । इस तथ्य की ओर भी ध्यान आकर्षित किया गया कि जीवन की गुणवत्ता आय के ऊँचे स्तर पर ही निर्भर नहीं करती ।

इसके लिए बहुत से सामाजिक और राजनैतिक कारण हो सकते हैं । इस सन्दर्भ में भारतवर्ष में केरल तथा श्रीलंका का उदाहरण भी दिया गया । इसी बीच महालोनीबिस कमेटी (1967) तथा हजारी (1967) के अध्ययन ने यह स्पष्ट कर दिया कि उस समय तक पंचवर्षीय योजनाओं के फलस्वरूप उपभोग, आमदनी तथा आर्थिक शक्ति के संकेद्रन में कोई कमी नहीं आई है ।

इसी परिप्रेक्ष्य में चरम निर्धनता तथा उसे कम करने की रणनीतियों के विषय में बहुत से शोध अध्ययन किए गये । डान्डेकर तथा रथ (1974) ने अपनी पुस्तक ‘पावर्टी इन इण्डिया’ में इस बात पर बल दिया कि गरीबी की रेखा की परिभाषा पोषक भोजन तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं को क्रय करने योग्य न्यूनतम आय के आधार पर की जानी चाहिए ।

उन्होंने गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या के अनुमान दिए तथा इसे दूर करने हेतु लोक निर्माण के विशाल कार्यक्रम प्रारम्भ किए जाने की रणनीति का सुझाव दिया । 1970 के दशक के प्रारम्भिक सालों में गरीबी के परिमाणीकरण तथा उसके आकार के सम्बन्ध में पर्याप्त साहित्य विकसित हो चुका था । इस विषय पर अच्छी खासी बहस देश भर में प्रारम्भ हो चुकी थी जो पाँचवीं पंचवर्षीय योजना के अभिगमन पत्र (एप्रोच पेपर) में परिलक्षित होती है ।

पाँचवीं पंचवर्षीय योजना के आलेख में गरीबी उन्मूलन के विषय को यथेष्ट स्थान दिया गया था । इस आलेख में उस समय विद्यमान स्थिति का विश्लेषण भी किया गया था और यह कहा गया था कि- “पूरी जनसंख्या के 30 प्रतिशत लोगों का कुल निजी उपभोग के लगभग 13 प्रतिशत भाग पर आश्रित होने का अनुमान है ।”

इसमें आगे दुख व्यक्त किया गया था कि यदि यह स्थिति अपरिवर्तित रही तो सबसे नीचे 30 प्रतिशत लोगों के उपभोग का मासिक स्तर रु. 25.00 (1972-73 के मूल्यों पर) से रु. 26.00 हो जायेगा और 1983-64 में रु. 35.00 तथा (1985-86 में रु. 38.00) हो जायेगा ।

इसका तात्पर्य यह हुआ कि 1980 के दशक के मध्य तक भी जनसंख्या के इस भाग का उपभोग का स्तर रु. 40.00 मासिक के मानदण्ड से कम ही रहेगा । स्पष्टत: असमानता का वर्तमान स्तर हमारे गरीबी उन्मूलन के ध्येय के अनुरूप नहीं है ।

यद्यपि पाँचवीं योजना के आलेख में इस मामले पर गम्भीरतापूर्वक विचार किया गया था किन्तु पाँचवीं पंचवर्षीय योजना के अन्तिम दस्तावेज में इसका सरसरी तौर पर उल्लेख किया गया और गरीबी उन्मूलन या गरीबी को पर्याप्त मात्रा में कम करने का उल्लेख मात्र भी नहीं किया गया ।

बस योजना दस्तावेज में रोजगार तथा सरकारी निवेश के माध्यम से लाभपूर्ण रोजगार में वृद्धि करने की रणनीति विकसित की गई ताकि योजना में निर्धारित उत्पादन वृद्धि के लक्ष्यों, कृषि विकास हेतु सरकारी समर्थन को गहन तथा परिष्कृत करने, भूमि सुधार क्रियान्वयन करने तथा लघु कृषकों को सहायता पहुंचाने व संगठित क्षेत्र में रोजगार सृजन करने पर ध्यान केन्द्रित किया गया ।

जहाँ तक जीवन स्तर का प्रश्न है उसके मापने हेतु पाँचवीं योजना में अपनाई गई विधि का प्रयोग उपभोग के मानकों तथा रोजगार के परिदृश्य को एकीकृत करने हेतु किया गया । इस प्रकार गरीबी उन्मूलन पर ध्यान धूमिल हो गया ।

अन्ततोगत्त्वा छठी पंचवर्षीय योजना में गरीबी की रेखा परिभाषित की जा सकी । छठी पंचवर्षीय योजना में ग्रामीण क्षेत्र में 2400 कैलोरी प्रति व्यक्ति और शहरी क्षेत्र में 2100 कैलोरी प्रति व्यक्ति का उपभोग करने वाले वर्ग द्वारा किए गये व्यय का मध्य बिन्दु इस रेखा के रूप में तय किया गया ।

इस व्यय का ‘कट ऑफ पाइन्ट’ यद्यपि रु. 4,560.00 प्रतिवर्ष होना चाहिए था किन्तु यह रु. 3,500.00 निर्धारित किया गया । इस बात का कोई स्पष्टीकरण भी नहीं दिया गया । निर्धनता की रेखा विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में पुनरीक्षित होती रही और यह ‘कट ऑफ पाइन्ट’ 1962-63 के मूल्यों पर रु. 13,680.00 ग्रामीण क्षेत्रों तथा रु. 15,840.00 शहरी क्षेत्रों में स्वीकार किया गया ।

गरीबी की रेखा को उपरोक्त व्यय धनराशि के रूप में निर्धारित किए जाने में एक बड़ी असंगति थी । यह माना गया था कि सभी को खाद्यान्न सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से प्राप्त होगा । जबकि उस समय केवल 10 प्रतिशत जनसंख्या ही इससे लाभान्वित होती थी ।

दूसरी असंगति थी कि शहरी तथा ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में खाद्यान्न बराबर मूल्यों पर उपलब्ध होता है । कालान्तर में इन असंगतियों को दूर किया गया । इस असंगति को सार्वजनिक वितरण प्रणाली में गरीबी की रेखा से नीचे (बी.पी.एल.) तथा इस रेखा से ऊपर (ए.पी.एल.) श्रेणियों में बाँटकर अलग-अलग मूल्यों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराने के निर्णय द्वारा किया गया ।

गरीबी की रेखा की परिभाषा के सम्बन्ध में सातवें वित्त आयोग ने यह कहा था कि यह बहुत ही सीमित परिभाषा है और गरीबी की रेखा मात्र उपभोग व्यय के आधार पर तय नहीं की जानी चाहिए बल्कि इसके अन्तर्गत शिक्षा, स्वास्थ्य, समाज कल्याण, आवास, पेयजल इत्यादि पर होने वाले व्यय को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए ।

इसके अलावा आयु, लिंग तथा व्यवसाय आदि की भिन्नताओं पर भी इस परिभाषा में ध्यान नहीं दिया गया है । पोषण विशेषज्ञ सुखात्में ने कहा था कि ऊर्जा (एनर्जी) की आवश्यकता का औसत भी अलग-अलग होता है । एक ही आयु, लिंग तथा व्यवसाय के हर व्यक्ति के लिए समय-समय पर भी अलग-अलग एनर्जी लेवल की आवश्यकता हो सकती है । उपरोक्त के अलावा ग्रामीण क्षेत्र में आय का अनुमान कठिन है ।

दैनिक मजदूरी पर खेतिहर मजदूरों की आय विभिन्न वर्षों में या समय में एक समान नहीं रहती और यह कृषि उत्पादन की विविधता, वर्षा अथवा सूखा आदि से प्रभावित होती रहती है । बहुत से स्थानों में यह आंशिक रूप से नकद तथा आंशिक रूप से खाद्यान्न के रूप में दी जाती है ।

तथापि यह गरीबी की रेखा सरकार द्वारा मान ली गई है और राष्ट्रीय प्रतीक सर्वेक्षण संगठन द्वारा इसके अनुमान उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण के आधार पर लगाए जाते हैं और इसी के साथ-साथ केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन व नेशनल काउन्सिल ऑफ एप्लाइड इकानोमिक रिसर्च भी गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या के अनुमान लगाने हैं । यद्यपि यह वाद विवाद चलता रहता है ।

सातवीं तथा उसके बाद की योजनाओं में यह व्यय सीमा पुनरीक्षित की जाती रही है । गरीबी उन्मूलन के विशेष कार्यक्रम के रूप में 1976 में तत्कालीन वित्तमंत्री सी. सब्रमण्यम ने अपने बजट भाषण में एकीकृत ग्रामीण विकास परियोजना के प्रारम्भ करने का प्रावधान किया था किन्तु 1977 में केन्द्र में सत्ता परिवर्तन के कारण इसका गम्भीरतापूर्वक पालन नहीं किया जा सका ।

तथापि इस समय तक यह तथ्य उभर कर आ चुका था छठी पंचवर्षीय योजना में प्रारम्भ किए गये कार्यक्रम जैसे स्माल फारमर्स डेवलपमेन्ट एजेन्सी, मार्जिनल फारमर्स एण्ड एग्रीकल्चरल लेबरर्स प्रोग्राम, ड्राइट प्रोन एरिया प्रोग्राम तथा कमाण्ड एरिया डेवलपमेन्ट प्रोग्राम आदि के अन्तर्गत बहुत सीमित क्षेत्र आच्छादित (1818 विकास खण्ड) था और इनमें विभागीय कारकों (सैक्टोरल फैक्टर्स) को आधार बनाया गया था ।

इनमें केवल प्राथमिक सेक्टर अथवा कृषि एवं सम्वर्गीय कार्यक्रमों को ही सम्मिलित किया गया था जिनसे केवल वे ही लाभान्वित हो सकते थे जो भूमि के स्वामी हैं । भूमिहीन लोगों को इनसे लाभ प्राप्त नहीं हो सकते थे ।

इसलिए इन कार्यक्रमों में अधिक लाभान्वितों को फायदा पहुँचाने के उद्देश्य से 1978-83 की छठी योजना आलेख में पूर्ण रोजगार प्रदान करने हेतु एकीकृत ग्रामीण विकास परियोजना लागू की गई और लक्षित समूहों को अन्त्योदय के आधार पर आच्छादित करने का निर्णय किया गया । प्रत्येक वर्ष इसमें 300 नए विकास खण्ड लेने का निर्णय लिया गया ।

इसी बीच केन्द्र में पुन: सत्ता परिवर्तन हुआ और छठी योजना को दोबारा तैयार करने का निर्णय लिया गया । यह भी निश्चय किया गया कि देश के सभी विकास खण्डों में एकीकृत ग्राम्य विकास योजना लागू की जाएगी । यह उल्लेखनीय है कि आलेख छठी पंचवर्षीय योजना (1978-83) तथा छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85) में गरीबी उन्मूलन हेतु एक त्रिभुजी रणनीति का उल्लेख किया गया ।

जिसमें निम्न अवयव थे:

(१) उत्पादक परिसम्पत्ति पर आधारित स्वतः रोजगार तथा सम्पूरक रोजगार के अवसरों में वृद्धि करके ऐसे लोगों की आमदनी में बढ़ोत्तरी करना जो अधिकतर सम्पत्ति विहीन है ।

(२) पारिस्थितकीय (इकोलोजिकल) दृष्टि से प्रतिकूल क्षेत्रों, जहाँ रोजगार के अवसर सीमित हैं और जहाँ व्यापक तथा गहन गरीबी है, का विकास करना ।

(३) जन सामान्य विशेषकर निर्धन व्यक्तियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के उद्देश्य से मूल न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति तथा सामाजिक उपभोग हेतु प्रावधान ।

पहले समूह में एकीकृत ग्रामीण विकास योजना, ट्रेनिंग फार सेल्फ एम्प्लायमेन्ट (ट्राइसेम), डेवलपमेन्ट ऑफ वीमेन एण्ड चिन्ड्रेन इन रूरल एरियाज (डी.डब्लू.सी.आर.ए.), नेशनल रूरल एम्प्लायमेन्ट प्रोग्राम (एन.आर.ई.पी.) तथा रूरल लैंडलैस गारण्टी एम्प्लायमेन्ट प्रोग्राम (आर.एल.जी.ई.पी.), दूसरे में ड्राउट प्रोन एरिया डेवलपमेन्ट तथा डैजर्ट डेवलपमेन्ट प्रोग्राम तथा तीसरे समूह में न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम सम्मिलित किए गये ।

न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के अन्तर्गत- (१) प्राथमिक शिक्षा, (२) प्राथमिक स्वास्थ्य, (३) ग्रामीण पेयजल सम्पूर्ति, (४) ग्रामीण सड़कें, (५) ग्रामीण विद्युतीकरण, (६) शहरी मलिन बस्तियों का पर्यावरणीय सुधार तथा, (७) पोषण शामिल किए गये ।

काफी समय के बाद सरकार को यह एहसास हुआ कि लघु तथा सीमान्त कृषकों के अलावा भी ऐसे निर्धन लोग हैं जिन्हें सहायता की आवश्यकता है और प्रभावशील व्यक्ति उनके हिस्से के हितलाभों को न हड़पने देने के लिए सरकारी संरक्षण भी आवश्यक है ।

इस पृष्ठभूमि में एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम को एक छतरी कार्यक्रम (अम्ब्रेला प्रोग्राम) के रूप में सोचा गया और ट्राइसेम, एन.आर.ई.पी. आर.एल.ई.जी.पी. आदि सम्पूरक कार्यक्रम चलाए गये ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में और अधिक सवेतन रोजगार के अवसर सृजित हो सके ।

यह कहना गलत नहीं होगा कि छठीं योजना में हो गरीबी उन्मूलन के प्रति सुनियोजित दृष्टिकोण अपनाया गया । सातवीं पंचवर्षीय योजना में गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों में छूटी हुई कड़ी भूमि सुधारों को सम्मिलित किया गया । सातवीं योजना के दस्तावेज में इस बात को बलपूर्वक कहा गया कि आधुनिकीकरण हेतु, निर्धनता उन्मूलन की रणनीति तथा बढ़ी हुई कृषि उत्पादकता हेतु भूमि सुधार महत्वपूर्ण तत्व हैं ।

भूमि के पुनर्वितरण द्वारा बहुत बड़ी संख्या में ग्रामीण निर्धनों को ऐसी स्थायी उत्पादक सम्पत्ति का आधार मिल सकेगा जिसमें वे भूमि आधारित तथा अन्य सम्पूरक कार्य कर सकेंगे । यह भी मान लिया गया कि निर्धन वर्ग के लोगों की आर्थिक बेहतरी संरचनात्मक परिवर्तनों के साथ सामाजिक कायापलट, शैक्षिक विकास, जागरूकता में वृद्धि तथा उनके दृष्टिकोण तथा उत्प्रेरण में परिवर्तन के बिना नहीं हो सकता ।

सामाजिक ढांचा भी ऐसा होना चाहिए जिसमें ऐसे अवसर उपलब्ध हों जिसमें समाज के निर्धन वर्गों को पहल करने और अपने पैरों पर खड़े होने में सहायता मिल सके । आठवीं पंचवर्षीय योजना में गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों में कोई परिवर्तन नहीं किया गया । केवल इतना ही प्रावधान किया गया कि आई.आर.डी.पी. में ऐसे लाभान्वितों को जो गरीबी की रेखा पार नहीं कर पाये हैं, को अनुदान तथा ऋण की दूसरी खुराक (डोज) दी जाए ।

नवीं पंचवर्षीय योजना (1967-2002) के चार महत्वपूर्ण आयामों के अतिरिक्त एक मुख्य केन्द्र बिन्दु महत्वपूर्ण है- ‘सामाजिक विकास और समानता के साथ विकास’ । योजना में आशा की गई है कि ग्रामीण गरीबी दूर करने के लिए पर्याप्त उत्पादक रोजगार जुटाया जा सकेगा ताकि लोगों के जीवन-स्तर में सुधार हो । इस योजना में गरीबी उन्मूलन की योजनाओं को पुनर्गठित किया गया ।

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15 August Essay: स्वतंत्रता दिवस पर सबसे अच्छा निबंध, ऐसे लिखा तो कोई नहीं रोक पाएगा पहला नंबर

Independence day essay in hindi: स्वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्त पर अक्सर स्कूल और कॉलेज में निबंध प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। यहां पर हम आपके लिए एक निबंध लेकर आए हैं, जिससे आप अच्छा हिंदी निबंध लिखने की विधा सीखते हुए प्रतियोगिताओं को जीत सकते हैं।.

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15 अगस्त पर निबंध

15 अगस्त पर निबंध

प्रस्तावना : 15 अगस्त 1947 का दिन भारतीय के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा हुआ है। इस दिन भारत ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता हासिल की और पहली बार दुनिया ने भारत को एक देश में मान्यता दी। स्वतंत्रता दिवस केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं है, बल्कि यह हमें हमारे स्वतंत्रता सेनानियों की बलिदान की भी याद दिलाने वाला दिन है और यह हमें देश की एकता और अखंडता की दिशा में प्रयास करके एकजुट रहने की प्रेरणा भी देता है। संग्राम से आजादी तक: स्वतंत्रता संघर्ष का संक्षिप्त विवरण स्वतंत्रता हासिल करने की यात्रा में अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान की परवाह किए बिना संघर्ष किया। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और रानी लक्ष्मीबाई जैसे नेताओं ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ बिना रुके अनवरत प्रयास करते हुए लड़ाई लड़ी। गांधी जी ने अहिंसा और सत्याग्रह के मार्ग को अपनाकर स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी, जबकि सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी ज्यादा आक्रामक और प्रतिरोध के दृष्टिकोण के साथ सामने आए।

15 अगस्त का महत्व

15 अगस्त का महत्व

15 अगस्त के दिन की महत्ता भारत सरकार और नागरिकों दोनों के लिए ही है। इस दिन की सुबह भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, और अन्य उच्च अधिकारी दिल्ली के लाल किले पर ध्वजारोहण करते हैं।

यह परंपरा 1947 से चल रही है, जब देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता की घोषणा की थी। यह ध्वजारोहण समारोह एक प्रमुख राष्ट्रीय उत्सव है जिसमें देश की सशस्त्र बलों, स्कूलों, और कई संगठनों की ओर से सांस्कृतिक कार्यक्रम और परेड का आयोजन होता है।

स्वतंत्रता दिवस पर देशभर में होने वाले कार्यक्रम: स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर स्कूल, कॉलेज, और अन्य संस्थानों में विशेष कार्यक्रम आयोजित होते हैं। इन कार्यक्रमों में देशभक्ति गीत, नृत्य, निबंध प्रतियोगिता, नाटक और भाषण जैसी गतिविधियां होते हैं, जो विद्यार्थियों और आम नागरिकों को देश के प्रति उनकी जिम्मेदारियों का अहसास कराते हैं। मीडिया पर विशेष डॉक्यूमेंट्री, फिल्में और टॉक शो प्रसारित किए जाते हैं जो देश की स्वतंत्रता संग्राम की गाथाओं को दोबारा जीवंत करते हैं।

आज का भारत

आज के भारत में स्वतंत्रता दिवस केवल एक ऐतिहासिक दिन नहीं, बल्कि यह एक अवसर है जब हम अपने देश की प्रगति और चुनौतियों की समीक्षा करने का अवसर मिलता है। यह हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता का सही मतलब सिर्फ राजनीतिक आजादी नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक न्याय भी इसमें शामिल है।

15 अगस्त के दिन हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि स्वतंत्रता का सही उपयोग कर हम एक समृद्ध और समान समाज की दिशा में काम करें।

निष्कर्ष / उपसंहार: 15 अगस्त भारतीय स्वतंत्रता का प्रतीक है और यह हमें हर साल एक नई प्रेरणा देकर जाता है। साथ ही यह दिन हमें हमारे स्वतंत्रता सेनानियों और संघर्ष की याद दिलाता है ताकि हम आजाद होने के महत्व को याद रखें।

साथ ही यह दिन देश की प्रगति के लिए हमारी जिम्मेदारियों को समझाता है। स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने देश को और ज्यादा मजबूत, एकजुट और समृद्ध बनाएं। जय हिंद!

प्रभाष रावत

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