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Farm Bills 2020: आखिर क्या है मोदी सरकार के कृषि बिल में खास, किसान क्यों कर रहे हैं इसका विरोध?

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Farm Bills 2020: क्यों किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और मंडी खत्म होने की आशंका है. क्या सरकार इसका समाधान नहीं ...अधिक पढ़ें

  • Last Updated : September 20, 2020, 09:35 IST
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नई दिल्ली.  मोदी सरकार (Modi Government) ने कृषि संबंधी विधेयक (Farm Bills 2020) लोकसभा में पास करवा लिए हैं और आज यानी रविवार को इसे राज्यसभा में पेश किया जाएगा. किसान नेताओं में सरकार के इस बिल के खिलाफ काफी गुस्सा है. उनका कहना है कि ये बिल उन अन्नदाताओं की परेशानी बढ़ाएंगे, जिन्होंने अर्थव्यवस्था को संभाले रखा है. कांट्रैक्ट फार्मिंग (Contract Farming) में कोई भी विवाद होने पर उसका फैसला सुलह बोर्ड में होगा, जिसका सबसे पावरफुल अधिकारी एसडीएम को बनाया गया है. इसकी अपील सिर्फ डीएम यानी कलेक्टर के यहां होगी. इस मुद्दे को लेकर पंजाब में किसान ट्रैक्टर आंदोलन कर चुके हैं और व्यापारी चार राज्यों में मंडियों की हड़ताल करवा चुके हैं. कुल मिलाकर इसके खिलाफ किसान और व्यापारी दोनों एकजुट हो गए हैं. हालांकि, केंद्र सरकार इसे कृषि सुधार (Agri reform)  की दिशा में मास्टर स्ट्रोक बता रही है. ये भी पढ़ें- कृषि विधेयक आज राज्यसभा से पास करा पाएगी सरकार? समझें उच्च सदन का अंकगणित मोदी मंत्रिमंडल ने 3 जून को दो नए अध्यादेशों पर मुहर लगाई थी और EC Act में संशोधन की मंजूरी दी थी. जिनकों को अब संसद से मंजूरी मिल चुकी है. अब ये कानून बन गए है. आइए जानते हैं कि आखिर वो कौन से पहलू हैं, जिन्हें लेकर किसानों और व्यापारियों दोनों की चिंता बढ़ गई है. इन कानूनों को लेकर किस बात का डर है, जिसे सरकार अर्थव्यवस्था नायकों के दिमाग से निकाल नहीं पा रही है. या फिर किसानों-व्यापारियों का अपने भविष्य को लेकर आकलन ठीक है? दोनों पक्षों का क्या कहना है.

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कृषि कानून की वजह से क्या खत्म हो जाएंगी मंडियां?

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किसानों को सता रहा है एमएसपी खत्म होने का डर

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किसानों की इनकम होगी डबल या हो जाएंगे बर्बाद? कृषि बिलों पर हर पक्ष की पूरी बात समझ‍िए

Agriculture bills 2020 explained: कृषि क्षेत्र से जुड़े तीनों प्रमुख बिलों- कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020, मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा विधेयक 2020 पर घमासान मचा हुआ है।.

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कौन से हैं वो तीन विधेयक जिन पर विवाद?

कौन से हैं वो तीन विधेयक जिन पर विवाद?

  • कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020
  • मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता
  • कृषि सेवा विधेयक 2020

ये विधेयक कोरोना काल में लाए गए कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश 2020 और मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश 2020 की जगह लेंगे।

सरकार के मुताबिक इन बिलों से किसानों को क्या फायदा है?

सरकार के मुताबिक इन बिलों से किसानों को क्या फायदा है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार, विधेयकों से किसानों को लाभ होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने गुरुवार को ट्वीट कर कहा, "ये विधेयक सही मायने में किसानों को बिचौलियों और तमाम अवरोधों से मुक्त करेंगे।" उन्होंने कहा, "इस कृषि सुधार से किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए नए-नए अवसर मिलेंगे, जिससे उनका मुनाफा बढ़ेगा। इससे हमारे कृषि क्षेत्र को जहां आधुनिक टेक्नोलॉजी का लाभ मिलेगा, वहीं अन्नदाता सशक्त होंगे।" मोदी ने बिलों के विरोध को लेकर कहा कि किसानों को भ्रमित करने में बहुत सारी शक्तियां लगी हुई हैं। प्रधानमंत्री ने एक ट्वीट में साफ किया कि एमएसपी और सरकारी खरीद की व्‍यवस्‍था बनी रहेगी।

  • अब किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा। वह मंडियों और बिचौलियों के जाल से निकल अपनी उपज को खेत पर ही कंपनियों, व्यापारियों आदि को बेच सकेगा।
  • उसे इसके लिए मंडी की तरह कोई टैक्स नहीं देना पड़ेगा। मंडी में इस वक्त किसानों से साढ़े आठ फीसद तक मंडी शुल्क वसूला जाता है।
  • समान स्तर पर एमएनसी, बड़े व्यापारी आदि से करार कर सकेगा।
  • किसानों को उपज की बिक्री के बाद कोर्टकचहरी के चक्कर नहीं लगाना पड़ेंगे। उपज खरीदने वाले को 3 दिन के अंदर पेमंट करना होगा।
  • तय समयावधि में विवाद का निपटारा एवं किसान को भुगतान सुनिश्चित होगा। विवाद होने पर इलाके का एसडीएम फैसला कर देगा।
  • कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक एक इको-सिस्टम बनाएगा।
  • किसानों को अपनी पसंद के अनुसार उपज की बिक्री-खरीद की स्वतंत्रता होगी।
  • किसानों के पास फसल बेचने के लिए वैकल्पिक चैनल उपलब्ध होगा जिससे उनको उपज का लाभकारी मूल्य मिल पाएगा।

क्या सरकारी खरीद और MSP की व्यवस्था खत्म हो जाएगी?

क्या सरकारी खरीद और MSP की व्यवस्था खत्म हो जाएगी?

न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य यानी MSP किसी फसल का वह दाम होता है जो सरकार बुवाई के वक्‍त तय करती है। इससे किसानों को फसल की कीमत में अचानक गिरावट के प्रति सुरक्षा मिलती है। अगर बाजार में फसल के दाम कम होते हैं तो सरकारी एजेंसियां एमएसपी पर किसानों से फसल खरीद लेती हैं।

सरकार: केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने लोकसभा में कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को बरकरार रखा जाएगा। उन्‍होंने कहा कि इन विधेयकों से फसलों के एमएसपी पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। किसानों से एमएसपी पर फसलों की खरीद जारी रहेगी। सरकारी खरीद की व्‍यवस्‍था खत्‍म नहीं की जा रही है, बल्कि किसानों को और विकल्‍प दिए गए हैं जहां वे अपनी फसल बेच सकते हैं। मंडी में जाकर लाइसेंसी व्यापारियों को ही अपनी उपज बेचने की मजबूरी खत्‍म हो गई है।

विरोधी: कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी समेत विपक्षी सदस्यों ने कहा कि राज्यों में किसानों का मंडी बाजार इससे खत्म हो जाएगा। अधीर ने कहा कि कृषि राज्य का विषय है। इस मसले पर कानून बनाने का अधिकार राज्यों को है। केंद्र का यह कदम संघीय व्यवस्था के खिलाफ है।

शिरोमणि अकाली दल के सांसद सुखबीर सिंह बादल ने लोकसभा में कहा कि इन विधेयकों से पंजाब के हमारे 20 लाख किसान प्रभावित होने जा रहे हैं। 30 हजार आढ़तिए, तीन लाख मंडी मजदूर, 20 लाख खेतिहर मजदूर इससे प्रभावित होने जा रहे हैं।

पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार ने भी विधेयकों की आलोचना की। तृणमूल कांग्रेस के नेता सौगत राय ने भी इन विधेयकों का विरोध किया है।

बादल ने 'जियो' के बहाने समझाया क्‍या है नुकसान

क्या इन तीन बिलों से मंडियां खत्म हो जाएंगी.

क्या इन तीन बिलों से मंडियां खत्म हो जाएंगी?

सरकार: केंद्र के मुताबिक, बिल पास होने के बाद किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा। केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर के मुताबिक किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य दिलाएगा। सरकार ने साफ किया है कि मंडी के साथ सरकारी खरीद की व्‍यवस्‍था बनी रहेगी। इस बिल से मंडियां भी प्रतिस्पर्धी होंगी और किसानों को उपज का बेहतर मूल्य मिलेगा। राज्यों के अधिनियम के अंतर्गत संचालित मंडियां भी राज्य सरकारों के अनुसार चलती रहेगी। राज्य के लिए एग्रीकल्‍चरल प्रोड्यूस मार्केट कमिटी (एपीएमसी) ऐक्ट है, यह विधेयक उसे बिल्कुल भी छेड़ता नहीं है।

विरोधी: पंजाब की पार्टियां लगातार विरोध कर रही हैं। SAD के सुखबीर सिंह बादल के अनुसार, पंजाब में पूरी दुनिया में सबसे अच्छी मंडी व्यवस्था है, इस विधेयक के पारित होने के बाद चरमरा जाएगी। कांग्रेस ने भी लोकसभा में बिल के जरिए मंडी व्‍यवस्‍था खत्‍म हो जाएगी, ऐसा दावा किया। विरोधियों का कहना है कि कंपनियां धीरे-धीरे मंडियों पर हावी हो जाएंगी और फिर मंडी सिस्टम खत्म हो जाएगा। इससे किसान कंपनियों के सीधे पंजे में आ जाएंगे और उनका शोषण होगा।

केंद्रीय मंत्री से समझिए बारीकियां

अकाली दल की दो टूक- किसानों के साथ धोखा, हम नहीं देंगे साथ, मंडियों के बाहर भी किसान कंपनियों को उपज बेच सकेंगे तो नुकसान क्या है.

मंडियों के बाहर भी किसान कंपनियों को उपज बेच सकेंगे तो नुकसान क्या है?

बिल का विरोध कर रहे किसानों को डर है कि नए कानून के बाद एमएसपी पर खरीद नहीं होगी। विधेयक में इस बारे में कुछ नहीं कहा गया है कि मंडी के बाहर जो खरीद होगी वह एमएसपी से नीचे के भाव पर नहीं होगी। चूंकि बाहर बेचने पर कोई टैक्‍स नहीं देना होगा, ऐसे में किसानों को फायदा मिल सकता है। हालांकि अगर बाहर दाम कम मिलते हैं तो किसान मंडी आकर फसल बेच सकते हैं जहां उन्‍हें एमएसपी मिलेगा। कई मंडियों में साढ़े आठ फीसदी तक टैक्स है। यह किसान से ही वसूला जाता है। यह बिल किसानों को अपने खेत से व्यापार की सुविधा देता है। मंडी के बाहर होने वाले इस व्यापार पर किसान को कोई टैक्स नहीं देना होगा।

SAD की तरफ से बादल ने क‍िया व‍िरोध

क्या मंडियों से मिलने वाला टैक्स है सरकारों के विरोध का कारण.

क्या मंडियों से मिलने वाला टैक्स है सरकारों के विरोध का कारण?

एमपीएमसी मंडियों का इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर पंजाब, हरियाणा जैसे राज्‍यों में खासा बेहतर है। यहां एमएसपी पर गेहूं और धान की ज्यादा खरीद होती है। पंजाब में मंडियों और खरीद केंद्रों की संख्या करीब 1,840 है, ऐसी मंडी व्यवस्था दूसरी जगह नहीं है। हालांकि, एपीएमसी मंडियों में कृषि उत्पादों की खरीद पर विभिन्न राज्यों में अलग-अलग मंडी शुल्क व अन्य उपकर हैं। पंजाब में यह टैक्‍स करीब 4.5 फीसदी है। आढ़तियों और मंडी के कारोबारियों को डर है कि जब मंडी के बाहर बिना शुल्क का कारोबार होगा तो कोई मंडी आना नहीं चाहेगा। राजनीतिक दलों के विरोध की एक वजह ये भी हो सकती है कि उनके राजस्‍व के एक स्‍त्रोत पर असर पड़ सकता है। पंजाब और हरियाणा में बासमती निर्यातकों और कॉटन स्पिनिंग और जिनिंग मिल एसोसिएशनों ने तो मंडी शुल्क समाप्त करने की मांग की है।

किसान संगठन कर रहे हैं जोरदार विरोध

किसान संगठन कर रहे हैं जोरदार विरोध

कृषि संबंधी तीन विधेयकों से नाराज किसानों ने बीतें दिनों देश के अलग-अलग हिस्‍सों में प्रदर्शन किए हैं। पंजाब और हरियाणा में कई जगह हाइवे जाम कर दिए गए। दोनों राज्यों के किसानों ने विधेयक के खिलाफ नई दिल्ली के जंतर मंतर पर भी धरना दिया। भारतीय किसान यूनियन (लाखोवाल) के महासचिव हरिंदर सिंह लाखोवाल ने कहा, "जो सांसद संसद में कृषि विधेयकों का समर्थन करेंगे, उन्हें गांवों में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा।"

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कृषि बिल 2020 क्या है? Krishi Bill 2020 in Hindi?

इस लेख में जानिये कृषि बिल 2020 (Krishi Bill 2020) क्या है तथा कृषि अध्यादेश 2020 के फायदे और नुकसान क्या-क्या हैं?

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कृषि बिल 2020 को लाने की जरूरत क्यों पडी ?

जिस देश की नींव कृषि पर आधारित हो, जहाँ की संस्कृति किसान को अन्नदाता की उपमा से अलंकृत करती हो, जहाँ जय जवान जय किसान का नारा लगता हो वहां पर आत्महत्या के मामले में किसान प्रथम स्थान पर आता है यह एक विडम्बना ही हो सकती है।

कृषि बिल 2020 तीन कृषि कानूनों की एक श्रृंखला है, जिसे वर्तमान सरकार अध्यादेश लाकर सदन में ध्वनिमत के माध्यम से पारित करवाया क्योंकि भारतीय संविधान के अनुसार आपदा-विपदा के समय जब सत्र सुचारू रूप से न चल रहे हों तो माननीय राष्ट्रपति के पास यह अधिकार होता है की वह किसी भी अध्यादेश को स्व-पारित कर सकें। 

पुराना कृषि कानून Old Krishi Bill

पुराने कृषि कानून के तहत कोई भी किसान निचे दिए गए तीन तरीकों से अपनी फसल बेचता था।

Local Market: जो किसान ज्यादा मात्रा में अनाज उगाए तथा उसे बेचना चाहे तो उसके लिए APMC मंडी की स्थापना कर दी गयी। जिसमें सरकार किसानों को अनाज के संग्रह, रखरखाव, सुरक्षा तथा जगह इत्यादि मुहैया करवाती है। APMC मंडी राज्य सरकार के अंतर्गत आती है और किसानों को अपने ट्रांसपोर्ट का खर्च उठाकर सिर्फ मंडी तक जाना होता है और बाकी कार्य निशुल्क होता है।

MSP: जब APMC मंडी में ठगी, मुनाफ़ाखोरी बढ़ने लगी तो सरकार द्वारा एक नया कानून लाया गया जिसे MSP कहते हैं इसमें फसलों का दाम निश्चित कर दिया जाता है और सभी किसान उस निश्चित दाम पर अपनी फसल दूसरों को बेचते है और अनाज न बिकने या कम दाम पर बिकने पर सरकार उसी MSP rate पर अनाज खुद खरीद लेती है।

पुराने कृषि कानून के नुकसान Disadvantages of Old Krishi Bill

अत्यंत छोटे कृषकों को छोड़कर जिनके पास ज्यादा अनाज होते थे वे APMC मंडी नियम के कारण दुसरे नगरों, शहरों या जिलों में अपनी फसल नहीं बेच सकता था क्योंकि ऐसा नियम था की हर जिले का अपना APMC मंडी होगा और किसान उसी मंडी में अपनी फसल बेचेंगे दूसरी जगह नहीं बेच सकेंगे।

वर्तमान समय में सरकार गेहूं को 19.25 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव पर खरीदती है और जिसे मज़बूरी वश 2 रुपये प्रति किलोग्राम पर बेचना पड़ता है। भारत के पास अच्छे अनाज संग्रह सिस्टम की कमी है जिसके कारण हर साल बड़ी मात्रा में अनाज सड़ जाता है। एक रिपोर्ट के अनुसार गत वर्ष 90 हज़ार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।

कृषि बिल 2020 और उसके फायदे व संभावित नुकसान What is Krishi Bill 2020 and Its advantages and Potential loss?

अब इतने सारे आर्थिक सरदर्दों से बचने के लिए सरकार ने कोरोना काल को सही अवसर के रूप में चुना, जिसमें विपक्ष ज्यादा भीड़ इकठ्ठा नहीं कर सकता था तो इसी का फायदा उठाकर तमाम विरोधों के बावजूद निम्न तीन कृषि विधेयकों को पारित किया गया। 

1. कृषक उपज व्‍यापार और वाणिज्‍य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020

इस कृषि बिल 2020 के तहत किसान अब एपीएमसी मंडी के बाहर जाकर किसी भी राज्य के किसी भी जिले के किसी भी व्यापारी को अपना अनाज सीधे बेच सकेगा। पहले की तरह राज्य सरकार से केंद्र सरकार द्वारा थोक में अनाज खरीदने पर राज्य सरकार टैक्स नहीं ले सकेगी। 

पंजाब जैसे राज्य में अनाज के इतने अधिक उत्पादन को राज्य सरकार अकेले बेचने में सक्षम नहीं है इसलिए केंद्र सरकार को अपने अनाज को बेच देती है और कुल अनाज पर 8.5% टैक्स लेती है जिसमें 2.5% APMC मंडियों को दिया जाता है और 6% राज्य सरकार खुद रख लेती है।

एक रिपोर्ट के अनुसार गत वर्ष पंजाब को 3600 करोड़ रुपये टैक्स में मिले थे। कुछ इस प्रकार मिले पैसे ही चुनाव के समय उपयोग किये जाते हैं और ऐसे पैसों का गलत जगह उपयोग होने की संभावना ज्यादा रहती है।

आपने देखा होगा की पंजाब और हरियाणा में विरोध प्रदर्शन इतना ज्यादा हो रहा है क्योंकि अकेला पंजाब और हरियाणा इतनी बड़ी मात्रा में अनाज उत्पादन करते हैं जितना पुरे भारत में कोई राज्य नहीं करता। इसलिए इस कानून से बिचौलियों और मुनाफ़ाखोरों को ज़ोर का धक्का लगा।

2. कृषक (सशक्‍तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्‍वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020

इस एग्रीमेंट में फसल का रेट पहले से निश्चित होगा ताकि कंपनी किसान पर कोई दबाव न बना सके। किसान ज्यादातर अनपढ़ होते हैं और वे मार्केट का अंदाजा नहीं लगा पाते की कब डिमांड कम होने वाली है या कब डिमांड बढ़ने वाली है और इसी बात का फायदा बिचौलिए उठाते हैं।

लेकिन इस कानून के तहत किसान किसी भी कंपनी के साथ कानूनी करार कर अपने आपको सुरक्षित रख सकेगा।

3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020

उस वक़्त यह कानून लाया गया की कुछ जरुरी वस्तुओं को सरकार अपने अंतर्गत रखेगी और उन चीज़ों को कोई भी जमा नहीं कर सकेगा और अगर कोई संग्रहखोरी करता पकड़ा गया तो उसका लाइसेंस रद्द होगा तथा एक लाख तक का जुर्माना लगेगा। 

नए आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक में कुछ बदलाव किये गए हैं की अब वस्तुएँ संग्रह की जा सकेंगी लेकिन आपातकालिक समय जैसे महँगाई बढ़ने पर युद्ध, प्राकृतिक आपदाएँ आने पर इन चीज़ों का संग्रह नहीं किया जा सकेगा।

कृषि बिल 2020 पर विपक्ष का शक या संभावित नुकसान Potential loss of Krishi Bill 2O2O by Oposition party

विपक्ष किसान को आगे कर यह सवाल कर रहा है की APMC मंडी बंद होने के बाद प्राइवेट कंपनियां मनमानी न करें इसलिए इन नए नियमों में MSP को भी शामिल किया जाए। सभी अर्थशास्त्रियों ने एक मत में कहा की अगर केंद्र सरकार ने यह किया तो किसान फिर से उसी स्थिति में हो जाएगा जहां पहले था और केंद्र के सारे प्रयास निरर्थक हो जायेंगे।

एक मुद्दा काफी शोरों में है की आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक से बड़े-बड़े व्यापारी अनाज को संग्रहित करना शुरू कर देंगे तथा कृत्रिम डिमांड को बढ़ाएँगे। यह मुद्दा भी एक चिंता का विषय है लेकिन एक बात विचारणीय योग्य है की इतने बड़े फैसले को केन्द्रीय मंत्रीमंडल आँख बंद कर नहीं कर सकता या वे इन मुश्किलों से अनभिज्ञ होंगे। 

उन्होंने कुछ योजनायें जरुर निर्मित की होंगी लेकिन विपक्ष हर चीज़ को सार्वजनिक करने की मांग करता है जो संभव नहीं होता क्योंकि योजनायें सार्वजनिक करने का अर्थ भ्रष्टाचारियों और बिचौलियों को सतर्क हो जाने के लिए इशारा करना होता है।

निष्कर्ष Conclusion

इस लेख में आपने कृषि बिल 2020 (Agricultural bill 2020) के बारे में विस्तार से पढ़ा, जिसमें पुराने कृषि बिल की रूप रेखा व उसके नुकसान तथा कृषि संशोधन विधेयक 2020 के नए कानून उसके लाभ तथा उसके संभावित हानियों के बारे में विस्तार से बताया गया है। आप इस कानून के बारे में क्या सोचते हैं? क्या यह किसानों के लिए लाभदायक होगा? कमेंट करके बताएं और अगर यह लेख आपको पसंद आया हो तो इसे शेयर जरुर करें।

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किसान बिल (Agriculture Bill) के फायदे और नुकसान- निबंध

भारत में 2020 में नया किसान बिल लाया गया है | जिसमें 3 नए कानून बनाये गए हैं |आइए जानते हैं कृषि कानून या किसान बिल के फायदे और नुकसान के बारे में |किसान बिल पर निबंध के द्वारा हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि कृषि बिल क्या है और किसान एग्रीकल्चर बिल के खिलाफ क्यों हैं? किसान विरोध क्यों कर रहे हैं? This essay on kisan bill is important from examination’s point of view. फार्म बिल के विरोध में हरियाणा और पंजाब के किसानों ने 26 जनवरी 2021 को दिल्ली के लाल किले पर जबरदस्त प्रदर्शन किया|

किसान बिल 2020

  • कृषक उपज व्यापर व वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा बिल)- मुक्त व्यापार
  • कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण ) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा- न्यूनतम समर्थन मूल्य
  • आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) बिल

किसान बिल के फायदे

  • भारत सरकार का कहना है कि यह भारतीय कृषि क्षेत्र के लिए एक ऐतिहासिक समझौता है |
  • नए कृषि कानून के अंतर्गत किसान मुक्त व्यापार कर सकते हैं |अर्थात, अब भारत के किसान अपनी उपज १९६५ में स्थापित की गयी APMC में बेचने के लिए बाध्य नहीं हैं|

APMC क्या है?

3. भारत की सरकार का ऐसा मानना है कि प्रतिस्पर्धा बढ़ने से किसानों को फसलों की ऊंची कीमत मिलेगी और इससे किसानों का मनोबल और रहन-सहन दोनों सुधरेंगे| एपीएमसी में अपनी पैदावार बेचने के लिए या खरीदने के लिए टैक्स देना पड़ता है पर मुक्त बाजार में बेचने के लिए कोई टैक्स नहीं देना पड़ेगा|

4. जब किसान एपीएमसी में बेचने के लिए बाध्य नहीं होगा तो एपीएमसी में मनमानी कर रहे आढ़तियों का एकाधिकार समाप्त हो जाएगा|

5. एक देश एक बाज़ार पालिसी के अंतर्गत कृषि उत्पाद बाजार में सीधे बेचे जाएंगे |जिससे बिचौलियों का लेनदेन कम हो जाएगा और बिचौलियों का कमीशन कम हो जाने से वस्तुओं की कीमत भी कम हो जाएगी| इससे उपभोक्ताओं को भी फायदा होगा और किसानों को भी |पहले से अधिक दाम मिलेंगे जिससे उनका मुनाफा बढ़ेगा और किसानों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं पर रोक लगाई जा सकेगी|

6. जब किसान को अधिक मुनाफा होगा तो वह क्वालिटी(quality) पर ज्यादा ध्यान देगा| सरकार के मुताबिक फसलों के ऑनलाइन लेनदेन से किसानों को मदद होगी और कृषि का डिजिटाइजेशन भी संभव हो पायेगा|

7. भारतीय सरकार ने दाल, तिलहन, आलू, प्याज इत्यादि जैसे अन्य कई वस्तुओं को आवश्यक वस्तुओं की श्रेणी से बाहर कर दिया है अर्थात उनका संग्रहण किया जा सकता है| सरकार का कहना है कि इससे कृषि उत्पाद गोदामों में पड़े सड़ेंगे नहीं|

8. एपीएमसी में बिचौलियों के द्वारा गुट बंदी की जाती थी और गैर कानूनी रूप से माल की जमाखोरी की जाती थी ताकि कीमतें बढ़ाई जा सके |लेकिन मुक्त व्यापार से जमाखोरी पर रोक लगाई जा सकेगी |पूरे देश को एकजुट बनाने के लिए सरकार ने मुक्त व्यापार की घोषणा की है ताकिकिसान अपने राज्य में और किसी भी राज्य में बिना किसी रोक टोक के अपना उत्पाद बेच सके|

9. अनुबंध कृषि या कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से किसानों का जोखिम कम हो जाएगा और फसल पकने पर उन्हें खरीदार को ढूँढना नहीं पड़ेगा| इससे वे बिना किसी चिंता के अपनी खेती पर ध्यान दे सकते हैं|

नया कृषि कानून (2020) क्या है और किसान पर प्रभाव- निबंध

किसान बिल के नुकसान

किसान एग्रीकल्नचर बिल का विरोध क्यों कर रहे हैं-

  • सरकार के अनुसार यह एक एतिहासिक बिल है तो सरकार ने इसे बिनी किसी विचार-विमर्श करवाए इसे कोरोना लॉक डाउन में आपातकाल में राष्ट्रपति के द्वारा अध्यादेश के रूप में लागू क्यों करवाया?

2. टैक्स के रूप में एपीएमसी से होने वाली आय बंद हो जाएगी| पंजाब राज्य में एपीएमसी में 6 % टैक्स लिया जाता है| जिससे पंजाब की सरकार को 3000 करोड रुपए की आमदनी होती है जिसका इस्तेमाल गांव के विकास और सड़कें आदि बनाने के लिए किया जाता है|तो राज्य सरकार यह पैसा कहाँ से लाएगी?

3. बिना सरकारी हस्तक्षेप के प्राइवेट कंपनी के इस क्षेत्र में आ जाने से वे अपना प्रभुत्व स्थापित कर लेंगे | जिससे किसान उनकी शर्तें मानने के लिए मजबूर हो जायेंगे |

4. धीरे-धीरे एपीएमसी और सरकारी हस्तक्षेप दोनों खत्म हो जाएंगे जिसके कारण न्यूनतम समर्थन मूल्य के भी खत्म हो जाने की आशंका है, जो किसान के लिए बहुत बड़ा सहारा होता है |

5. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में यदि बाज़ार की कीमत तय की गई कीमत से कम हो जाती है तो प्राइवेट कंपनी वाले कुछ ना कुछ बहाने बनाकर किसानों से माल लेने को मना कर देते हैं |जिसके कारण किसान दुविधा में पड़ जाते हैं क्योंकि कम पढ़े लिखे होने के कारण वे कानूनी दांवपेच का भी उपयोग नहीं कर सकते और निजी कंपनियां अपने बड़े आकर और अधिक पूँजी, प्रभाव, और राजनीतिक पहुँच का फायदा ले जाती है|

6. किसी भी तरह का विवाद होने पर एसडीएम या डिप्टी कमिश्नर के पास ही जल्दी से निपटारा कर दिया जाएगा| लेकिन यह बातें कागजों पर आसान लगती है और असलियत में यह बहुत मुश्किल होती है, क्योंकि गरीब किसानों को कानून समझ में नहीं आते| 2014 में पेप्सी कंपनी ने गुजरात के कुछ आलू उगाने वाले किसानों पर एक करोड़ का केस कर दिया, यह कह कर कि उनका आलू घटिया क्वालिटी का था |

7. जिस तरह आढ़ती गुटबाजी (cartel) करके किसानों को कम कीमत पर अपना माल बेचने को मजबूर करते थे, वही काम निजी कंपनियां भी करेंगी और वे अपनी ताकत से कीमतों को प्रभावित कर सकती है|

8. भारत में 86% छोटे किसानों हैं, जिनके पास 2 हेक्टेयर से भी कम जमीन है| ऐसे किसान अपनी उपज को दूसरे राज्य में पहुंचाने का खर्चा उठाने में भी सक्षम नहीं है तो उन्हें इस मुक्त बाजार का भी कोई लाभ नहीं होगा और एपीएमसी बंद हो जाने से वे अपना माल वहां भी नहीं बेच पाएंगे जिससे उनके भूखे मरने की नौबत आ सकती है|

9. सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन करके बिल्कुल गलत किया है क्योंकि निजी व्यापारी किसानों से सस्ते दाम पर माल खरीद कर जमाखोरी करेंगे और फिर दाम बढ़ाकर मार्केट में बेचेंगे जिससे ब्लैक मार्केटिंग को बढ़ावा मिलेगा|

कृषि कानून के आने पर एक ओर तो सरकार इसे ऐतिहासिक फैसला बता कर खुश हो रही है कि वह इस कानून के द्वारा 2022 तक किसानों की आमदनी को दुगना कर देगी| वहीं दूसरी ओर पूरे देश के किसान खासतौर पर हरियाणा और पंजाब के किसान विरोध कर रहे हैं कि सरकार एमएसपी(MSP) को खत्म करने के लिए यह सब चाल चल रही है क्योंकि न्यूनतम समर्थन मूल्य की वजह से भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India- FCI) पर ढाई लाख करोड़ रूपए का बोझ है|

किसान बिल का समाधान

किसान बिल के फायदे और नुकासान पढ़ने के बाद ज़रुरत है कि इसके बीच का कोई रास्ता निकाला जाए| किसान चाहते हैं कि इसमें दो बातें और जोड़ दी जाए-

  • पहला, एपीएमसी में सुधार किया जाए ना कि उसे पूरी तरह से ख़त्म करें| राज्यों में और अधिक APMC बनायें|
  • दूसरा, एमएसपी को सख्ती से लागू किया जाए कि कोई भी चाहे वह सरकारी ट्रेडर हो या निजी ट्रेडर वे किसानों को एमएसपी से कम कीमत पर अपनी फसल बेचने को मजबूर ना करें तभी हम किसानों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं को रोक सकते हैं|

किसान बिल पर आप अपनी राय कमेंट में लिखकर बताइए

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नयी शिक्षा नीति निबंध (कमियाँ)| New Education Policy 2020

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किसान बिल (कृषि कानून) 2021 क्या है, महत्व निबंध किसान आंदोलन

किसान बिल (कृषि कानून ) 2021 क्या है, निबंध (तीन कृषि विधेयक क्या है, आर्थियास, किसान, राज्य के विरोध प्रदर्शन कारण, लाभ, नुकसान) किसान आंदोलन(Agriculture Farm amendment Bill in hindi, Trade, Traders, Markets Fees)

किसानों के हक के लिए लड़ने वाली हरसिमरत कौर बादल ने सितंबर 2020 की शाम मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने यह जानकारी अपने ट्विटर अकाउंट से दी। हरसिमरत कौर जोश शिरोमणि अकाली दल की एकमात्र केंद्रीय मंत्री है और फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री का पूरा पोर्टफोलियो इनके पास था। पंजाब भटिंडा लोकसभा से एमपी की सीट पर भी हरसिमरत कौर विराजमान है। किसानों के खिलाफ पास किए गए ऑर्डिनेंस के विरोध में इन्होंने रिजाइन करने का यह निर्णय लिया यह बात उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट की पोस्ट के जरिए बताइ। 18 सितंबर 2020 की सुबह प्रेसिडेंट रामनाथ कोविंद जी ने हरसिमरत कौर बादल का इस्तीफा स्वीकार कर लिया।

kisan bill kya hai in hindi

बिल इन बिल आउट विधान क्या है : जानिए वित्तीय समाधान एवं जमा बीमा विधेयक 2017 क्या है.

Table of Contents

किसान विरोध दिवस (काला दिवस)

पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा लोक सभा एवं राज्य सभा दोनों में कृषि किसान बिल को पेश करने के बाद यह राष्ट्रपति द्वारा भी पारित कर दिया गया. जिसके बाद यह कानून बन गया. किन्तु देश के विभिन्न राज्यों में किसान इस कानून के विरोध में हैं, और विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. हालही में कोरोना महामारी के चलते यह विरोध प्रदर्शन ठंडा पड़ गया था. किन्तु कोरोना केसेस कम होने के साथ यह विरोध प्रदर्शन फिर से शुरू हो गया है. एक बार फिर विपक्ष ने किसानों का साथ देना शुरू कर दिया हैं. 12 विपक्षी दलों के साथ मिलकर किसान संगठन ने 26 मई के दिन किसान विरोध दिवस मनाने का निश्चय कर लिया है. और अपने किसना भाइयों से दिनभर किसना कानून का विरोध करने का आह्वान किया है. अब देखना यह होगा कि इस कोरोना महामारी के बीच यह विरोध प्रदर्शन क्या रंग दिखाता है.   

किसान बिल (कृषि कानून) 2021

प्रधानमंत्री का बड़ा ऐलान (latest update) –.

प्रधानमंत्री मोदी जी ने एक बहुत ही अहम् फैसला लिया है कि अब वे किसान बिल यानि कि कृषि कानून को वापस ले रहे हैं. मोदी ने आज देश को संबोधित कर यह ऐलान किया है कि वे नवंबर 2021 के अंत में होने वाले संसद सत्र में इस कानून को रद्द करने की अधिकारिक प्रक्रिया को पूरा कर देंगे. हालही मोदी जी का कहना है कि ये कानून बहुत से छोटे किसानों के लिए फायदेमंद साबित होता है. इसके फायदे मोदी सरकार द्वारा कई बार समझाने की कोशिश की गई लेकिन कुछ किसानों द्वारा इस पर विरोध प्रदर्शन चलता ही रहा. इसलिए मोदी जी ने इसे रद्द करने का फैसला किया है.

आपको बता दने कि मोदी जी ने इसके अलावा एक और बड़ा ऐलान किया है. वह यह है कि एक कमिटी का गठन किया जायेगा. जिनका काम होगा जीरो बजट खेती यानि कि प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना, देश की आज के समय के अनुसार बदलती जरूरतों पर विशेष ध्यान देते हुए क्रॉप पैटर्न को वैज्ञानिक तरीके में परिवर्तित करना और एमएसपी को और अधिक प्रभावी व पारदर्शी बनाना आदि से जुड़े जो भी निर्णय लिए जायेंगे, और यह समिति द्वारा किया जायेगा. और इस समिति में शामिल होने वाले लोग सरकार, राज्य सरकार के प्रतिनिधि, कृषि वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री एवं किसान आदि से संबंधित होंगे.  

केन्द्रीय मंत्री हरसिमरत कौर से दिया इस्तीफ़ा –

मंत्री पद के पोर्टफोलियो को जो हरसिमरत कौर जी के पास था वह नरेंद्र सिंह तोमर को दे दिया गया है। हरसिमरत कौर बादल के पति सुखबीर सिंह बादल ने भी किसानों के लिए जारी किए गए बिल के विरोध में लोकसभा में बातें कहीं उन्होंने यह भी कहा कि जारी किए गए यह सभी बिल पंजाब की कृषि को बर्बाद करके रख सकते हैं।  हरसिमरत कौर ने किसानों को सहयोग देते हुए अपने 4 पन्नों के इस्तीफे में यह कहा कि हर अकाली एक किसान है और हर किसान एक अकाली।

तीन कृषि विधयेक कानून (किसान बिल) क्या है –

केंद्रीय सरकार द्वारा तीन अध्यादेश पास किए गए हैं जो कानून में बदल दिए गए, जिसके चलते हरसिमरत कौर ने इस्तीफा देने का निर्णय लिया। वे तीन अध्यादेश नीचे बताए गए हैं जिन्हें हाल ही में लोकसभा के मानसून सत्र के दौरान कानून में परिवर्तित कर दिया।

  • कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020
  • मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) अनुबंध विधेयक 2020
  • आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020

इन तीनों बिलों के पास होने के बाद किसानों को यह डर है कि उन्हें मिनिमम सपोर्ट प्राइस (MSP) की लिस्ट से बाहर निकाल दिया जाएगा जिसकी वजह से किसानों के बीच काम करने वाले दलालों (आढ़तिया) को कमीशन नहीं मिल पाएगी। पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के अनुसार लगभग 12 लाख परिवार ऐसे हैं. पंजाब में जो 28 हजार से ज्यादा रजिस्टर्ड आढ़तिया के रूप में काम करते हैं।

बैंकिंग रेगुलेशन बिल क्या है – यहाँ जानिए विस्तार से.

कृषि विधेयक किसान बिल का किस पर पड़ेगा असर –

ऊपर बताए गए नियम यदि एक्ट में बदल जाते हैं तो पंजाब के 12 लाख परिवारों को एमएसपी मिलना बंद हो जाएगी जिसकी वजह से पंजाब की इकोनामी पर बहुत गहरा असर पड़ेगा क्योंकि अधिकतर परिवार एमएसपी की वजह से ही अपने परिवार का लालन पोषण कर पाते हैं। ऊपर बताए गए अध्यादेश पास हो जाते हैं तो पंजाब में रहने वाले किसान, आढ़तिया और राज्य की सरकार तीनों को बहुत ज्यादा नुकसान होने वाला है। इन्हीं कारणों के चलते सरकार द्वारा जारी किए गए नियमों का विरोध पंजाब में लगातार किया जा रहा है।

कृषि विधेयक किसान बिल का विरोध कहाँ – कहाँ हो रहा है –

जब से भारत सरकार ने कृषि विधेयक किसान बिल को पास कर कानून बनाया है तब से इसके विरोध की खबर बहुत अधिक सुनाई दे रही है. आपको बता दें कि कृषि विधेयक का सबसे ज्यादा विरोध पंजाब एवं हरियाणा में हो रहा है. अब इससे यह सवाल उठता है कि इस विधेयक का विरोध देश के केवल इन्हीं राज्यों में सबसे ज्यादा विरोध क्यों हो रहा हैं जबकि बिहार एवं यूपी में इसका असर बहुत कम दिखाई दे रहा है. तो आपको बता दें कि ऐसा इसलिए क्योकि पंजाब एवं हरियाणा के किसानों की खुद एक पहचान हैं वहां पर उनकी जातीय पहचान सबसे ज्यादा मजबूत है. जबकि बिहार एवं यूपी में भले की 70% आबादी कृषि से जुडी हैं लेकिन किसानों को इस बिल के बारे में सही तरीके की जानकारी अभी तक नहीं है. इसके अलावा यहाँ पर पैक्स भी सक्रिय नहीं हैं.   

कृषि विधेयक किसान बिल का विरोध क्यों हो रहा है –

सभी बातों को जांच परख करने के बाद यह बात सामने आई है कि तीनों बिल में से सबसे पहले बिल (फार्मर्स प्रोड्यूसर ट्रेड एंड कमर्स (प्रमोशन एंड फेसिलेशन) ऑर्डिनेंस 2020) को लेकर किसान बहुत ज्यादा नाराज हैं जिसका वह लगातार विरोध कर रहे हैं। मुख्य रूप से किसान जिस बात को लेकर परेशान है वो है ट्रेड एरिया, ट्रेडर एवं मार्किट फीस.

पहले अध्यादेश के खिलाफ क्यों है किसान –

ट्रेड एरिया क्या है (trade area) –.

अभी तक ज्यादातर राज्यों में एपीएमसी के तहत मार्किट बनाये जाते है. एपीएमसी एक्ट राज्य सरकार लेकर आती है, मतलब राज्य सरकार अपने प्रदेश में एपीएमसी मंडी को बनाती है. अभी तक जो भी व्यापार होता है किसान और ट्रेडर्स के बीच में वो इन्हीं एपीएमसी मंडी में होता है.  आज के समय में ट्रेड एरिया ही एपीएमसी मंडी है. अब जो नया अध्यादेश आया है उसने ट्रेड एरिया की परिभाषा को बदल दिया है.

अब किसानों का कहना है कि एपीएमसी का अभी तक जो फॉर्मेट था बहुत अच्छा था, इसके चलते हर मंदी कम से कम 200 से 300 गाँव को देख रही थी. अब जो नया अध्यादेश आया है उसमें इन मंडियों को हटा दिया गया है, जिसके चलते आगे चलके बड़े-बड़े खरीददार को ही फायदा होगा.

अभी तक किसान अपने अनाज को एपीएमसी मंडी लेकर जाता था, फिर वहां कमीशन एजेंट उसको खरीद कर आगे उसे बेचता था. अब अगर एपीएमसी मंडी के सिस्टम को पूरी तरह हटा दिया जाता है तो जो कॉर्पोरेट है वो जगह-जगह अपनी छोटी-छोटी मंडी को बनायेगें, जिससे शुरुवात में तो किसानों को लाभ होगा, लेकिन आगे जाकर उन्हें नुकसान होगा. लेकिन इस बात पर सरकार बोल रही है कि वो किसानों को स्वतंत्रता दे रही है, कि वे अपनी मर्जी इच्छा अनुसार मंडी का चयन कर वहां अनाज बेच सकता है.

भूमि अधिग्रहण बिल क्या है – जानिए ये बिल क्या है, कैसे ये आम जनता को फायदा दे रहा है.

दुसरे अध्यादेश के खिलाफ क्यों है किसान –

ट्रेडर कौन है (trader) –.

दुसरे अध्यादेश में ट्रेडर की परिभाषा को बदल दिया गया है. अब इसमें प्रोसेसर, एक्सपोर्टर, व्होलसेलर, मिलर एवं रिटेलर को भी जोड़ दिया गया है. विरोध करने वाले किसानों का कहना है कि उन्हें अर्थियास पर भरोसा है, कमीशन एजेंट को राज्य सरकार द्वारा लाईसेंस मिलता है. सरकार उन पर भरोसा करती है तो हम भी उन पर भरोसा कर पाते है. लाईसेंस देने से पहले सरकार उन कमीशन एजेंट की पूरी जानकारी इकट्ठी कर, जांच पड़ताल के बाद ही लाईसेंस देती है. लेकिन अब जो नया रुल आया है उसके चलते कमीशन एजेंट के अलावा ये सभी लोग भी काम कर सकेगें, जिनके पास प्रॉपर लाईसेंस भी नहीं होगा. ऐसे में आगे चलकर इन किसानों को ऐसे फ्रॉड लोगों का सामना करना पड़ेगा. ये विरोध का दूसरा कारन है, जो बहुत बड़ा कारन उन सभी कमीशन एजेंट के लिए, जो इसके द्वारा कमाई करते है. क्यूंकि इस नए रूल से अर्थियास को भी काफी ज्यादा नुकसान झेलना पड़ेगा.

लोकपाल बिल क्या है – जानिए भारत के पहले लोकपाल कौन है.

तीसरे अध्यादेश के खिलाफ क्यों है किसान –

मार्किट फीस क्या है (market fee) –.

नए अध्यादेश में कई तरह से लगने वाली मार्किट फीस को पूरी तरह से हटा दिया है. विरोध कर्ता को ये नया रुल बिलकुल भी एक्सेप्ट नहीं है, इसका विरोध करते हुए उन्होंने कहा है कि मान लीजिये मंडी में कोई लेन देन हुआ है, जिसमें 1 क्विंटल गेहूं में 8.5 मार्किट फीस आप लगा लेते है, तो यह 164 रूपए होता है. तो इसका मतलब मंदी के बहार जो भी लेन देन होगा उसका बड़ा फायदा बड़े कॉर्पोरेट को होगा. यहाँ हमारी बात प्रूफ होती है कि नए रुल से किसान, कमीशन एजेंट एवं राज्य सरकार तीनों प्रभावित होगी.

मार्किट फीस का प्रावधान राज्य को नुकसान पहुंचाएगा, ट्रेड एरिया वाला प्रावधान किसानों को नुकसान देगा एवं ट्रेडर वाला प्रावधान आर्थियास को नुकसान पहुंचाएगा. यह एक बड़ी परेशानी है, जिसे सभी प्रदर्शनकर्ता बोल रहे है.

इस तरह इस अध्यादेश से देश के किसान सड़क पर उतर आये है, वे चाहते है कि सरकार इस बिल को वापस ले ले. कई राज्य केंद्र सरकार के साथ खड़े है, और कई उनके खिलाफ खड़े है.

2021-2022 रबी फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य लिस्ट –

आइए जानते हैं, कि रबी फसल 2020-2021 न्यूनतम समर्थन मूल्य लिस्ट क्या है और इसकी पूरी तालिका नीचे देखें।

फसल – गेहूँ

  • आरएमएस 2020-21 के लिए एमएसपी – 1925 प्रति क्विंटल
  • आरएमएस 2021-22 के लिए एमएसपी – 1975 प्रति क्विंटल
  • उत्पादन की लागत 2021-22 – 960 प्रति क्विंटल
  • एमएसपी में पूर्ण वृद्धि – 50 रुपये
  • लागत से अधिक (%) – 106
  • आरएमएस 2020-21 के लिए एमएसपी – 1525 प्रति क्विंटल
  • आरएमएस 2021-22 के लिए एमएसपी – 1600 प्रति क्विंटल
  • उत्पादन की लागत 2021-22 – 971प्रति क्विंटल
  • एमएसपी में पूर्ण वृद्धि – 75 रुपये
  • लागत से अधिक (%) – 65

फसल – चना दाल

  • आरएमएस 2020-21 के लिए एमएसपी – 4875 प्रति क्विंटल
  • आरएमएस 2021-22 के लिए एमएसपी – 5100 प्रति क्विंटल
  • उत्पादन की लागत 2021-22 – 2866 प्रति क्विंटल
  • एमएसपी में पूर्ण वृद्धि – 225 रुपये
  • लागत से अधिक (%) – 78

फसल – मसूर दाल

  • आरएमएस 2020-21 के लिए एमएसपी – 4800 प्रति क्विंटल
  • उत्पादन की लागत 2021-22 – 2864 प्रति क्विंटल
  • एमएसपी में पूर्ण वृद्धि – 300 रुपये

फसल – सरसों

  • आरएमएस 2020-21 के लिए एमएसपी – 4425 प्रति क्विंटल
  • आरएमएस 2021-22 के लिए एमएसपी – 4650 प्रति क्विंटल
  • उत्पादन की लागत 2021-22 – 2415 प्रति क्विंटल
  • लागत से अधिक (%) – 93

फसल – कुसुम खेती

  • आरएमएस 2020-21 के लिए एमएसपी – 5215 प्रति क्विंटल
  • आरएमएस 2021-22 के लिए एमएसपी – 5327 प्रति क्विंटल
  • उत्पादन की लागत 2021-22 – 3551 प्रति क्विंटल
  • एमएसपी में पूर्ण वृद्धि – 112 रुपये
  • लागत से अधिक (%) – 50

किसान दिल से जुड़ी अफवाह तथा सच्चाई –

न्यूनतम समर्थन मूल्य का क्या होगा .

झूठ : नए किसान बिल के अंतर्गत किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदान किए जाने का निर्णय लिया गया है। सच : जबकि किसान बिल का न्यूनतम समर्थन मूल्य से किसी भी प्रकार का ताल्लुक नहीं है और ना ही इसका कोई असर इस पर पड़ेगा। इतना ही नहीं एमएसपी दिया जा रहा है और भविष्य में किसान भाई बहनों को इसका लाभ निरंतर रूप से दिया जाता ही रहेगा।

मंडियों का क्या होगा ?

झूठ : इस बिल के आ जाने से अब मंडी में धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगी। सच : इस बिल के आ जाने से मंडी के सिस्टम पर किसी भी प्रकार का असर नहीं होगा और जैसे आज कार्य हो रहा है, ठीक वैसे ही भविष्य में भी कार्य मंडी के माध्यम से होते रहेंगे।

किसान विरोधी है बिल ?

झूठ : किसानों को हानि पहुंचाने के लिए ही और किसानों के खिलाफ ही किसान बिल का निर्माण किया गया है। सच : इस बिल के आ जाने से किसान भाई बहन अब डायरेक्ट फूड प्रोसेसिंग कंपनियों से अपनी फसलों की के व्यवसाय को कर सकेंगे और इस बिल के अंतर्गत ही किसान भारत के किसी भी कोने में बिना किसी के रोक-टोक या फिर भी नियम के किसान भाई बहन अपनी फसलों को बेच सकने के लिए स्वतंत्र होंगे।

बड़ी कंपनियां शोषण करेंगी ?

झूठ : किसानों को बड़ी-बड़ी कंपनियां लालच देकर एवं उन पर प्रतिबंध लगाकर अपने अनुसार शोषण करेंगी। सच : किसान किसी भी कंपनी के साथ फिक्स मूल्य पर व्यापार कर सकेगा और उसके खेतों के लिए उसको किसी भी प्रकार से बाध्य नहीं किया जाएगा। किसान कंपनी के द्वारा किए गए स्वतंत्रता पूर्ण तरीके से अपने कॉन्ट्रैक्ट को कभी भी तोड़ सकता है और इसके लिए उसे किसी भी प्रकार की पेनाल्टी भी नहीं देनी होगी।

छिन जाएगी किसानों की जमीन ?

झूठ : लोगों का मानना है, कि किसानों की जमीन पूजी पतियों के आधिपत्य में चली जाएगी। सच : नए किसान बिल में साफ-साफ तरीके से कहा गया है, कि किसानों की खरीद-फरोख्त, जमीन लीज पर रखना या गिरवी रखवा ने पर पूरे तरीके से बिल में किसी प्रकार की जगह नहीं है अर्थात यह प्रतिबंधित है। किसानों की जमीन हमेशा उनके लिए ही रहेगी और उनके हित पर किसी भी प्रकार की हानि नहीं होगी।

किसानों को नुकसान है ?

झूठ : किसान बिल के आ जाने से केवल बड़े बड़े कारपोरेट को फायदा होगा और इससे किसानों की फसलों एवं आर्थिक आय में नुकसान ही होगा। सच : आज हमारे देश के कई राज्यों में किसान भाई बहन बड़े-बड़े कारपोरेशन के साथ मिलजुल कर गन्ना, चाय और कॉफी जैसे फसलों का उन्नत उत्पादन कर रहे हैं। इस बिल के आ जाने से अब छोटे किसान भाई बहन भी पहले से ज्यादा मुनाफा कमा सकेंगे और उन्हें तकनीकी और एक पक्के मुनाफे के साथ कृषि कार्य से लाभ ही प्राप्त होगा।

राकेेश टिकेट कौन है जो कि किसान आंदोलन मेंंंंं किसानों के नेता कहेे जा रहे हैं।

होम पेज

Ans: सरकार ने ऐसा कानून बनाया है जिसमें अब व्यापारी और किसान अपने अनाज को बाहर की APMC मंडी से बाहर भी बेच सकेंगें. इसमें किसनों को मंडी के बाहर जहाँ पर भी व्यापारी अच्छी कीमत देंगें वहां बेच सकेंगें, मंडी में ही अनाज बेचने की उनकी बंदिश ख़त्म हो जाएगी.

Ans: किसानों को उनकी उपज की अच्छी कीमत नहीं मिलती थी, जिस समस्या के हल के लिए 1970 में एपीएमसी एक्ट बनाया गया था, जिसमें कृषि विपरण समिति बनी थी. ये समिति किसानों से एक अच्छी और निश्चित कीमत में अनाज खरीदती है.

Ans: किसानों और आर्थियास को लगता है कि मंडी में अनाज की खरीदी बंद होगी तो बाहर के व्यापारियों को अधिक लाभ मिलेगा. किसानों को शुरुवात में लाभ हो सकता है, लेकिन आगे चलकर व्यापारी अपनी मनमानी में अनाज की कीमत देंगें.

अन्य पढ़ें –

  • जैविक खेती पोर्टल
  • किसान ई-नाम पोर्टल रजिस्ट्रेशन
  • प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना
  • किसान विकास पत्र क्या है

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Kisanon ko. Samarthan mulya diya jaye, product ki bikri ka 2-5 per kisanon ko har mahine dividend k roop mein de sarkar.gujarat, rajasthan, haryana Milk cooperative bank banaker. Sare kissan ke fasalon ka IDBI, ICICI, SBI, cooperative banks dwara Bima karaya jaye.

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भारतीय कृषि: समस्याएँ और समाधान.

  • 28 Jan, 2023 | अमित सिंह

essay on agriculture bill 2020 in hindi

भारत की स्वतंत्रता को कई दशक बीत चुके हैं, हाल ही में हमने 74वाँ गणतंत्र दिवस मनाया है। 1947 से अब तक देश के हर क्षेत्र ने पर्याप्त विकास किया है। आज भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम विश्व के सफलतम अंतरिक्ष कार्यक्रमों में शामिल है, भारतीय सेना विश्व की सबसे ताकतवर सेनाओं में सम्मिलित है तथा भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की पाँच सबसे मजबूत अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। अन्य क्षेत्रों में भी भारत नियमित रूप से विकास की नई कहानियाँ लिख रहा है।

इन उपलब्धियों के बावजूद एक ऐसा क्षेत्र भी है जो आज भी विकास की दौड़ में कहीं पीछे रह गया है। खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण रोजगार जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला कृषि क्षेत्र आज भी उस स्थिति में नहीं पहुँच पाया है जिसे संतोषजनक माना जा सके। इसका परिणाम यह हुआ है कि कृषि पर निर्भर देश के करोड़ों लोग आज भी बेहद अभावों में जीवन जीने को विवश हैं और कई बार ये कृषि के माध्यम से अपनी बुनियादी जरूरतें भी नहीं पूरी कर पाते हैं।

भारतीय कृषि के अपर्याप्त विकास के मूल में कुछ ऐसी समस्याएँ हैं जिन्हें दूर किये बिना कृषि का विकास संभव नहीं है, ये समस्याएँ निम्नलिखित हैं..

1- भारत के ज्यादातर किसानों के पास कृषि में निवेश के लिये पूँजी का अभाव/ कमी है। आज भी देश के ज्यादातर किसानों को व्यावहारिक रूप में संस्थागत ऋण सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाता। कई बार किसानों के पास इतनी भी पूँजी नहीं होती कि वे बीज, खाद, सिंचाई जैसी बुनियादी चीजों का भी प्रबंध कर सकें। इसका परिणाम यह होता है कि किसान समय से फसलों का उत्पादन नहीं कर पाते अथवा अपर्याप्त पोषक तत्वों के कारण फसलें पर्याप्त गुणवत्ता की नहीं हो पाती हैं। इसके साथ ही पूंजी के अभाव में किसान को निजी व्यक्तियों से ऊँची ब्याज दर पर ऋण लेना पड़ता है जिससे उसकी समस्याएँ कम होने की जगह बढ़ जाती हैं। इस संबंध में भारत सरकार द्वारा शुरू की गई किसान सम्मान निधि योजना किसानों के लिये काफी मददगार साबित हो रही है। इससे किसानों की कृषि संबंधी बुनियादी जरूरतों की पूर्ति करने में काफी हद तक सहायता मिल जाती है।

2- भारत के अधिकांश हिस्सों में आज भी सिंचाई सुविधाओं की कमी है। निजी तौर पर सिंचाई सुविधाओं का प्रबंध वही किसान कर पाते हैं जिनके पास पर्याप्त पूँजी उपलब्ध है क्योंकि सिंचाई उपकरणों जैसे ट्यूबवेल स्थापित करने की लागत इतनी होती है कि गरीब किसानों के लिये उसे वहन कर पाना संभव नहीं है। इस प्रकार अधिकांश किसान मानसून पर निर्भर हो जाते हैं और समय पर वर्षा न होने पर उनकी फसलें खराब हो जाती हैं और कई बार निर्वाह लायक भी उत्पादन नहीं हो पाता। इसी तरह अधिक वर्षा होने पर या विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के कारण भी फसलें खराब हो जाती हैं और किसान गरीबी के दलदल में फंसता जाता है।

3- भारतीय किसानों की एक बड़ी आबादी के पास बहुत कम मात्रा में कृषि योग्य भूमि उपलब्ध है। इसका एक बड़ा कारण बढ़ती हुई जनसंख्या भी है। इसके परिणामस्वरूप कृषि किसानों के लिये लाभ कमाने का माध्यम न होकर महज निर्वाह करने का माध्यम बन गई है जिसमें वे किसी तरह अपना और अपने परिवार का निर्वाह कर पाते हैं। भारतीय कृषि क्षेत्र प्रछन्न बेरोजगारी की भी समस्या से जूझने वाला क्षेत्र है।

4- किसानों को अक्सर उनकी उपज की पर्याप्त कीमत नहीं मिलती है, इसका एक बड़ा कारण यह है कि वे अपनी फसलों को विभिन्न कारणों से जैसे ऋण चुकाने के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से कम कीमतों पर ही बेंच देते हैं। जिसके कारण उन्हें काफी हानि का सामना करना पड़ता है।

5- कुछ अन्य कारणों में कृषि में आधुनिक उपकरणों और तकनीकों का प्रयोग न कर पाना, परिवहन सुविधाओं की कमी, भंडारण सुविधाओं में कमी, परिवहन की सुविधाओं में कमी, अन्य आधारभूत सुविधाओं का अभाव तथा मिट्टी की गुणवत्ता में कमी के कारण उपज में आती कमी इत्यादि समस्याएँ शामिल हैं।

भारत सरकार इस क्षेत्र में सुधारों और किसानों की आय दोगुनी करने के लिये 7 सूत्रीय रणनीति पर काम कर रही है।

1- प्रति बूंद-अधिक फसल रणनीति (Per Drop More Crop)- इस रणनीति के तहत सूक्ष्म सिंचाई पर बल दिया जा रहा है। इससे कृषि क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाले पानी की मात्रा में कमी आएगी, इससे जल संरक्षण के साथ ही सिंचाई की लागत में भी कमी आएगी। ये रणनीति पानी की कमी वाले क्षेत्रों में विशेष रूप से लाभदायक है।

2- कृषि क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का प्रयोग करने पर बल दिया जा रहा है साथ ही खेतों में उर्वरकों की उतनी ही मात्रा का प्रयोग करने करने के लिये जागरूकता का प्रसार किया जा रहा है जितनी मात्रा मृदा स्वास्थ्य कार्ड के अनुसार प्रयोग करना उचित है। इससे मृदा की गुणवत्ता में सुधार होगा साथ ही उर्वरकों पर होने वाले खर्च में भी प्रभावी कमी आएगी। इससे मृदा और जल प्रदूषण में भी कमी आएगी।

3- कृषि उपज को नष्ट होने से बचाने के लिये गोदामों और कोल्ड स्टोरेज पर निवेश को बढ़ाया जा रहा है। इससे उपज की बर्बादी रुकेगी, खाद्य सुरक्षा की स्थिति और मजबूत होगी तथा शेष उपज का अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में निर्यात भी किया जा सकता है।

4- खाद्य प्रसंस्करण के माध्यम से कृषि क्षेत्र में मूल्यवर्धन को बढ़ावा दिया जा रहा है। भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में अपार संभावनाएँ निहित है।

5- उपज का सही मूल्य दिलाने के लिये राष्ट्रीय कृषि बाजार के निर्माण पर बल दिया गया है। इससे देशभर में कीमतों में समानता आएगी और किसानों को पर्याप्त लाभ मिल सकेगा।

6- भारत में हर साल अलग-अलग क्षेत्रों में सूखे, अग्नि, चक्रवात, अतिवृष्टि, ओले जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसलों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। इन जोखिमों को कम करने के लिये वहनीय कीमतों पर फसल बीमा उपलब्ध कराया गया है। हालाँकि इसका वास्तविक लाभ अब तक पर्याप्त किसानों को नहीं मिल पाया है, इसका लाभ अधिकांश लोगों तक पहुँचे इसके लिये उपाय किये जाने चाहिये।

7- विभिन्न योजनाओं के माध्यम से डेयरी, पशुपालन, मधुमक्खी पालन, पोल्ट्री, मत्स्य पालन इत्यादि कृषि सहायक क्षेत्रों के विकास पर बल दिया जा रहा है। चूंकि देश के अधिकांश कृषक इन चीजों से पहले से ही जुड़े हुए हैं अत: इसका सीधा लाभ उन्हें मिल सकता है। आवश्यकता है जागरूकता, पशुओं की नस्ल सुधार जैसे कारकों पर प्रभावी तरीके से काम किया जाए।

चूंकि देश की अधिकांश आबादी कृषि पर ही निर्भर है अत: देश में गरीबी उन्मूलन, रोजगार में वृद्धि, भुखमरी उन्मूलन इत्यादि तभी संभव है जब कृषि और किसानों की हालत में सुधार किया जाए। उपरोक्त उपायों को यदि प्रभावी तरीके से लागू किया जाए तो निश्चित तौर पर कृषि की दशा में सुधार आ सकता है। इससे इस क्षेत्र में व्याप्त निराशा में कमी आएगी, किसानों की आत्महत्या रुकेगी, और खेती छोड़ चुके लोग फिर से इस क्षेत्र में रुचि लेने लगेंगे।

अमित सिंह उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले से हैं। उन्होंने अपनी पढ़ाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरी की है। वर्तमान में वे दिल्ली में रहकर सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे हैं।

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Essay on Farm Bill 2020 | Farmer Bill 2020 Essay and Highlights of Agriculture Bill 2020

Essay on farm bill 2020.

India is an agriculture dominated country. More than 70% of India's population is either directly or indirectly involved in agricultural activities. Due to the hard work of these farmers we are eating peacefully. These farmers feed entire nation but it is a saddening fact that they are entangled in the fetters of starvation and poverty. Recently Central Government has passed new bills for well being of farmers and agriculture sector . But farmers and State Governments are opposing these bills. Farmers across the country have protested against these bills in streets and on roads. Punjab and Haryana farmer's tractor protests in July and on 26th January in Delhi were opposition of these agriculture bills 2020. On 28th August 2020 Punjab Assembly has also passed a resolution rejecting the Central Government's ordinances.

What is the Farm bill 2020 ?, What benefits will get farmer from  New Agriculture Bills 2020?, How Agriculture Sector will be benefited from Farmers Bills 2020? Why Farmers are protesting against Agriculture bill 2020 ?

What is Farm Bill 2020?

Benefits to farmers from farm bill 2020.

The Farm Bill 2020 envisages a path for farmers as an alternative platform to sell their produce in open market. Now farmers can sell their products openly to anyone and anywhere and they can get higher price. There will be no APMC market fee or cess on transactions in such trade areas. APMCs will also continue its functioning. Now APMCs have to compete with these alternate platforms and now farmers have a choice for selling their farm produces. These bills give powers to farmers to sell their produces directly to the corporate or exporter buying in bulk from the farm.

The Farm Bill 2020 does not annihilate current MSP based procurement of food grains. The MSP based procurement system will be continue and farmers can also sell their crop products in Mandi on existing MSP.

Government's motive towards Farm Bill 2020

From time to time Government has launched numerous schemes for welfare of farmers and agriculture sector . Government has introduced these Farm Bills to transform agriculture sector and well being of farmers. This step has been taken by the Government to boost agriculture sector and double the farmers income by 2022. It is thought that freeing of agriculture sector will eventually help in better pricing due to competitiveness in the market. When farmers will sell their products to corporates and exporters directly, it will induce corporate sector to invest in the agri-ecosystem. This will also give farmers better access to modern technology and farmers will be benefited by it.

Why Farmers are protesting against Agriculture bill 2020 ?

The Price Assurance Bill doesn't prescribe any mechanism for price fixation. Thus there is a apprehension in farmers that free hand given to private corporate houses could lead to farmer's exploitation. The Essential Commodities (Amendment) Ordinance removes, pulses, oil seeds, edible oils, onion and potatoes from the essential commodities list. Thus the amendment deregulates the production, movement, storage and distribution of these food commodities.

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Agriculture Bill 2020 Essay

Repeal of Farm Bill: Farm bills 2020 were passed in the year 2020 and now the same has been repealed by the Government. The Farm Laws Repeal Bill 2021 which aimed to repealing the three farm laws passed on December 1, 2021. These farm bills repealed by the Government in view of the onging farmers' protests against these laws.

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essay on agriculture bill 2020 in hindi

Thank you so much mam, Very helpful for aspirants like us.

Amazing one...😃 Really helpful for essay writing...✍

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Very helpful ,keep it up

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कृषि पर निबंध (Agriculture Essay in Hindi)

हमारा देश कृषि प्रधान देश है, और कृषि हमारे देश की अर्थव्यवस्था की नींव है। हमारे देश में कृषि केवल खेती करना नहीं हैं, बल्कि जीवन जीने की एक कला है। कृषि पर पूरा देश आश्रित होता है। लोगों की भूख तो कृषि के माध्यम से ही मिटती है। यह हमारे देश की शासन-व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। कृषि से ही मानव सभ्यता का आरंभ हुआ। अक्सर विद्यालयों में कृषि पर निबंध आदि लिखने को दिया जाता है। इस संबंध में कृषि पर आधारित कुछ छोटे-बड़े निबंध दिए जा रहे हैं।

कृषि पर छोटे-बड़े निबंध (Short and Long Essay on Agriculture in Hindi, Krishi par Nibandh Hindi mein)

कृषि पर निबंध – 1 (300 शब्द).

खेती और वानिकी के माध्यम से खाद्य पदार्थों का उत्पादन करना, कृषि कहलाता है। कृषि में फसल उत्पादन, फल और सब्जी की खेती के साथ-साथ फूलों की खेती, पशुधन उत्पादन, मत्स्य पालन, कृषि-वानिकी और वानिकी शामिल हैं। ये सभी उत्पादक गतिविधियाँ हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार

भारत में, कृषि आय राष्ट्रीय आय का 1987-88 में 30.3 प्रतिशत था जोकि पचहत्तर प्रतिशत से अधिक लोगों को रोजगार देती थी। 2023 तक यह आंकड़ा 50% तक पहुंच गयाहै। मुख्य आर्थिक गतिविधि होने के बावजूद विकसित राष्ट्रों की तुलना में कृषि में शामिल उत्पादन के कारकों की उत्पादकता बहुत कम है। हमारे जीवन की मूलभूत आवश्यकता भोजन का निर्माण, कृषि के द्वारा ही संभव होता है। कृषि में फसल उगाने या पशुओं को पालने की प्रथा का वर्णन है। किसान के रूप में काम करने वाला कोई भी व्यक्ति कृषि उद्योग से सम्बंधित कहलाता है।

कृषि के क्षेत्र में नवीन प्रयोग

पिछले कुछ वर्षों में विज्ञान और टेक्नोलॉजी के कारण कृषि क्षेत्रो में नविन उपकरणों का इस्तेमाल होने लगा है, परन्तु हमें धरती की उर्वरा शक्ति पर भी ध्यान देना चाहिए।

अर्थशास्त्री, जैसे टी.डब्ल्यू. शुल्ट, जॉन डब्ल्यू. मेलोर, वाल्टर ए.लुईस और अन्य अर्थशास्त्रियों ने यह साबित किया है कि कृषि और कृषक आर्थिक विकास के अग्र-दूत है जो इसके विकास में अत्यधिक योगदान देते है। कृषि के क्षेत्र में विकास के लिए वर्तमान सरकार ने कई नए योजनाओ जैसे की सोलर पम्प, फूलो और फलों में अनुदान, पशु पालन में अनुदान जैसी कई योजनाएं लागु की है लेकिन ये भ्रस्टाचार के चलते शत प्रतिशत धरातल पर उतर नहीं पाती है और असल आवश्यक व्यक्ति इससे वंचित रह जाता है। इस सम्बन्ध में सरकार को नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता है।

निबंध – 2 (400 शब्द)

लिस्टर ब्राउन ने अपनी पुस्तक “सीड्स ऑफ चेंजेस” एक “हरित क्रांति का एक अध्ययन,” में कहा है कि “विकासशील देशों में कृषि क्षेत्र के उत्पादन में वृद्धि के साथ व्यापार की समस्या सामने आएगी।”

इसलिए, कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण और विपणन के लिए उत्पादन, रोजगार बढ़ाने और खेतों और ग्रामीण आबादी के लिए आय बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण विकास होता है।

भारतीय कृषि की विशेषताएं :

(i) आजीविका का स्रोत – हमारे देश में कृषि मुख्य व्यवसाय है। यह कुल आबादी के लगभग 61% व्यक्तियों को रोजगार प्रदान करती है। यह राष्ट्रीय आय में करीबन 25% का योगदान देती है।

( ii) मानसून पर निर्भरता – हमारी भारतीय कृषि मुख्यतः मानसून पर निर्भर करती है। अगर मानसून अच्छा आया तो कृषि अच्छी होती है अन्यथा नहीं।

( iii) श्रम गहन खेती – जनसंख्या में वृद्धि के कारण भूमि पर दबाव बढ़ गया है। भूमि जोत के टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं और उपविभाजित हो जाते हैं। ऐसे खेतों पर मशीनरी और उपकरण का उपयोग नहीं किया जा सकता है।

( iv) बेरोजगारी – पर्याप्त सिंचाई साधनों के अभाव में और अपर्याप्त वर्षा के कारण किसान वर्ष के कुछ महीने ही कृषि-कार्यों में संलग्न रहते हैं। जिस कारण बाकी समय तो खाली ही रहते है। इसे छिपी बेरोजगारी भी कहते है।

( v) जोत का छोटा आकार – बड़े पैमाने पर उप-विभाजन और जोत के विखंडन के कारण, भूमि के जोत का आकार काफी छोटा हो जाता है। छोटे जोत आकार के कारण उच्च स्तर की खेती करना मुमकिन नहीं होता है।

( vi) उत्पादन के पारंपरिक तरीके – हमारे देश में पारंपरिक खेती का चलन है। केवल खेती ही नहीं अपितु इसमें प्रयुक्त होने वाले उपकरण भी पुरातन एवं पारंपरिक हैं, जिससे उन्नत खेती नहीं हो पाती।

( vii) कम कृषि उत्पादन – भारत में कृषि उत्पादन कम है। भारत में गेहूं प्रति हेक्टेयर लगभग 27 क्विंटल का उत्पादन होता है, फ्रांस में 71.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और ब्रिटेन में 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का उत्पादन होता है। एक कृषि मजदूर की औसत वार्षिक उत्पादकता भारत में 162 डॉलर, नॉर्वे में 973 डॉलर और यूएसए में 2408 डॉलर आंकी गयी है।

( viii) खाद्य फसलों का प्रभुत्व – खेती किए गए क्षेत्र का करीब 75% गेहूं, चावल और बाजरा जैसे खाद्य फसलों के अधीन है, जबकि लगभग 25% खेती क्षेत्र वाणिज्यिक फसलों के तहत है। यह प्रक्रिया पिछड़ी कृषि के कारण है।

भारतीय कृषि मौजूदा तकनीक पर संसाधनों का सबसे अच्छा उपयोग करने हेतु संकल्पित हैं, लेकिन वे बिचौलियों के प्रभुत्व वाले व्यापार प्रणाली में अपनी उपज की बिक्री से होने वाले लाभ में अपने हिस्से से वंचित रह जाते हैं और इस प्रकार कृषि के व्यवसायिक पक्ष की घोर उपेक्षा हुई है।

निबंध – 3 (500 शब्द)

आजादी के समय भारत में कृषि पूरी तरह से पिछड़ी हुई थी। कृषि में लागू सदियों पुरानी और पारंपरिक तकनीकों के उपयोग के कारण उत्पादकता बहुत खराब थी। वर्तमान समय की बात करें तो, कृषि में प्रयुक्त उर्वरकों की मात्रा भी अत्यंत कम है। अपनी कम उत्पादकता के कारण, कृषि भारतीय किसानों के लिए केवल जीवन निर्वाह का प्रबंधन कर सकती है और कृषि का व्यवसायीकरण कम होने के कारण आज भी कई देशों से हमारा देश कृषि के मामले में पीछे है।

कृषि के प्रकार

कृषि दुनिया में सबसे व्यापक गतिविधियों में से एक है, लेकिन यह हर जगह एक समान नहीं है। दुनिया भर में कृषि के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं।

( i) पशुपालन – खेती की इस प्रणाली के तहत पशुओं को पालने पर बड़ा जोर दिया जाता है। खानाबदोश झुंड के विपरीत, किसान एक व्यवस्थित जीवन जीते हैं।

( ii) वाणिज्यिक वृक्षारोपण – यद्यपि एक छोटे से क्षेत्र में इसका अभ्यास किया जाता है, लेकिन इस प्रकार की खेती इसके वाणिज्यिक मूल्य के संदर्भ में काफी महत्वपूर्ण है। इस तरह की खेती के प्रमुख उत्पाद उष्णकटिबंधीय (Tropical) फसलें हैं जैसे कि चाय, कॉफी, रबर और ताड़ के तेल। इस प्रकार की खेती एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कुछ हिस्सों में विकसित हुई है।

( iii) भूमध्यसागरीय (Mediterranean) कृषि – आमतौर पर भूमध्यसागरीय क्षेत्र के बीहड़ इलाकों में विशिष्ट पशुधन और फसल संयोजन होते हैं। गेहूं और खट्टे फल प्रमुख फसलें हैं, और छोटे जानवर, क्षेत्र में पाले जाने वाले प्रमुख पशुधन हैं।

( iv) अल्पविकसित गतिहीन जुताई – यह कृषि का एक निर्वाह प्रकार है और यह बाकि प्रकारों से भिन्न है क्योंकि भूमि के एक ही भूखंड की खेती साल दर साल लगातार की जाती है। अनाज की फसलों के अलावा, कुछ पेड़ की फसलें जैसे रबर का पेड़ आदि इस प्रणाली का उपयोग करके उगाया जाता है।

( v) दूध उत्पादन – बाजार के समीपता (Market proximity) और समशीतोष्ण जलवायु (temperate climate) दो अनुकूल कारक हैं जो इस प्रकार की खेती के विकास के लिए जिम्मेदार हैं। डेनमार्क और स्वीडन जैसे देशों ने इस प्रकार की खेती का अधिकतम विकास किया है।

( vi) झूम खेती – इस प्रकार की कृषि आमतौर पर दक्षिण पूर्व एशिया जैसे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों द्वारा अपनाई जाती है, अनाज की फसलों पर प्रमुख जोर दिया जाता है। पर्यावरणविदों (Environmentalists) के दबाव के कारण इस प्रकार की खेती में कमी आ रही है।

( vii) वाणिज्यिक अनाज की खेती – इस प्रकार की खेती खेत मशीनीकरण के लिए एक प्रतिक्रिया है और कम वर्षा और आबादी वाले क्षेत्रों में प्रमुख प्रकार की खेती है। ये फसलें मौसम की मार और सूखे की वजह से होती हैं।

( viii) पशुधन और अनाज की खेती – इस प्रकार की कृषि को आमतौर पर मिश्रित खेती के रूप में जाना जाता है, और एशिया को छोड़कर मध्य अक्षांशों (Mid Latitudes) के नम क्षेत्रों में उत्पन्न होता है। इसका विकास बाजार सुविधाओं से निकटता से जुड़ा हुआ है, और यह आमतौर पर यूरोपीय प्रकार की खेती है।

कृषि और व्यवसाय दो अलग-अलग धुरी है, लेकिन परस्पर संबंधित एवं एक दुसरे के पूरक हैं, जिसमें कृषि संसाधनों के उपयोग से लेकर कटाई, कृषि उपज के प्रसंस्करण (Processing) और विपणन (Marketing) तक उत्पादन का संगठन और प्रबंधन शामिल है।

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कृषि का महत्व पर निबंध

essay on agriculture bill 2020 in hindi

By पंकज सिंह चौहान

importance of agriculture in hindi

भारत में कृषि मुख्य व्यवसाय है। दो-तिहाई आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है।

यह केवल आजीविका का साधन नहीं है बल्कि जीवन का एक तरीका है। यह भोजन, चारा और ईंधन का मुख्य स्रोत है। यह आर्थिक विकास का मूल आधार है।

आजादी के दौरान प्रति हेक्टेयर और प्रति मजदूर उत्पादकता बहुत कम थी।

हालांकि, 1950-51 के बाद से आर्थिक नियोजन की शुरुआत और विशेष रूप से 1962 के बाद कृषि विकास पर विशेष जोर देने के कारण स्थिर कृषि का पिछला रुझान पूरी तरह से बदल गया था।

  • खेती के अंतर्गत क्षेत्र में लगातार वृद्धि देखी जाती है।
  • खाद्य फसलों में पर्याप्त वृद्धि चिह्नित की गयी है।
  • योजना अवधि के दौरान प्रति हेक्टेयर उपज में लगातार वृद्धि हुई थी।

कृषि का महत्व (Importance of agriculture in hindi)

भारत कृषि प्रधान देश है। 71% लोग गाँवों में रहते हैं और इनमें से अधिकांश कृषि पर निर्भर हैं। इसलिए कृषि के विकास से अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है। कृषि की प्रगति के बिना उद्योग, व्यापार और परिवहन की प्रगति असंभव है। कीमतों की स्थिरता कृषि विकास पर भी निर्भर करती है।

कृषि हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। कृषि न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि हमारे सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक जीवन पर इसका गहरा प्रभाव है।

जवाहर लाल नेहरू के शब्दों में,

“कृषि को सर्वोच्च प्राथमिकता की आवश्यकता थी क्योंकि अगर कृषि सफल नहीं होगी तो सरकार और राष्ट्र दोनों ही विफल हो जाएंगे ”

यद्यपि उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं, फिर भी भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में कृषि के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है।

इसे निम्न तथ्यों और आंकड़ों द्वारा मापा और देखा जा सकता है:

1. राष्ट्रीय आय पर कृषि प्रभाव:

सकल घरेलू उत्पाद की ओर पहले दो दशकों के दौरान कृषि का योगदान 48 से 60% के बीच रहा। वर्ष 2001-2002 में, यह योगदान घटकर केवल 26% रह गया।

2. सरकारी बजट में योगदान:

प्रथम पंचवर्षीय योजना से कृषि को केंद्र और राज्य दोनों के बजट के लिए प्रमुख राजस्व संग्रह क्षेत्र माना जाता है। हालाँकि, सरकारें कृषि और इसकी सहयोगी गतिविधियों जैसे मवेशी पालन, पशुपालन, मुर्गी पालन, मछली पालन इत्यादि से भारी राजस्व कमाती हैं। भारतीय रेलवे राज्य परिवहन प्रणाली के साथ-साथ कृषि उत्पादों के लिए माल ढुलाई शुल्क के रूप में एक सुंदर राजस्व भी कमाती है, दोनों अर्ध-समाप्त और समाप्त कर दिया।

3. कृषि बढ़ती जनसंख्या के लिए भोजन का प्रावधान करती है:

भारत जैसे जनसंख्या श्रम अधिशेष अर्थव्यवस्थाओं के अत्यधिक दबाव और भोजन की मांग में तेजी से वृद्धि के कारण, खाद्य उत्पादन तेज दर से बढ़ता है। इन देशों में भोजन की खपत का मौजूदा स्तर बहुत कम है और प्रति व्यक्ति आय में थोड़ी वृद्धि के साथ, भोजन की मांग में तेजी से वृद्धि हुई है (दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि विकासशील देशों में भोजन की मांग की आय लोच बहुत अधिक है)।

इसलिए, जब तक कृषि खाद्यान्नों के अधिशेष के विपणन में लगातार वृद्धि करने में सक्षम नहीं होती, तब तक एक संकट उभरने जैसा है। कई विकासशील देश इस चरण से गुजर रहे हैं और मा के लिए बढ़ती खाद्य आवश्यकताओं के लिए कृषि का विकास किया गया है।

4. पूंजी निर्माण में योगदान:

आवश्यकता पूंजी निर्माण पर सामान्य सहमति है। चूंकि भारत जैसे विकासशील देश में कृषि सबसे बड़ा उद्योग है, इसलिए यह पूंजी निर्माण की दर को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यदि यह ऐसा करने में विफल रहता है, तो पूरी प्रक्रिया आर्थिक विकास को झटका देगी।

कृषि से अधिशेष निकालने के लिए निम्नलिखित नीतियाँ ली जाती हैं:

  • खेत गैर-कृषि गतिविधियों से श्रम और पूंजी का हस्तांतरण।
  • कृषि का कराधान इस तरह से होना चाहिए कि कृषि पर बोझ कृषि को प्रदान की गई सरकारी सेवाओं से अधिक हो। इसलिए, कृषि से अधिशेष की पीढ़ी अंततः कृषि उत्पादकता को बढ़ाने पर निर्भर करेगी।

5. कृषि आधारित उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति:

कृषि विभिन्न कृषि आधारित उद्योगों जैसे चीनी, जूट, सूती वस्त्र और वनस्पती उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति करती है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग इसी तरह कृषि पर निर्भर हैं। इसलिए इन उद्योगों का विकास पूरी तरह से कृषि पर निर्भर है।

6. औद्योगिक उत्पादों के लिए बाजार:

औद्योगिक विकास के लिए ग्रामीण क्रय शक्ति में वृद्धि बहुत आवश्यक है क्योंकि दो-तिहाई भारतीय आबादी गांवों में रहती है। हरित क्रांति के बाद बड़े किसानों की क्रय शक्ति उनकी बढ़ी हुई आय और नगण्य कर बोझ के कारण बढ़ गई।

7. आंतरिक और बाहरी व्यापार और वाणिज्य पर प्रभाव:

भारतीय कृषि देश के आंतरिक और बाहरी व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। खाद्यान्न और अन्य कृषि उत्पादों में आंतरिक व्यापार सेवा क्षेत्र के विस्तार में मदद करता है।

8. कृषि रोजगार पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है

भारत में कम से कम दो-तिहाई श्रमिक आबादी कृषि कार्यों के माध्यम से अपना जीवन यापन करती है। भारत में अन्य क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ने में विफल रहे हैं।

9. श्रम शक्ति की आवश्यकता:

निर्माण कार्यों और अन्य क्षेत्रों में बड़ी संख्या में कुशल और अकुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है। इस श्रम की आपूर्ति भारतीय कृषि द्वारा की जाती है।

10. अधिक से अधिक लाभ:

कम कृषि लागत और इनपुट आपूर्ति में आत्मनिर्भरता के कारण भारतीय कृषि को निर्यात क्षेत्र में कई कृषि वस्तुओं में लागत लाभ है।

11. भोजन का मुख्य स्रोत:

कृषि राष्ट्र के लिए भोजन प्रदान करती है। 1947 से पहले हमारे पास भोजन की कमी थी, लेकिन 1969 के बाद कृषि में हरित क्रांति ने हमें खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर बना दिया। 2003-04 में चावल का उत्पादन 870 लाख मीट्रिक टन और गेहूं का 721 लाख मीट्रिक टन था।

12. परिवहन:

खेतों से उपभोक्ताओं और कृषि कच्चे माल को बाजारों और कारखानों में ले जाने के लिए परिवहन के साधनों की आवश्यकता होती है। बाजार और कारखानों से रासायनिक खाद, बीज, डीजल और कृषि उपकरण लेने के लिए भी परिवहन की आवश्यकता है।

13. बचत का स्रोत:

हरित क्रांति ने उत्पादन को कई गुना बढ़ा दिया है और किसान समृद्ध हो गए हैं। इन किसानों द्वारा अर्जित अतिरिक्त आय को बचाया जा सकता है और बैंकों में निवेश किया जा सकता है।

14. पूंजी निर्माण:

कृषि पूंजी निर्माण में भी मदद करती है। कृषि उत्पादन से अधिशेष आय को अन्य स्रोतों जैसे बैंक, शेयर आदि में निवेश किया जा सकता है। ट्रैक्टर और हार्वेस्टर का उपयोग पूंजी निर्माण को बढ़ाता है।

15. अंतर्राष्ट्रीय महत्व:

भारत मूंगफली और गन्ने के उत्पादन में शीर्ष स्थान पर है। चावल और स्टेपल कॉटन के उत्पादन में इसका दूसरा स्थान है। तंबाकू के उत्पादन में इसका तीसरा स्थान है। हमारे कृषि विश्वविद्यालय अन्य विकासशील देशों के लिए रोल मॉडल के रूप में काम कर रहे हैं।

कृषि और भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास (Importance of agriculture in Indian economy in hindi)

निम्नलिखित बिंदु भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में कृषि की सात प्रमुख भूमिकाओं को उजागर करते हैं।

1. सकल घरेलू उत्पाद (राष्ट्रीय आय) में योगदान:

1950-51 में कृषि ने लगभग 55 फीसदी भारत की राष्ट्रीय आय (GDP) में योगदान दिया था।

हालाँकि, प्रतिशत धीरे-धीरे घटकर 19.4 पर 2007-08 में आ गया था। अन्य देशों में, राष्ट्रीय आय में कृषि का प्रतिशत योगदान बहुत कम है।

दुनिया के अधिकांश विकसित देशों में- जैसे यूके, और यूएसए, कनाडा, जापान और ऑस्ट्रेलिया- यह 5 फीसदी से नीचे है।

वास्तव में, जीडीपी की क्षेत्रीय संरचना किसी देश के विकास के स्तर को इंगित करती है। सकल घरेलू उत्पाद में कृषि और संबद्ध गतिविधियों का योगदान जितना अधिक होगा, उतना ही आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ देश होना चाहिए। इस प्रकार, भारत के राष्ट्रीय उत्पादन में कृषि का प्रसार पिछड़ेपन का एक लक्षण है।

2. रोजगार सृजन:

भारत में अधिकांश लोग अपनी आजीविका कृषि से प्राप्त करते हैं। कृषि अभी भी सबसे प्रमुख क्षेत्र है क्योंकि कृषि पर निर्भर जनसंख्या का एक उच्च अनुपात अभी भी काम कर रहा है। भारत में कृषि के आधार पर कामकाजी आबादी का प्रतिशत 1961 और 1971 के सेंसर के अनुसार 69.7 था।

तब से प्रतिशत कम या ज्यादा अपरिवर्तित रहा है। 2001 में, यह घटकर 57 फीसदी हो गया। अधिकांश औद्योगिक रूप से उन्नत देशों में प्रतिशत 1 और 7 के बीच भिन्न होता है। इसके विपरीत, यह सबसे विकासशील देशों में 40 और 70 के बीच होता है। चीन में, प्रतिशत शायद सबसे अधिक (72) है, इसके बाद भारत (52.7), इंडोनेशिया (52), म्यांमार (50) और मिस्र (42) हैं।

3. औद्योगिक विकास में योगदान

कृषि एक अन्य कारण से भी महत्वपूर्ण है। यदि यह उचित गति से विकसित होने में विफल रहता है, तो यह औद्योगिक और अन्य क्षेत्रों की वृद्धि पर एक प्रमुख बाधा साबित हो सकता है। इसके अलावा, कृषि औद्योगिक वस्तुओं के लिए एक प्रमुख बाजार बनकर औद्योगिक विस्तार का मकसद प्रदान कर सकता है।

भारत में, कृषि सभी जूट और सूती वस्त्र, चीनी, वनस्पती, और वृक्षारोपण जैसे बुनियादी उद्योगों के लिए कच्चे माल का प्रमुख आपूर्तिकर्ता रहा है। इसके अतिरिक्त, कुछ उद्योग अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर करते हैं जैसे कि छोटे पैमाने पर और कुटीर उद्योग जैसे हथकरघा बुनाई, तेल पेराई, चावल की भूसी, और इतने पर।

ऐसे कृषि आधारित उद्योग- जो अपने कच्चे माल के लिए कृषि पर निर्भर हैं – भारत के द्वितीयक (विनिर्माण) क्षेत्र में उत्पन्न आय का आधा हिस्सा हैं।

4. विदेश व्यापार में योगदान:

भारत के बाहरी व्यापार में कृषि ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत के पारंपरिक निर्यात की तीन प्रमुख वस्तुएं, चाय, जूट और सूती वस्त्र, कृषि आधारित हैं। अन्य वस्तुओं में चीनी, तिलहन, तम्बाकू, और मसाले शामिल हैं।

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पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।

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